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ये ख़ामोशी तुम्हारी

खामोशी तोड़ सकती है, ख़ामोशी जोड़ सकती है,
किसी बहके से रिश्ते को ख़ामोशी मोड़ सकती है,
खामोश रहता मैं अगर इससे सुकून मिलता,
तुम्हारी पर ये ख़ामोशी मेरा दम तोड़ सकती है.

बहुत कम दिन बचे हैं अब हमारे पास ओ प्रियतम,
कहीं खामोश न रहते हुए निकले हमारा दम,
अगर मिलना न हो हमसे तो बेशक न कभी मिलना,
इक बार हंसकर देख ही लो दर्द होगा कम. 

Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 11:16am — 1 Comment

ये बदलता स्वरुप

जब बेटे की जिद्द,



माँ के वात्सल्य काजल को,



आँखों से पहले ही रोक लेती है......


जब पिता का…
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Added by neeraj tripathi on February 9, 2011 at 11:14am — 1 Comment

रिपोर्ट :- हीरे जैसी धार बनाम कथ्य शिल्प -०४

रिपोर्ट :-  'हीरे जैसी धार' बनाम कथ्य शिल्प -०४ 

कथ्य शिल्प की चौथी मासिक कवि गोष्ठी दिनांक ०८ फरवरी २०११ को काशी के पराडकर भवन में आयोजित की गयी | अध्यक्षता पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ने की | विशिष्ट अतिथि…

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Added by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 9:46am — 2 Comments

ग़ज़ल :- ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है

ग़ज़ल :- ग़ज़ल मेरी में कोई छल नही है

ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है ,

समस्याएं बहुत हैं  हल नहीं है |

 

तुम्हारी फाइलें नोटों से तर हैं ,

पियासे गांव में एक नल नहीं हैं |

 

तरक्की के नए आयाम देखो…

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Added by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 8:31am — 6 Comments

ANK JYOTISH 09.02.2011

 

अंक १ आज का दिन कोई विशेष बदलाव आपकी स्थिति में नहीं होगा/परन्तु आज नव निवेश न कर व अपने सहचर की किसी प्रकार की अवहेलना न केरे,अन्यथा पेरशानी का सामना करना पड़ेगा/

 अंक २

आज अपने  क्रोध पर नियंत्रण रखें/आहार और सेहत पर भी विशेष ध्यान दें/

सोंदर्य प्रसाधन विक्रेता,चोकोलेट,कोफी

,चमड़े के उत्पादों के व्यवसायी ,फैशन व ग्लैमर की गतिविधियों से जुड़े लोगों के लिए अनुकूल दिन है/

अंक ३

ग्रहस्थ व् व्यवसाय,नौकरी की जिम्मेवारियां सहजता से निभा …

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Added by rajni chhabra on February 8, 2011 at 10:20pm — No Comments

बसंत की पूर्वसंध्या - मेरी फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला -







७ फरवरी २०११ - रात्री ११ बजे





कितनी सर्द थी वो रात

हवा के तीव्र शीत  बवंडर

तड़ित तोडती सन्नाटा

हिम शिखर की नोंक पर

विस्फोटित होता बज्र भाला

लिहाफों के भीतर बस्ती

ठिठुरी सिमटी सकुचाई

कुछ जीव ओट की तलाश में

भटके थे रात भर

और दूर कहीं शुरू हुवा भोर

रंग लिए रुपहला…
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Added by Dr Nutan on February 8, 2011 at 8:30pm — 1 Comment

सैर फरवरी की धूप में

फरवरी की धूप में

बिखरे -२ से रूप में

चल रही थी मौज में

मीठी मीठी सी धूप में…

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Added by Venus on February 8, 2011 at 5:00pm — 1 Comment

ghazal

है कयामत या है बिजली सी जवानी आपकी

खूबसूरत सी मगर है जिंदगानी आपकी



तीर आँखों से चलाना या पिलाना होंठ से…

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Added by aleem azmi on February 8, 2011 at 2:13pm — No Comments

बसंत तुम देर से क्यूं आये ? -- डॉ नूतन गैरोला



ये पतझड़ भी कैसा था

अबके बहुत लंबा

और शीत ?

घनी गहरी बरफ में

हर फूल दबे मुरझाये|

बसंत! तुमने क्यों कर न देखा

मिट्टी… Continue

Added by Dr Nutan on February 8, 2011 at 6:00am — 15 Comments

कुर्रतुल एन. हैदर

कुर्रतुल एन. हैदर

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो

प्रभात कुमार रॉय

उर्दू साहित्य के लिए हिंदुस्तान के सर्वोच्च साहित्य पुरुस्कार ज्ञान पीठ अवार्ड से नवाज़ी गई। कुर्रतुल एन हैदर को उनके चाहने वाले एनी आपा के नाम से पुकारा करते थे। हिंदी और उर्दू पाठकों के मध्य समान रुप से लोकप्रिय रही, कुर्रतुल एन हैदर वस्तुतः उर्दू के साहित्याकाश पर एक जगमगाता हुआ सितारा रही। उनसे पहले ज्ञानपीठ अवार्ड मकबूल शायर फिराक़ गोरखपुरी को प्रदान किया गया था । अपनी शानदार रचनाओं से कुर्रतुल एन हैदर उर्दू… Continue

Added by prabhat kumar roy on February 7, 2011 at 6:15pm — 3 Comments

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !



देश को लूट कर

हक़ हकूक छीन कर

जो बने हैं बड़े

और तन कर खड़े

बेशर्म बेहया

उन दरख्तों के पत्ते और सत्ते ओ माँ !

उनकी धूर्त और मक्कार शाखाएं भी

तू हरले सभी !

तू हरले…

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Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 4:00pm — 3 Comments

रिपोर्ट : "परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी

"परिवर्तन" की ८१ वीं गोष्ठी

काशी की सक्रीय संस्था "परिवर्तन" की ८१ वीं काव्य गोष्ठी दिनांक ०६ फरवरी २०११ को जनाब अफ़सोस गाजीपुरी के निवास पर हुई | इसमें बेखुद गाजीपुरी की अध्यक्षता में शाद शिकोहबादी , रोशन मुगलसरावी , अभिनव अरुण , मजहर शकुराबादी , शमीम गाजीपुरी , डॉ.मंजरी पाण्डेय ,आदि कवियों -शायरों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया |संचालन डॉ. सुमन राव ने किया |

करीब पचहत्तर वर्षीय जनाब अफ़सोस गाजीपुरी इस संस्था को पिछले…

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Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 3:43pm — 2 Comments

बेमतलब का दिन

दिन बहुत देखे

रोज कोई खास दिन

कोई प्यार का दिन

कोई त्यौहार का दिन

कोई इजहार का दिन

हर दिन का एक मतलब है

छुट्टी का दिन जो सन डे है

बन गया वो अब फन डे है

काश कोई बेमतलब का दिन भी होता

जिसका कोई नाम न होता

करने को कोई काम न होता

मुश्किल किसी को आराम न होता

उस दिन की कोई परभाषा न होती

इक दूजे से कोई आशा न होती

किसी के मन में निराशा न होती

सब अपनी धुन में नाचते

अच्छा और बुरा न जांचते

जैसे चलती है हवा… Continue

Added by Bhasker Agrawal on February 7, 2011 at 3:09pm — 3 Comments

" एक चीख " एक सच्ची घटना .. Dr Nutan Gairola

ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ?

एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं  अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी  थी | मैं  स्त्रीरोग…

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Added by Dr Nutan on February 6, 2011 at 11:30pm — 6 Comments

बह्र पहचानिये- 3

ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है|

इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातः 08 बजे एक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि…

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Added by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 5:00pm — 7 Comments

मेरे पापा

'पापा'

आपका जाना

दे गया

इक रिक्तता

जीवन में,

असहनीय पीड़ा

मेरे मन में..

 

'माँ'

आज भी

बातें करती है

लोगों से,

लेकिन उसकी

बातों में

होता है

इक 'खालीपन'

आज भी

उसकी निगाहें

देखती हैं

चहुँ ओर

'पर'

उसकी आँखों में हैं

इक 'सूनापन'...  

 

माँ के, दीदी के

छोटू के, भैया के ..

सबके मन में

आपकी याद बसी है

'वो'…

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Added by Anita Maurya on February 6, 2011 at 4:18pm — 5 Comments

अँधेरे की चीख से

यक़ीनन आप मेरे रहनुमा है

तभी तो कारवां ये बदगुमां है

 

निगाहे शौक से देखे अगर वो 

ज़हां में आशियां ही आशियां है

 

उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ

मेरी आँखों के आगे इक मकां है

 

छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से

न जाने कौन अपने दर्मियां है

 

वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी 

हर इक तारीख में अँधा कुआं है

 

दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ

जमीं की आग सा मेरा बयां है  

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment

मेरे संग्रह "अँधेरे की चीख" से

उदघोष में दम चाहिए

 मिमिया रहे है लोग

 

ये कौन क़त्ल हो गया

बतिया रहे है लोग

 

पूनियों सा वक़्त को

कतिया रहे है लोग

 

संवेदना की मौत पर

खिसिया रहे है लोग

 

धोखे की टट्टियों को

पतिया रहे है लोग

 

कुर्सी पे बैठे बैठे

गठिया रहे है लोग

 

आदम नहीं गधे सा

लतिया रहे है लोग

 

मौके भुना रहे है

हथिया रहे है लोग

 

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — No Comments

ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा

ग़ज़ल : - मत पढ़ो सच का ककहरा

ज़ख्म हो जाएगा गहरा ,

मत पढ़ो सच का ककहरा |

 

गड़ रहा आँखों में परचम ,

मैं हूँ गूंगा और बहरा…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 7 Comments

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