मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,
ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.
मानसून की अधिकता, बारिश हो घनघोर
उजड़ा घर अरु खेत अब, देखत सब चहु ओर
तीव्र पानी प्रवाह से, वन गिरि भी थर्राय
नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .
उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.
जलवायु दूषित हुई, आम हो गया ख़ास
राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,
भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..
फैशन की अब होड़ है, फैशन…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:30am — 19 Comments
कुछ भी कह लो मित्र तुम , विष जब आये काम
सिर्फ दोष अपने कहो , क्यों होते हैं आम
कौन काम को देख के , अब देता है दाम
थोड़ा मक्खन, साथ में , है जो सुन्दर चाम
सूर्य समय से डूब के , खुद कर देगा शाम
नाहक़ बदली हो रही , हट जा, तू बदनाम
सबकी मंज़िल है अलग , अलग सभी के धाम
फिर क्यों छोड़ा साथ वो , पाता है दुश्नाम
हवा रुष्ट आंधी हुई , धूल उड़ी हर गाम
कितने नामी के हुये , धूमिल सारे नाम…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
दिल पर काबू ना रहे मिल जाते जो नैन
धड़कन धड़कन से मिले दिल को मिलता चैन |
दिल की यह मजबूरियाँ समझे कोई ख़ास
धड़कन बढ़ जाती अगर आता है वो पास |
तेरी धड़कन के बिना मेरी भी बेकार
दोनों की मिलती अगर नैया लगती पार |
तेरी धड़कन के सिवा कुछ भी ना अनमोल
सूना है सारा जगत इसका क्या है मोल |
धड़कन से चालू हुआ धड़कन पर सब बंद
मोल समय का जान लो यह इसकी पाबंद |
धड़कन चलती है अगर जीने की हो आस
अपनों का जो साथ…
Added by Sarita Bhatia on May 12, 2014 at 4:00pm — 29 Comments
1 अप्रैल 2014 को ओबीओ की चौथी वर्षगाँठ है। चार वर्षो में इस मंच ने मुझ जैसे सैकड़ों लेखको को तैयार किया है | इस अवसर पर दोहों के रूप में सभी सदस्यों में सहर्ष पुष्प समर्पित है ।-
मना रहे सब साथ में, उत्सव देखो आज
चार वर्ष कर पूर्ण ये, बना खूब सरताज |
बागी की ही सोच से, बिछ पाया यह साज
योगराज…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2014 at 3:30pm — 15 Comments
मौसम हुआ सुहावना ,उपवन उपवन नूर
ग्लोबल वार्मिंग का असर अब गर्मी है दूर |
समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात
सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |
पारा बढ़ता जा रहा लेकिन बढ़ी न प्यास
फागुन के अब मास में श्रावण का अहसास |
फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल
वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |
मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
सेहत के खजाने को रखना सब संभाल…
Added by Sarita Bhatia on March 24, 2014 at 10:23am — 10 Comments
प्रथम प्रयास ............
1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,
पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।
2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,
भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार ।
3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,
हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।
4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,
मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार ।
5-) चौरासी…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 11, 2014 at 4:30pm — 12 Comments
सात दोहे – '' रिश्ते ''
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नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात
खामोशी देती रही , हर रिश्ते को मात
रिश्तों को भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल
बिना तेल देखे बहुत , झटके खाते मेल…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:30pm — 46 Comments
मन – पाँच दोहे
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मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर
फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर
मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर
आँख अगर हो देखती , मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 11, 2014 at 6:00pm — 28 Comments
ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे
स्वागत तव ऋतुराज
चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।
गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।
.
बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।
गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।
.
पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।
गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।
.
जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।
तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।
.
झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।
इस अनुपम श्रृंगार…
Added by Satyanarayan Singh on February 3, 2014 at 5:30pm — 23 Comments
1) बंधन बांधो नेह का पुनि पुनि जतन लगाय ।
चुन चुन मीत बनाइये खोटे जन बिलगाय ॥
2) प्रेम कुटुम्ब समाइए सागर नदी समाय ।
ज्यों पंछी आकाश मे स्वतंत्र उड़ता जाय ॥
3) धोखा झूठ फरेब औ फैला भ्रष्टाचार ।
फैली शासनहीनता है पसरा व्यभिचार ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 30, 2014 at 1:30pm — 11 Comments
क्षण भंगुर जीवन हुआ, जीवन का क्या मोल ।
भज लो तुम भगवान को, क्यों रहे विष घोल ।।
बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, चाहे तो लो खोल ।
खुले हुये अंबर तले, कर लो अब किल्लोल ॥
* भामा माया मोहिनी, मोहति रूप अनेक ।
माया माला भरमनी, फंसत नाहीं नेक ॥
*इस दोहे को इस तरह भी देखें :-
ऐसी माया मोहिनी मोहती रूप अनेक ।
केवल माला फेर के कोई न बनता नेक ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
1.बीता हिन्दी दिवस भी, मना लिए सब जश्न!
न्याय लेख भी हो हिंदी, कौन करेगा प्रश्न!
2.नियम सरलता से बने, सब कुछ हो स्पष्ट
तर्क कुतर्क न बन जाय, बने वकील न भ्रष्ट.
3.मूल्य कर्म अनुरूप हो, हो न कोइ कंगाल.
दोउ हाथ दो पैर सम, अलग क्यों हो भाल!
4.मिहनत से धन आत है, बिन मिहनत धन जात.
मिहनत कर ले रे मना, काहे नहीं बुझात!
5.अहंकार को त्याग कर, करिए सदा सत्कर्म,
सोने की लंका गयी, बूझ न रावण मर्म.
6.नारी को सम्मान कर, नारी शक्ति महान
…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 15, 2013 at 8:32pm — 12 Comments
पांच दोहे
खुद के अन्दर झाँक के, पढ़ ले तू आलेख
अपने ऐसे हाल का, खुद खींचा आरेख
बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास
भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास
पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 6:00pm — 42 Comments
पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन…
Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
धरती तो आधार है, जा न सके उस पार
जन्म,मरण अरु परण का,धरती ही आधार|
पञ्च तत्व से जन्म ले,पाय धरा की गोद
हरेभरे उपवन खिले, प्राणी करे प्रमोद |
धरती गगन जहां मिले,लगे नीर की झील
हिरन दौड़ते खोजने, निकले मीलो मील |
हीरे मोती कुछ नहीं, जितनी धरा अमूल्य,
सभी मिले भूगर्भ में, बिन माटी सब शून्य|
निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,
साँसों की डोरी थमे, जाय संपदा हीन |
(मौलिक व्…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2013 at 12:00pm — 12 Comments
परिचय करते वक्त ही, पहले पूछे नाम,
परिचय सुद्रड़ हो तभी, करे बात की काम॥
परिचय देवे पेड़ का, बच्चे को बतलाय,
इनके क्या क्या नाम है,अच्छे से समझाय
कन्द मूल खाकर रहे, वन में सीता राम,
चौदह वर्षों तक किया,…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 4:30pm — 15 Comments
युवतियाँ भी सीख रही, युवकों के ही साथ,
जूडो करांटे सीखे, रक्षा खुद के हाथ |
आँख मार मुँह फेरले, खावे मार कपाल,
छेड़-छाड़ अब छोड़ दे, नहीं बचेगी खाल |
अगर बुजुर्ग नहीं करे, कोंई शर्म लिहाज,
इज्जत के बट्टा लगे, समझे अब यह राज…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 3, 2013 at 8:00pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 28, 2013 at 10:11am — 18 Comments
ऋतु बसंत का आगमन,खुशियों का उन्माद,
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 14, 2013 at 10:26pm — 14 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
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