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प्रथम प्रयास ............

1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,

पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।

2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,

भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार

3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,

हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।

4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,

मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार

5-) चौरासी भटकत फिरयो,खूब मिलो परिवार ,

कटु वचनन कों बोल कर, करते रहे बिगार

6-)आखें जन का आईना, देखो तो चितलाय,

ह्रदय की लौ जान सब, बिना कछु किये उपाय ।

7- ) दीपक उर का बार कें, बैठी सांझ सकार ,

हरी आवन कि वाट में, नैना थके हमार ।

8-) प्रभु का माया जाल है, समझो वाकी चाल ,

जाके उसके सामने, कहना होगा हाल ।

कल्पना मिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 26, 2014 at 9:10pm

आ० प्राची मैडम आप ने सही कहा है इस बात मैं ध्यान दूँगी।दोहे भाग दो में मात्राओं का ध्यान रख कर लिखे हैं ।

आप का बहुत आभार!सादर !!!!!!!!!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 3:49pm
आदरणीया कल्पना जी
सभी दोहों में उन्नत कथ्य को शब्द देने का प्रयास हुआ है, जिसक लिए आपको हार्दिक बधाई
आप दोहों को अपनी सामान्य भाषा शैली में ही कहतीं तो बेहतर होता...ये आंचलिकता का पुट अक्सर बहुत कृत्रिम व आरोपित सा लगने लगता है और कई बार शब्दों के मूल स्वरुप या हिज्जों को ही ज़बरन बदल दिया जाता हैं ...जैसे स्वार्थ को स्वारथ लिखा जाना , संभाल को संभार लिखा जाना.

मात्रिकता एक बार पुनः जांच लें कई दोहों में मात्राएँ बढ़ रही हैं..
अन्य सुधि पाठक जो इस विधा को जानते हैं, जिन्होनें इस दोहावली पर टिप्पणी भी दी हैं उनसे भी अपेक्षा थी की वो सिर्फ वाह-वाही न करके आपके प्रयास पर मात्रिकता की गलतियों को इंगित करके इस दोहावली को साधने में अपना योगदान देते..

आप मात्रिकता पुनः स्वयं देखें.. और सामान्य हिंदी में ही इसे प्रस्तुत करने का प्रयास करें मैं पुनः आती हूँ आपकी इस दोहावली पर

सादर शुभ अपेक्षाएं
Comment by kalpna mishra bajpai on March 14, 2014 at 2:17pm

अदरणीय श्री लक्ष्मण प्रसाद जी आपने जो बिन्दु उजाकर किए थे दोहो में उसके लिए तहे दिल से आभारी हूँ। सदैव ही आप गुणी जनों के मार्गदर्शन की आकांक्षी हूँ। बहुत बहुत आभार आपका सादर।  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2014 at 6:53pm

सार्थक सन्देश देते सुन्दर सनातनी दोहों के लिए हार्दिक बधाई आ. कल्पना मिश्रा जी | कुछ दोहों में मामूली संशोधन देखे अगर 

उचित लगे - दुसरा दोहा -भज लो साईं राम को, अपनों जनम सम्हार - खुद का जनम संभार 

चौथा दोहा - प्रभु पाओगे द्वार या पाओगे प्रभु द्वार 

5वाँ - कटु वचनन कों बोल कर, कहे करत बिगार  - करते रहे बिगार 

6 "  - ह्रदय कि लो जान सब,  कुछ किए बिना उपाय - ह्रदय की लौ जान सब, बिना कछु किये उपाय 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 2:32pm

आदरणीया अन्नपूर्णा दी ये कमाल मेरा नहीं, ये सब आपने करवाया है। मैंने तो आप की उंगली पकड़ी है, इस के लिए मैं जीवन तमाम

आभारी रहूँगी। बहुत बहुत आभार सादर !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 2:26pm

आदरणीय श्री अखिलेश क़ृष्ण जी आपका सुझाव सिर आँखों पर। दोहे आप को पसंद आए, इस से मुझे और साहस मिलेगा लिखने का,

बहुत आभार आप का सादर !!!!!!!!!!!

Comment by annapurna bajpai on March 12, 2014 at 11:17am

बहुत खूब कल्पना जी , आप तो कमाल किए जा रही है, बधाई आपको । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 9:20am

आदरणीय कल्पनाजी,

सुंदर आध्यात्मिक दोहे की हार्दिक बधाई।

सकारे, हमारे को ...... सकार ,  हमार कर लीजिए

सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 7:08am

आदरणी श्री एस सी ब्रह्मचारी भाई जी !! आप ने जो मुक्त कंठ से दोहों की सराहना की है मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ ।

भाई जी बहुत बहुत आभार । सादर !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by kalpna mishra bajpai on March 12, 2014 at 7:02am

आदरणीय श्री मनोज कुमार सिंह मयंक जी आप को दोहे पसंद आए बहुत बहुत आभार !!!!!!!! मुझे आप का लयपूर्ण ढंग से गलती

बताने का अंदाज बहुत पसंद आया शुक्रिया जी। सादर

कृपया ध्यान दे...

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