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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (492)

एक दोहा गज़ल - प्रीत - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'

एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )

छूट गयी जब  से  यहाँ, सहज  प्रेम की रीत

आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।

*

चलते फिरते तन करे, जब  तन से मनुहार

मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।

*

एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार

आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।

*

भरे सदा ही  प्रीत ने, ताजे तन मन घाव

प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।

*

मण्डी जब  से  देह को, कर  बैठे हैं लोग

मन से मन के मध्य में, आ पसरी है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:25am — 6 Comments

चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२



नफरत ने जो दिया वो मुहब्बत न दे सकी

हमको सफलता  यार  इनायत न दे सकी।१।

*

चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें

पापों को किन्तु अन्त कयामत न दे सकी।२।

*

बूढ़े हुए  हैं  लोग  जो  चाहत  में  स्वर्ग के

कह दो उन्हें कि मौत भी जन्नत न दे सकी।३।

*

सोचा था एक हम ही हैं इसके सताये पर

सुनते खुशी उन्हें  भी  सराफत न दे सकी।४।

*

जो बन के सीढ़ी  खप  गये सत्ता के वास्ते

उनको कफन भी यार सियासत न दे सकी।५।

*

चाहे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2021 at 8:39pm — 3 Comments

किये कैद बैठा हवाओं को जो भी - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२२



चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर

अँधेरों से डर कर  चढ़ा रौशनी पर।१।

*

किये कैद बैठा हवाओं को जो भी

बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।

*

बना सन्त बैठा मगर है फिसलता

कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।

*

खड़े  देवता  हैं  सभी  कठघरे में

करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।

*

सभी खीझते हैं जले दीप पर तो

उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।

*

अजब देवता जो डरे आदमी से

हुआ द्वंद भारी यहाँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments

पर्व गुरुओं का मनाते आज हम -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२



पर्व गुरुओं  का  मनाते आज हम

और मन के पास आते आज हम।१।

*

पुष्प भावों के  चढ़ाते आज हम 

शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।

*

है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें

मान उनको दे जताते आज हम।३।

*

सीख उनकी आचरण में ढालकर

कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।

*

आब भर कर है सितारों सा किया

हर चमक उन से, बताते आज हम।५।

*

ज्ञान दाता  बढ़  बिधाता  से हैं तो

यश उन्हीं…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments

जन्माष्टमी के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष

सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।

*

मथुरा में  पर  कंस  का, घटा न अत्याचार

विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।

*

बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट

हरे सकल दुख ईश  ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।

*

लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार

स्वयं खुल गये  तेज  से, कारागृह के द्वार।४।

*

हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर

छोड़ यशोदा  गेह  में, किया  कंस से दूर।५।

*

गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments

अपनी जिन्दगी - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"(गजल)

२१२२/२१२२/२१२



झेलती  मझधार  अपनी  जिन्दगी

कब  लगेगी  पार  अपनी जिन्दगी ।१।

*

आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए

खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।

*

शब्द  इस  में  है  न  कोई  हर्ष का

बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।

*

यूँ कमी उल्लास की होती न फिर

होती गर  त्यौहार  अपनी जिन्दगी।४।

*

हम ने ही  जन्जीर  बाँधी  पाँव को

कैसे  ले  रफ्तार  अपनी  जिन्दगी ।५।

*

सोच मत आकर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments

सहज त्योहार है राखी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी

समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।

*

हैं केवल रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना

लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।

*

पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं

पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।

*

बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी

सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments

देश जयचंदों की क्या जागीर है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२



होंठ हँसते हैं  तो  मन में पीर है

जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।

*

जो सिखाता था कलम ही थामना

वो भी  हाथों  में  लिए  शमशीर है।२।

*

झूठ को आजाद रक्खा नित गया

सच के  पाँवों  में  पड़ी  जंजीर है।३।

*

हाथ जन के वो न आयेगा कभी

उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।

*

रास नेताओं  से  करती है बहुत

रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।

*

इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं

झूठ की  भी  क्या  गजब तासीर है।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments

सावन गुजर गया

२२१/२१२१/१२२१/२१२



तकरार करते करते ही सावन गुजर गया

मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।

*

बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट

अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।

*

हम खुद में व्यस्त  और  वो औरों में व्यस्त थे

व्यवहार करते  करते  ही  सावन  गुजर गया।३।

*

इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन

नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।

*

उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन

तैय्यार करते …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments

नहीं कर कुन्द पाओगे कलम की धार नेता जी

१२२२/१२२२/१२२२/१२२



तुम्हारी कुर्सी का  जब  है  यही  आधार नेता जी

कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।

*

सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर

लगे करने में कुनबे  का  सदा अभिसार नेता जी।२।

*

जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक

जताते क्यों नहीं उस का  कभी आभार नेता जी।३।

*

बने केवल धनी का ही सहारा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments

हमने तो देखा बीज न खेतों में डालकर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर

बोलो करोगे आप  क्या पत्थर उछाल कर।१।

*

जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया

लानत समय  ने  आज  दी  मुर्दा  निकालकर।२।

*

वो बिक  गयी  है  वस्तु  सी  बेहाल भूख से

अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।

*

केवल किसान  जानता  मौसम की मार को

हम ने तो  देखा  बीज  न  खेतों  में डालकर।४।

*

रोटी का मोल  जानते  बचपन  से ही बहुत

माँ ने …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments

आजकल इस देश में-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



ये शिवालों से दुखी है आजकल इस देश में

वो हवाओं से दुखी है आजकल इस देश में।१।
.

भूखे रहने की  सलाहें  दे  रहा  भूखों को वो

जो निवालों से दुखी है आजकल इस देश में।२।

**

जिस को उत्तर सारे  के  सारे  पता हैं दोस्तो

वो सवालों से दुखी  है  आजकल इस देश में।३।

**

जो अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप को

वो उजालों से दुखी  है आजकल इस देश…
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments

हमको समझ नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कहते है लोग प्रीत  की  हमको समझ नहीं

दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।

*

नफरत ही नित्य बँट  रही  सरकार इसलिए

आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।

*

न्योतो  न  आप  मंच  से  महफिल  बिगाड़ने

कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।

*

हम ने सदा  ही  धूप  का  रस्ता  बुहारा  पर

रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।

*

समझा नहीं है  खेल  मुहब्बत  को इसलिए

इस में ही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२ /२२

जिसका अपना यहाँ दायरा कम है

आसमाँ को भी  वो  मानता कम है।१।

*

मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है

देख तुझ  में  भी  तो  देवता कम है।२।

*

जो  ठहरना  नहीं  चाहता  साथी

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।

*

बात औरों के सिर डालकर देखो

अपने  ईमान  को  तौलता कम है।४।

*

पास  बैठा  है  लेकिन  अबोला  ही

कौन कहता है अब फासला कम है।५।

*

हर बुराई …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments

रात भर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर

पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।

*

कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब

शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।

*

होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ

आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।

*

बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ

आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।

*

आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत

जब रात सर्दियों  की सताती है रात…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments

करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



सेवा  के  नाम  खाते  हैं  मेवा  छिपा  हुआ

इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।

*

मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से

है रक्त बेबशों  का  भी  इन में लगा हुआ।२।

*

मुकरे  हैं  नेता  सारे  ही  देकर  वचन हमें

करके दिखाया देश  में  किसने कहा हुआ।३।

*

नेता हुए हैं आज  के  गिरगिट सरीखे सब

खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।

*

ये  नीरो  जैसे  देश  में  रहते  हैं …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments

कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल

केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।

*

मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर

किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।

*

है जानकार जो  भी  वो  पैसों के पीछे बस

जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।

*

चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू

क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।

*

पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है

कहते पुजारी मुझ से  हैं  तू देवता बदल।५। …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments

भूख का व्यापार मत करवाइए- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

कायराना  काम  कोई  यार  मत करवाइए

हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।

*

शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर

गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।

*

वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी

रोजमर्रा दुश्मनों   से   प्यार मत करवाइए।३।

*

जाति धर्मों  के  लवादे  में  सियासत हेतु यूँ

नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।

*

चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments

देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/२१२२/२१२२/२१२



कौन कहता घाव  अपने  सी  रहा है आदमी

आजकल तो खून  अपना  चूसता है आदमी।१।

*

देवता होना  नहीं  पर  दानवों  की बात सुन

आदमी की  पाँत  से  ही  लापता है आदमी।२।

*

जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो

आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।

*

प्यास होने पर  मरुस्थल  छान लेता नीर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments

निष्पक्ष सत्य सुर्खी में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221-2121-1221-212



अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या

हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।

*

राजा से पूछा  करता  जो  डंके  की चोट पर

जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।

*

हट  कर खबर  के  पृष्ठों  से  सम्पादकीय में

जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।

*

जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक

निष्पक्ष सत्य  सुर्खी  में  आता सदा है क्या।४।

*

पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई

नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments

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