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आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे दृश्यों से रूबरू होकर मन सोच लेता है उस विषय परक शब्द गुन्थित माला को.

रोज ही मैं उस पगली को देखती थी.फुटपाथ पर हंसती हुयी, खिलखिलाती हुयी, जैसे बच्चों के खेलने का मैदान हो, एक प्लास्टिक के पैकेट में जाने क्या क्या खाने के लिए रखती हुयी, चावल, सब्जी, डबल रोटी के टुकड़े...और खुद को अजीब अजीब प्रसाधनो से सजा कर रखती हुयी. विगत जीवन क्या होगा उसका येही सोचती थी मैं , जब भी उसको देखती थी. उसकी वो जगह उसके मकान जैसी. सड़क पर चबूतरा, उसके ऊपर पेड़ और वहीं उसका वास,...

किसी त्यौहार के एवज में तीन दिन की छुट्टी थी, आज रविवार था, देर से सोकर उठी थी, सामने अंग्रेजी का अखबार फैलाया, अभी नीद की खुमारी ने पलकों के पटल से कब्जा नहीं छोड़ा था, मगर,,ये क्या ये तो उसी पगली की तस्वीर थी उसमे , क्या हुआ ,,जल्दी से आँखों के दायरे को बढ़ाया औए एक सांस में पढ़ गयी पूरी खबर , सड़क पार करते हुए किसी बच्चे को बचाते हुए छोड़ दिया था उस पगली ने इस बे-रहम दुनिया को,,,पढ़ते ही मन अजीब सा हो गया, और जब भी उस पेड़ उस चबूतरे को देखती हूँ तो उस पगली को सोचकर मन भर आता है,,,

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Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 7:52pm

अजय सर....हमारे आस पास नजरों के सामने बहुत कुछ है, समझने के लिए, सोचने के लिए , मगर हमारी भावनाएं खुद की उलझनों में सीमित हो कर रह जाती हैं...थोडा सा इंसान को खुद के आवरण से बाहर निकालना है और मन की तरंगें अनजाने में ही सही तारतम्य बैठा लेती हैं,,,आपने पढ़ा सर,,,,आभार,,,,

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 6:29pm

pagli thi kintu naari thi kurbani balidan ki usko bimaari thi bahut marmik prasang tha aapne gor kiya kyonki aapme sanbedna thi nahi to ye aam ghatna he aapki sugrahita ke liye badhai 

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