For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (505)

भय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत

बाँकी हर दुख पर रही, सदा उसी की जीत।१।

**

नाविक हर तूफान से, पा लेगा नित पार

डर केवल पतवार का, ना निकले गद्दार।२।

**

मजदूरी  में  दिन  कटा,  कैसे  काटे  रात

टपके का भय दे रही, निर्धन को बरसात।३।

**

आते जाते दे हवा, दस्तक जिस भी द्वार

लेकर झट उठ  बैठता, हर कोई तलवार।४।

**

शासन  बैठा  देखता, हर  संकट  को  मूक

निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।

**

मानवता से प्रीत थी,  पशुपन से भय मीत

इस…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2020 at 6:06am — 6 Comments

जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२



भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें

समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।

**

गैरों से  जख्म  खायें  तो  अपनों  से बोलते

अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।

**

बातें सुधार से  अधिक  भाती  हैं टूट की

दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।

**

टूटन  दरो - दीवार  की  करते  रफू  मगर

जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।

**

जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी

दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 7:41am — 7 Comments

वंचितों के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

  1. फूलों की नाराजगी, काँटों का मनुहार

    दुखियारों के भाग में, ऐसा ही सन्सार।१।

    **

    नदिया ने  दुत्कार  दी, किया  रेत  ने प्यार

    जिसके दम करते रहे, जीवन का विस्तार।२।

    **

    कौतुक करता दुख रहा, पर सुख रहा उदास

    घावों ने  मन  में  भरी, पीड़ा  निहित मिठास।३।

    **

    यादों  की  चौपाल  में, बिन  घूँघट  के  पीर

    जाने क्या क्या कह गया, आँखों बहता नीर।४।

    **

    मुर्दा दिल की बस्तियाँ, चलती फिरती लाश

    हलचल  कैसी  भी  रहे, जीवन  रहे  हताश।५।

    **

    किस्मत…
Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2020 at 9:41am — 6 Comments

सभ्य कितना चल गया सबको पता -गजल (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर')

२१२२/ २१२२/२१२२



द्वार पर वो  नित्य  आकर  बोलता है

किन्तु अपना सच छुपाकर बोलता है।१।

***

दोस्ती का मान जिसने नित घटाया

दुश्मनों को अब क्षमा कर बोलता है।२।

***

हूँ अहिन्सा का पुजारी सबसे बढ़कर

हाथ  में  खन्जर  उठाकर  बोलता है।३।

***

गूँज घन्टी की न आती रास जिसको

वो अजाँ को नित सुनाकर बोलता है।४।

***

दौड़कर मंजिल को हासिल कर अभी तू

पथ  में  काँटे  वो  बिछा कर  बोलता …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 10:00pm — 5 Comments

पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है

काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।

**

पहले जगकर रोज  भोर  में  सूरज ताका करते थे

अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।

**

छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था

बेटे हलधर के  हम  जिन को  बोना अच्छा लगता है।३।

**

घोर तमस के बीच भी जो  तब चौपालों में रहते थे

उनको…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments

शौक से लूटे जिसे भी लूटना है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/ २१२२/ २१२२

आप कहते  आपदा  में योजना है

सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।

**

बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे

चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।

**

घोषणाएँ हो  रही  हैं नित्य जो भी

वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।

**

बँट रहा है ढब  खजाना  सत्य है यह

किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।

**

हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था

शौक  से  लूटे  जिसे  भी लूटना …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments

जो कारवाँ भरी थी राहें कहाँ गयीं अब (गजल) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२२/२२१/ २१२२

**

लोरी  सुना  सुलाती  रातें  कहाँ  गयीं अब

बचपन में चहचहाती सुब्हें कहाँ गयीं अब।१।

**

दिनभर का खेलना वो हर भूख भूलकर नित

मस्ती भरी  गजब  की  शामें  कहाँ  गयीं अब।२।

**

हर छलकपट से बंचित लड़ना झगड़ना लेकिन

मन से निकलती  सच्ची  बातें  कहाँ  गयीं अब।३।

**

जिनपर थी झुर्रियाँ ढब हरपल थी कँपकपाती

रखती थी  किन्तु  थामे  बाहें  कहाँ गयीं अब।४।

**

वो होंट खिल-खिलाते मुरझा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2020 at 6:52am — 4 Comments

कोरोनामय दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कोरोनामय जग हुआ, फीका पड़ा बसन्त

माँगे खुद की खैर अब, राजा, रंक, महन्त।१।

**

जन्मा चाहे चीन में, लाये अपने लोग

जिससे सारे देश में, फैल रहा यह रोग।२।

**

विकट घड़ी में आपदा, आयी सबके द्वार

घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार।३।

**

घर में बैठो चन्द दिन, ढककर खिड़की द्वार

कोरोना पर  वार  को, यही सफल  हथियार।४।

**

आज चिकित्सक का कहा, थोड़ा मानव मान

घर  में  चुपके  बैठ  कर, होगा  रोग  निदान।५।

**

करो नमस्ते दूर से , नहीं मिलाओ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2020 at 8:04pm — 2 Comments

किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर पाबन्दी -गजल

१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/

*

कभी कतरों में बँटकर  तो  कभी सारा गिरा कोई

मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।

*

कि होगी कामना  पूरी किसी  की लोग कहते हैं

फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।

*

गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं  लेकिन

सुना हमने यहाँ  खुशियों  का भी मारा गिरा कोई।३।

*

किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments

रंगों के घन खूब उड़ायें - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

***

आओ नाचें,  झूमें, गायें  फिर  से अब के होली में

इक-दूजे को खूब लुभायें फिर से अब के होली में।१।

**

देख के जिसको मन ललचाये ज़न्नत के वाशिन्दों का

रंगों के  घन  खूब  उड़ायें  फिर  से  अब के होली में।२।

**

जीवन में  रंगत  हो  सब  के  संदेश  हमें देे होली 

रोते जन को यार हँसायें फिर से अब के  होली में।३।

**

आग सियासत चाहे कितनी यार लगाये नफरत की

प्रेम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2020 at 7:30am — 8 Comments

रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी को - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/२१२२

*

फूलों की क्या जरूरत उपवन में आदमी को

भाने  लगे  हैं  काँटे  जीवन  में  आदमी  को।१।

**

क्या क्या मिला हो चाहे मन्थन में आदमी को

विष की तलब रही  पर  जीवन में आदमी को।२।

**

आजाद जब है  रहता उत्पात करता बेढब

लगता है खूब अच्छा बन्धन में आदमी को।३।

**

आता बुढ़ापा जब है रूहों की करता चिन्ता

तन की ही भूख केवल यौवन में आदमी को।४।

**

कितना हरेगा विष ये चाहे पता नहीं पर

रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2020 at 4:21pm — 2 Comments

होली के रंगों से फिर क्यों - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं

वो ही  सच्चे  अर्थों  में   सन्सार  बचाया  करते हैं।१।

**

उन लोगों से ही तो  कायम  हर शय की ये रंगत है

जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।

**

तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो

हम राख  की  ढेरी  में  देखो  अंगार  बचाया  करते हैं।३।

**

जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 4, 2020 at 7:30am — 5 Comments

दिल्ली जलती है जलने दे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

**

कब कहता हूँ आम आदमी मुझको अपने पैसे दे

हो सकता है तुझ से  कुछ  तो क़ुर्बानी में रिश्ते दे।१।

**

दिल्ली जलती है जलने दे मुझे सियासत करने दे

हर नेता का ये कहना  है  कुछ तो कुर्सी फलने दे।२।

**

ये  लाशों  के  ढेर  हमेशा  सीढ़ी  बन  कर  उभरे  हैं

इनको मत रो इन पर मुझको पद की खातिर चढ़ने दे।३।

**

खूब सुरक्षा मुझे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2020 at 8:30am — 13 Comments

तरही गजल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122 / 2122 / 2122 /  212

**

उनका वादा राम का  वादा  समझ बैठे थे हम

हर सियासतदान को सच्चा समझ बैठे थे हम।१।

**

कह रहे थे सब  यहाँ  जम्हूरियत है इसलिए

देश में हर फैसला अपना समझ बैठे थे हम।२।

**

गढ़ गये पुरखे हमारे  बीच  मजहब नाम की

क्यों उसी दीवार को रस्ता समझ बैठे थे हम।३।

**

आस्तीनों  में  छिपे  विषधर  लगे  फुफकारने

यूँ जिन्हें जाँ से अधिक प्यारा समझ बैठे थे हम।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2020 at 8:28am — 9 Comments

झूठी बातें कह कर दिनभर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



झूठी बातें कह कर दिनभर जब झूठे इठलाते हैं

हम सच के झण्डावरदारी क्यों इतना शर्माते हैं।१।

***

अफवाहों के जंगल यारो सभ्य नगर तक फैल गये

क्या होगा अब विश्वासों  का  सोच सभी घबराते हैं।२।

***

कैसे सूरज चाँद सितारे  अब तक चुनते आये हम

बात उजाले की कर के  जो  नित्य  अँधेरा लाते हैं।३।

***

नित्य हादसे  होते  हैं  या  उन में  साजिश होती है

छोटा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:00am — 8 Comments

रखकर जो नाम राम का -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

**

जो भी वतन में दोस्तो दिखते कलाम हैं

हर वक्त उसकी शान में कहते सलाम हैं।१।

**

दुत्कार उनको हम रहे केवल सुनो यहाँ

जयचन्दी नीयतों में  जो  रहते इमाम हैं।२।

**

उनका भी मान है  नहीं  केवल लताड़ है

रखके जो नाम राम का रावण से काम हैं।३।

**

नेता  सभी  हैं  एक  से  जो  फूट चाहते

समझेंगे क्या कभी इसे जो लोग आम हैं।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2020 at 4:48am — 8 Comments

राजनीति की धार हमेशा -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



हर शासन अब गद्दारों को यार बहुत हितकारी है

जो करता है बात देश की उसको बस लाचारी है।१।

**

सर्द हवाओं के चंगुल में ठिठुराती आशाएँ बैठी 

सुन्दर सपनों की खेती पर पाला पड़ता भारी है।२।

**

पहले लगता था हम जैसा गम का मारा कोई नहीं

पर जब देखा पाया दुनिया हमसे भी दुखियारी है।३।

**

तुमको भी पत्थर आयेंगे वक्त जरा सा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2020 at 5:30am — 4 Comments

जे पी सरीखे नेता - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/ २१२२

किस काम के हैं नेता किस काम का ये शासन

इनके रहे  वतन  में  जब  नित्य  होनी अनबन।१।

**

किस बात से हैं  सेवक  कहते  पहन के खादी

निर्धन के घर  अगर  ये  डलवा  न पाये राशन।२।

**

अंग्रेज  थे  बुरे  या   चम्बल   के   चोर   डाकू

गर जो हो लूट खाना भर  देश का ही जनधन।३।

**

किस बात की हो चिन्ता  किस बात से परेशाँ

मथकर के दे रही  है  जनता इन्हें तो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2020 at 4:38am — 2 Comments

बारूदों की जिस ढेरी पर-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



विकसित होकर  हम ने  कैसी  ये  तस्वीर उकेरी है

आदमयुग थी यार न दुनिया जितनी आज अँधेरी है।१।

**

बारूदों की जिस ढेरी  पर  नफरत आग लिए बैठी

उससे सब कुछ ध्वंस में बोलो लगनी कितनी देरी है।२।

**

जिसको देखो वही चोट को लाठी लेकर डोल रहा

कहने को पर  सब के  मन  में  सुनते  पीर घनेरी है।३।

**

मजहब पन्थों के हित  में  तो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2020 at 6:19am — 8 Comments

लिए सुख की चाहतें हम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

1121       2122         1121     2122

‌मेरे  साथ  चलने  वाले  तुझे  क्या  मिला  सफर में

‌बड़ा चैन था अमन था बड़ा सुख था तुझको घर में।१।

**

‌कहीं दुख भरी ज़मीं  तो  कहीं  गम का आसमाँ है

‌लिए सुख की चाहतें हम अभी लटके हैं अधर में।२।

**

‌जहाँ  देखता हूँ  दिखता  मुझे  सिर्फ  ये  धुआँ है

‌रह फर्क अब गया क्या  भला  गाँव और' नगर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2020 at 8:09am — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service