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इजहारे मुहब्बत

इजहारे मुहब्बत

प्यार करना पहिले हिम्मत का काम था

दर्दे दिल लेना मुहब्बत का नाम था

बर्षो करते थे केवल दीदार

हो नहीं पता था प्यार का इजहार

जब चारो और फ़ैल जाती थी, प्यार की खुशबु…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments

बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते



बचपन की मेरी मेहबूबा

मिली मुझे बाजार में

मियां और बच्चों के संग

बैठी थी बो कार में

नजरे चार हुई तो बो

होले से मुस्कुरा पड़ी

उतर कार से झट फुर्ती से

सम्मुख मेरे आन खड़ी

स्पंदित हुआ तन बदन मेरा

पहले सा अहसास हुआ

सामने थी मेरे बो बाजी

हारा जिससे मुहब्बत का जुआ

किम्कर्ताब्यविमूढ़ खड़ा था में

ध्यान मेरा उसने खीचा

आओ मिलो शौहर से मेरे

आपके हे ये जीजा

दिल में मेरे मचा हुआ था

कोलाहल…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 2 Comments

लघु कथा : गुमराह

श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का  लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ…

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Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

जिंदगी भर - ग़ज़ल

टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,

दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,

अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,

मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:07am — 14 Comments

कुण्डलिया - भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि (१५ दिसंबर) पर विशेष

मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments

दूर से जो अच्छा लगे ....

( कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लिखूं ........लेकिन जब कलम उठाया तो जो लिखा आपके सामने है ....आशा है आपको पसंद आएगी )

----------------------------------

दूर से देखने में जो अच्छा लगे ,

पास आने में वो ना अच्छा लगे ।।



जिन आँखों में चाहत हो प्यार की

कभी देखे या ना देखे अच्छा लगे ।।



जैसे बगिया हो कोई पहरों के बीच  

फूल तोड़े ना कोई तो अच्छा लगे ।।



नाम हो रोशनी से बहुत ही भला

काम आये सबको तो अच्छा लगे ।।



चाँद उतरे जमीं पे तो…

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Added by श्रीराम on December 15, 2012 at 10:00am — 4 Comments

स्वप्न तिरोहित मन की बातें

स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,

क्या तुमको अच्छी लगती हैं?

कुछ डोरे भूले भटके से ,

नयनो में तिरते रहते हैं.

कुछ पलाश के फूल रखे हैं

सुर्ख लाल गहरे से रंग के

अग्निशिखा की छाया जैसी,

निशा द्वार पर जलते बुझते .

भटको मत अब नयन द्वार पर

भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे

निशा भैरवी तान सुनेगी ,

अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,

गीले बालों…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:00pm — 13 Comments

कुछ कहना था तुमसे ...इन्तजार

कुछ कहना था तुमसे मन की

जब आओगे तब कह दूँगी

कब मन ये मेरे पास रहा,

यादों को बाँध के रख लूँगी 



अब दूर देश के…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 6:00pm — 2 Comments

लघु कथा : पगली

आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:00pm — 2 Comments

असीमित ...

व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 4:00pm — 11 Comments

मन...

मन ही सवालों से उलझता है !
मन ही सवालों से कतराता है !
मन ही दर-बदर भटकता है!
मन ही भूलने की बात करता है !
झगड़ता है, चिल्लाता है , कोसता है!
यह मन ही तो है जो रोता है !
अनुभव है ,सच नहीं है,
जाने भी दो, जिंदगी है ,
समझकर सबकुछ खुद को ,
समझाने की कोशिश करता है !
कुछ पल तो शांत बैठता है
और फिर अचानक -
मन ही मन कह उठता है
आह! खट्टे अंगूर !

अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 3:30pm — 9 Comments

तुम्हें चुप रहना है

तुम्हें चुप रहना है

सीं के रखने हैं होंठ अपने

तालू से चिपकाए रखना है जीभ

लहराना नहीं है उसे

और तलवे बनाए रखना है मखमल के

इन तलवों के नीचे नहीं पहननी कोई पनहियाँ

और न चप्पल

ना ही जीभ के सिरे तक पहुँचने देनी है सूरज की रौशनी

सुन लो ओ हरिया! ओ होरी! ओ हल्कू!

या कलुआ, मुलुआ, लल्लू जो भी हो!

चुप रहना है तुम्हें

जब तक नहीं जान जाते तुम

कि इस गोल दुनिया के कई दूसरे कोनों में

नहीं है ज्यादा फर्क कलम-मगज़ और तन घिसने वालों को…

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Added by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:03pm — 13 Comments

आग

आग 
------

आरक्षण की नेता तुमने

ये कैसी आग लगाई 
मिल जुल संग जो  साथ रहे
दुश्मन हो गए भाई 
प्यारा कितना  देश था भारत 
सारा  जग करता था आरत 
सत्ता की खातिर  देश को बांटा 
जो मिला उसे एक दूजे ने काटा 
भाइयों में खूब जंग करायी 
आरक्षण की नेता तुमने 
ये कैसी आग…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 14, 2012 at 2:39pm — 8 Comments

वर्ना फिर पछताय

अंधी जीवन दौड़ में, व्यथा करो न होड़        
ज्यादा धन की दौड़ में,है तनाव का मौड़ ।
 
लूट लूट कर घर भरा, जोड़े लाख करोड़,
साथ न वह ले जा सका,गया यही पर छोड़
  

घातक तनाव जो करे,…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 14, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

एक्सचेंज मेला

एक्सचेंज मेला

                                                          दीपावली में खरीददारी की मची हुई थी जंग

खरीददारी करने गए हम बीबी के संग

बदला पुराना टीबी नया टीबी ले आये

दिल में कई बिचार आये

काश बीबी एक्सचेंज का कोई ऑफर पायें

नई नबेली…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 14, 2012 at 12:00pm — 10 Comments

बूढ़े बाबा की दीवानी

मोटी - मोटी चादर तानी,

फिर भी भीतर घुसकर मानी,

जाड़े की जारी मनमानी,

बूढ़े बाबा की दीवानी,

दादा - दादी,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 11:24am — 16 Comments

आओ वालमार्ट

आओ वालमार्ट 

स्वागत है आपका

अपनी कमज़ोर हो रही 

अर्थव्यवस्था को

मज़बूत करने

आओ

हमारी मज़बूत होती

अर्थव्यवस्था को

कमज़ोर करने

आओ

 

हमने आपके हथियार नहीं लिए

इस नुक्सान की भरपायी के लिए

नयी संभावनाओं को तलाशने

आओ

किसानों के पसीने निचोड़ने

गरीब जनता का ख़ून चूसने

आओ वालमार्ट

 

यूनियन कार्बाइड की याद

धुंधली पड़ चुकी है

तुम नयी यादें देने…

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Added by नादिर ख़ान on December 14, 2012 at 11:00am — 3 Comments

हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो ...

हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो

पर दिशा मुझे तय करनी है,

पर मैं ही अकेला पथिक नहीं

आशा सच हो ये परखनी है

सुनता ही नहीं कोई मन की

अब खुद से खुद को सुनना है

संयम गर अपना साथी हो

फिर मंजिल पे ही मिलना है

कुछ ख्वाब नहीं सोने देते

हर पल बस करते हैं बातें

शुरुआत लक्छ्य की आज अभी

सूरज की बात ना तकनी है,

वो आता है हर सुबह…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:30am — 9 Comments

लघु कथा : परिवर्तन

ये लो महारानी जी आज नदारद हो गयीं , इन लोगों के मिजाज का कोई ठिकाना ही नहीं है..सुबह सुबह "गौरम्मा" के ना आने से मन खिन्न हो गया , गौरम्मा हमारी काम वाली 

हमेशा तो कह कर जाती थी , माँ ( दछिन भारत में येही संबोधन आदर में देते हैं ) हम कल नहीं आ पायेगा , मगर आज सुबह के ११ बज रहे हैं कोई खबर ही नहीं . दो तीन दिन से मैं उसे कुछ बुझी बुझी देख रही थी , मगर मेहमानों की…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:00am — 15 Comments

दूरियों की दूरी

मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव

दूरियों की दूरी ...

कम नहीं होती।

 

बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो

किसी "एक" के पास आने से,

नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,

या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप…

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Added by vijay nikore on December 14, 2012 at 12:00am — 4 Comments

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