Added by Abhinav Arun on January 30, 2011 at 10:00pm — 2 Comments
एक अनजाना सा घर, एक अनजानी डगर ..
ठान के ,हूँ साथ तेरे,कितना भी हो कठिन ये सफ़र..
पार भव कर ही लेंगे साथ मेरे तुम हो अगर..
छोड़ना मत हाथ मेरा तुम कभी वो हमसफ़र..
प्यार से सजाएंगे हम अपना ये प्रेम नगर..
करना नज़रंदाज़ मेरी गलती हो कोई अगर..
कोशिश तो बस ये मेरी, नेह में न हो कोई…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 30, 2011 at 12:30am — 5 Comments
ओस की बूँद सी आँखों में सिमट आयी है...
फिर भी क्यों लब पे हंसी छाई है..
सांझ का धुंधलका मेरे आसपास सिमटा है..
जैसे मेरे ज़ेहन की परछाई है..
क्यों मिले थे तुम ? क्यों पास हम आये थे?
क्यों अनजान बन के ख्वाब सजाये थे?
एक पत्थर से वो ख़्वाबों का घर बिखरा है..
जो हम अनजाने थे तो पहचाने से क्यों थे ?…
ContinueAdded by Lata R.Ojha on January 28, 2011 at 11:00pm — 3 Comments
पिताजी की डायरी से...
स्मृति में..
मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर,
अचानक ही आते रहेंगें .
एक गुजरी हुई जिंदगी में ,
फिरसे वापस बुलाते रहेगें.
याद आयेगा तुमको सरोवर
और पीपल की सुन्दर ये छाया .
ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी ,
जिसको यादों में हमने बसाया .
बरबस ये कहेंगे कहानी ,
और हम…
ContinueAdded by R N Tiwari on January 28, 2011 at 10:00am — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 7:00pm — 10 Comments
Added by Sujit Kumar Lucky on January 26, 2011 at 9:30am — 6 Comments
Added by Abhinav Arun on January 25, 2011 at 3:51pm — 10 Comments
पिता जी की डायरी से....
हाय भगवन क्या दिखाया ,
शांति मन में विक्रांति लाकर .
सरज का नव पुष्प कोमल ,
अग्नि ज्वाला में फसाकर,
वेड ही दिवस महिना ,
श्वेत ही वर्ण था निशा का,
शास्त्र ही दिन शेष था.
सूर्य था पश्चिम दिशा का.
उत्साह का उस दिन था पहरा ,
नयन सबही के खिले थे.
एक वर वधु के व्याह में ,…
Added by R N Tiwari on January 23, 2011 at 6:30pm — 4 Comments
वो कौन है ...
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on January 21, 2011 at 8:30am — 6 Comments
Added by CHANDAN KUMAR on January 21, 2011 at 1:00am — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on January 19, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
कुछ 'ऐसी' ज़िद है...
ऐसा 'फ़ितूर' है...
नहीं तलाशनी पड़ती...
कोई 'वजह'...
हंसने-रोने को...
नाराज हूँ 'खुद' से...
या 'किस' से... "क्यों"...
नहीं जानती...
जानना 'भी' नहीं चाहती...
चल रही जिन 'राहों' में...
जाते 'किस' मंजिल...
नहीं 'पहचानती'...
क्यों नहीं आता कोई मोड़ 'नया'...
जहाँ "थम" जाऊं...
ना 'थकती' चल-चल…
Added by Julie on January 18, 2011 at 12:00am — No Comments
उस दिव्य ज्योति की अंश मात्र..
हूँ उस असीम की कृपापात्र..
इस रंगमंच पे जीना है..
कुछ वर्ष-माह मुझे मेरा पात्र..
कुछ ज्ञान कहीं जो सुप्त सा है..
उसको जड़ता से…
Added by Lata R.Ojha on January 16, 2011 at 4:30am — 2 Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 15, 2011 at 2:00pm — 2 Comments
तन -मन मैं बिखेर देती है अनगिनित उजाले'
कहीं खो जाते है इस स्वर्णिम चमक में,
मन में छुपे कुछ बादल काले
खिल जाती हैं, नयी उमीदों की नयी कोपलें
नई धुन पर तैयार ,नई गुनगुनाहटे,
पहले से जवान, पहले से हसीन,
मन के कोने से निकलकर कहीं,
कोरे कैनवास…
ContinueAdded by anupama shrivastava[anu shri] on January 14, 2011 at 1:00pm — 6 Comments
में रोज जब घर से निकलता हूँ
तो खुला आसमान दिखता है
जैसे कि वो अपनी अनन्तता में
मेरा स्वागत कर रहा हो,
हवाएं मेरे बालों को सहलाती,
पंछी गीत गाते मुझे सुकून देते हैं
जमीन मेरा बोझ उठाकर
मुझे सम्हाले रखती है,
ये इनका रोज का नियम है ,
उनका प्रेम है जो, कभी कम नहीं होता
शायद वो अपना धर्म नहीं जानते ,
वरना मुझे छोड़ आपस में ही
वाद विवाद में उलझे होते,
या फिर शायद वो अपना…
ContinueAdded by Bhasker Agrawal on January 14, 2011 at 10:00am — 5 Comments
Added by Veerendra Jain on January 13, 2011 at 11:30am — 13 Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 7, 2011 at 8:52pm — 2 Comments
Added by Bhasker Agrawal on January 6, 2011 at 6:12pm — 2 Comments
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