१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
 बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता 
 सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१
 *
 सघन  बादल  शिखर  ऊँचे  इन्हें  घेरे  हुए  हैं पर
 उगेगी घाटियों  में  भी  सहर आहिस्ता आहिस्ता/२
 *
 हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब
 तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३
 *
 हमीं  कम  हौसले  वाले  पड़े  हैं  घाटियों  में  यूँ
 चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४
 *
 अभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
 मन था सुन्दर तो वदन की हर कमी अच्छी लगी
 उस के अधरों  ने  कही  जो  शायरी  अच्छी लगी/१
 *
 सात जन्मों  के  लिए  वो  बन्धनों  में बँध गये
 जिन्दगी के बाद जिनको जिन्दगी अच्छी लगी/२
 *
 आँख चुँधियाती रही जो पास में अपनी सनम
 दूर  तम  में  बैठकर  वो  रोशनी  अच्छी  लगी/३
 *
 एक  हम  ही  भागते  रंगीनियों  से  दूर  नित
 और किसको बोलिए तो सादगी अच्छी लगी/४
 *
 हाथ में था हाथ उनका दूर तक कोई न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2021 at 7:32pm — 8 Comments
बल रहित मैं हूँ  भीम कहता है
 तुच्छ खुद को असीम कहता है/१
 *
 जिसकी आदत है घाव देने की
 वो स्वयम को हकीम कहता है/२
 *
 आम पीपल  को  भूल बैठा वो
 और कीकर को नीम कहता है/३
 *
 राम से जो गुरेज उस को नित
 क्यों तू खुद को रहीम कहता है/४
 *
 धर्म क्या है समझ  न पाया जो
 धर्म को  वो  अफीम  कहता है/५
 *
 हाथ जिसका है कत्ल में या रब
 वो भी खुद को नदीम कहता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2021 at 10:04pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कैसे किसी की याद में सब कुछ भुला दूँ मैं
क्यों कर हसीन ख्वाब की बस्ती मिटा दूँ मैं/१
*
बचपन में जिसने आँखों को आँसू नहीं दिया 
क्योंकर जवानी जोश  में  उस को रुला दूँ मैं/२
*
शायद कहीं  पे  भूल  से वादा  गया मैं भूल
जिससे लिखा है न्याय में खुद को दगा दूँ मैं/३
*
घर में उजाला  मेरे  भी  आयेगा डर यही
पथ में किसी के दीप तो यारो जला दूँ मैं/४
*
अपना पराया भेद  वो  भूलेगा इस से क्या
उसकी जमीं में अपनी भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2021 at 11:14pm — 2 Comments
११२१/२१२२/११२१/२१२२
भरें खूब घर स्वयं के सदा देशभर को छल के
मिले सारे अगुआ क्योंकर यहाँ सूरतें बदल के/१
*
गिरी  राजनीति  ऐसी  मेरे  देश  में  निरन्तर
कोई जेल से लड़ा तो कोई जेल से निकल के/२
*
मिटा भाईचारा अब तो बँटे सारे मजहबों में
सही बात हैं समझते कहाँ लोग आजकल के/३
*
हुई कागजों में  पूरी  यूँ  तो  नीर की जरूरत
चहुँ ओर किन्तु दिखते हमें सिर्फ सूखे नल के/४
*
कई दौर गुफ्तगू के किये हल को हर समस्या
नहीं आया कोई रस्ता कभी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2021 at 11:22pm — 2 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
 हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
 सम्बल दिया है हरपल  कमजोर बाजुओं को।१।
 *
 कहती है रूह उन  की  बलिदान जो हुए थे
 पहचान कर  हटाओ  जयचन्द पहरुओं को।२।
 *
 शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
 करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
 *
 उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
 बैठे जो बन्द कर के  दिन  में भी चक्षुओं को।४।
 *
 कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
 हर डाल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2021 at 10:19pm — 14 Comments
 छीन के उनका पूरा बचपन कैसे कैसे लोग यहाँ
 काट रहे हैं  अपना  जीवन  कैसे कैसे लोग यहाँ।२।
 *
 पाने को यूँ नित्य शिखर को साथी देखो दौड़े जो
 कर बैठे औरों  को  साधन  कैसे  कैसे लोग यहाँ।२।
 *
 स्वार्थ सधे तो अपनों से भी झूठ छिपाने साथी यूँ
 कीचड़ को कह  देते  चन्दन कैसे कैसे लोग यहाँ।३।
 *
 साध न पाये यार सियासत उस खुन्नस में देखो तो
 बाँट रहे हैं मन का …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2021 at 6:30am — 12 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
 न दे साथ जग  तो अकेला बना
 नया अपने दम पर जमाना बना।१।
 *
 थका हूँ जतन कर यहाँ मैं बहुत
 कि घर मेरा तू ही शिवाला बना।२।
 *
 तुझे अपना कहते बितायी सदी
 न  ऐसे तो पल  में  पराया बना।३।
 *
 यहाँ सच की बातें तो अपराध हैं
 यही सोच खुद को न झूठा बना।४।
 *
 बड़ों के दिलों में भरा दोष अब 
 स्वयं को तनिक एक बच्चा बना।५।
 *
 बहुत दम है साथी कहन में मगर
 नहीं अपने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 27, 2021 at 6:45am — 7 Comments
परत घटे ओजोन की, बढ़े धरा का ताप
 काटे हम ने पेड़ जो, बने वही अभिशाप।१।
 *
 छन्नी सा  ओजोन  ही,  छान  रही  है धूप
 घातक किरणें रोक जो, करती सुंदर रूप।२।
 *
 गोला सूरज आग का, विकिरण से भरपूर
 पराबैंगनी  ज्वाल  को, ओजोन  रखे  दूर।३।
 *
 जीवन है ओजोन से, करो न इस को नष्ट
 बिन इसके धरती सहित होगा सबको कष्ट।४।
 *
 क्लोरोफ्लोरोकार्बन,  है जिन की सन्तान
 एसी फ्रिज ये उर्वरक, दें उसको नुकसान।५।
 *
 कर इनका उपयोग कम, करना अच्छा काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 15, 2021 at 5:30pm — 4 Comments
निज भाषा को जग कहे, जीवन की पहचान
मिले नहीं इसके बिना, जन जन को सम्मान।१।
*
बड़ा सरल पढ़ना जिसे, लिखना भी आसान
पुरखों से हम को मिला, हिन्दी का वरदान।२।
*
हिन्दी के प्रासाद का, वैज्ञानिक आधार
तभी बनी है आज ये, भाषा एक महान।३।
*
जैसे  धागा  प्रेम  का, बाँध  रखे  परिवार
उत्तर से दक्षिण तलक, एका की पहचान।४।
*
नियमों में बँधकर रहे, हिन्दी का हर रूप
भाषाओं में हो गयी, इस से यह विज्ञान।५।
*
गूँजे चाहे विश्व  में, हिन्दी  कितना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:08pm — 3 Comments
एक दोहा गज़ल - प्रीत -(प्रथम प्रयास )
छूट गयी जब  से  यहाँ, सहज  प्रेम की रीत
आती तन की वासना, बनकर मन का मीत।१।
*
चलते फिरते तन करे, जब  तन से मनुहार
मन को तब झूठी लगे, मन की सच्ची प्रीत।२।
*
एक समय जब स्नेह में, जाते थे जग हार
आज सुवासित वासना, चाहे केवल जीत।३।
*
भरे सदा ही  प्रीत ने, ताजे तन मन घाव
प्रेम रहित जो हो गये, खोले घाव अतीत।४।
*
मण्डी जब  से  देह को, कर  बैठे हैं लोग 
मन से मन के मध्य में, आ पसरी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2021 at 11:25am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नफरत ने जो दिया वो मुहब्बत न दे सकी
हमको सफलता  यार  इनायत न दे सकी।१।
*
चर्चा प्रलय की करती हैं धर्मों की पुस्तकें
पापों को किन्तु अन्त कयामत न दे सकी।२।
*
बूढ़े हुए  हैं  लोग  जो  चाहत  में  स्वर्ग के
कह दो उन्हें कि मौत भी जन्नत न दे सकी।३।
*
सोचा था एक हम ही हैं इसके सताये पर
सुनते खुशी उन्हें  भी  सराफत न दे सकी।४। 
*
जो बन के सीढ़ी  खप  गये सत्ता के वास्ते
उनको कफन भी यार सियासत न दे सकी।५।
*
चाहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2021 at 8:39pm — 3 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
 चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
 अँधेरों से डर कर  चढ़ा रौशनी पर।१।
 *
 किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
 बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
 *
 बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
 कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
 *
 खड़े  देवता  हैं  सभी  कठघरे में
 करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
 *
 सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
 उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
 *
 अजब देवता जो डरे आदमी से
 हुआ द्वंद भारी यहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments
 पर्व गुरुओं  का  मनाते आज हम
 और मन के पास आते आज हम।१।
 *
 पुष्प भावों के  चढ़ाते आज हम 
 शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
 *
 है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
 मान उनको दे जताते आज हम।३।
 *
 सीख उनकी आचरण में ढालकर
 कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
 *
 आब भर कर है सितारों सा किया
 हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
 *
 ज्ञान दाता  बढ़  बिधाता  से हैं तो
 यश उन्हीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments
वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
*
मथुरा में  पर  कंस  का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
*
बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश  ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
*
लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये  तेज  से, कारागृह के द्वार।४।
*
हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा  गेह  में, किया  कंस से दूर।५।
*
गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
 झेलती  मझधार  अपनी  जिन्दगी 
 कब  लगेगी  पार  अपनी जिन्दगी ।१।
 *
 आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
 खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
 *
 शब्द  इस  में  है  न  कोई  हर्ष का
 बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
 *
 यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
 होती गर  त्यौहार  अपनी जिन्दगी।४।
 *
 हम ने ही  जन्जीर  बाँधी  पाँव को
 कैसे  ले  रफ्तार  अपनी  जिन्दगी ।५।
 *
 सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
 सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
 समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
 *
हैं केवल रेशमी धागे  न  भूले से भी कह देना
 लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
 *
 पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
*
 बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
 सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
२१२२/२१२२/२१२
 होंठ हँसते हैं  तो  मन में पीर है
 जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
 *
 जो सिखाता था कलम ही थामना
 वो भी  हाथों  में  लिए  शमशीर है।२।
 *
 झूठ को आजाद रक्खा नित गया
 सच के  पाँवों  में  पड़ी  जंजीर है।३।
 *
 हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
 *
 रास नेताओं  से  करती है बहुत
 रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
 *
 इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
 झूठ की  भी  क्या  गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
 तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
 मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
 *
 बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
 अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
 *
 हम खुद में व्यस्त  और  वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
*
 इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
 नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
 *
 उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
 तुम्हारी कुर्सी का  जब  है  यही  आधार नेता जी
 कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
 *
 सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
 लगे करने में कुनबे  का  सदा अभिसार नेता जी।२।
 *
 जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
 जताते क्यों नहीं उस का  कभी आभार नेता जी।३।
 *
बने केवल धनी का ही सहारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments
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