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गिरिराज भंडारी's Blog (306)

फ़क़त दो चार पल की बात है ये ( ग़ज़ल - गिरिराज भन्डारी )

1222     1222     122 

फ़क़त दो चार पल की बात है ये

हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये

कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर

कहूँ क्या? आदमी की जात है ये

 

रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?

असल में पीठ…

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Added by गिरिराज भंडारी on March 18, 2014 at 5:00pm — 25 Comments

“ कह मुकरियाँ “ – प्रथम प्रयास ( गिरिराज भन्डारी )

कह मुकरियाँ – पाँच

*******************

मुझे छोड़ वो कहीं न जाये

इधर उधर की सैर कराये

साथ रहे जैसे हो  धड़कन

क्या सखि साजन , नहीं सखि मन

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on March 10, 2014 at 9:00pm — 15 Comments

कहीं चाँद छुप के निकल रहा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212       11212       11212         11212

ये न पूछ शाम ढली किधर , तू ये देख चाँद निकल रहा

समाँ सुर्मयी था जो रात का , वो भी चंपई मे बदल रहा

***

ये तो हौसले की ही बात है ,बड़ी तेज धूप है चार सूँ

किसी सायबाँ का पता नही ,बिना आसरा कोई चल रहा

***…

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Added by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 6:30pm — 16 Comments

हर रास्ता दुश्वार होगा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

2122    2122   2122  2122

गर यक़ीं ख़ुद पर नहीं हर रास्ता दुश्वार होगा

ख़्वाब मे भी फूल देखोगे वहाँ पर खार होगा

 

बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार  होगा

कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा

 

चौक में जो रात को चिल्ला रहा था बात…

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Added by गिरिराज भंडारी on March 2, 2014 at 10:00am — 24 Comments

सात दोहे –'' रिश्ते ''

सात दोहे – '' रिश्ते ''

*******    ******

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:30pm — 46 Comments

गीत कोई गा रहा है आज मेरे मौन में ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122    2122    2122    212

कौन चुपके आ रहा है आज मेरे मौन में

गीत कोई गा रहा है  आज मेरे  मौन में

 

वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं 

बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में

 

ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 6:30pm — 20 Comments

लफ़्ज़ कब जज़्बात को पूरे पड़े ? ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122        212 ( पूरा ) 

 

इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख

बाग  मे  पानी के  फौव्वारे भी देख

 

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 6:00pm — 32 Comments

मन – पाँच दोहे

मन – पाँच दोहे

************

मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर

फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर 

 

मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर

आँख अगर हो  देखती , मन…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 11, 2014 at 6:00pm — 28 Comments

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122   2122  2122    212

बंदरों को फिर मिला शायद मसलने के   लिये

फूल ने मंसूबा कल बान्धा था खिलने के लिये

 

बह के पानी की तरह अब दूर तक वो जायेगा

दर्द  को मैने  रखा था  कल पिघलने के लिये 

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 6:30pm — 16 Comments

सूर्य को तुम देखना अब ओट में होते हुये ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122    2122     2122     212 

सच को देखा आँख मूंदे दिन चढ़े सोते हुये 

आँसुओं से भीगते , बस झींकते रोते हुये

देख भाई बचपनों से, खो न जाये,सादगी   

मैने देखा अनुभवी को धूर्त ही होते हुये

ठीक है अब खूब रोशन आज दिन लगता है…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 6:00pm — 22 Comments

वो तन को ढांकते हैं रोशनी से , ( गज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  122

 

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं

न जाने कह रहे हैं…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 1, 2014 at 6:00pm — 38 Comments

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2212    1212    1212     22 

तारीक़ी फिर लगी मुझे बढ़ी चढ़ी क्यों है   

सूरत में सुब्ह की बसी ये बरहमी क्यों है

क्यूँ रात शर्मशार सी है चुप खड़ी दिखती  

ये सुब्ह बेज़ुबान सी , डरी हुई क्यों है

ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 5:30pm — 22 Comments

फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122       2122       2122  

फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में

फिर बुलाया आज  कोई  है सपन में

फड़फड़ाने फिर लगा कोई परों को

फिर उड़ेगा वो किसी नीले गगन में

फिर से पीड़ा मीठी सी कुछ हो रही है…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:30pm — 31 Comments

बहुत गुमसुम सी लगती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  1222   1222

बहुत गुमसुम सी लगती है

 

ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं

यहाँ के हादसों का सच,…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:30am — 32 Comments

जो गुज़र गया वो गुज़र गया ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212  11212  11212   11212

 

उसे भूल जा तू न  याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया

जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया

 

यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि  उजड़ गया है मेरा चमन 

मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया

 …

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Added by गिरिराज भंडारी on January 9, 2014 at 6:30pm — 47 Comments

बाप के जूते - अतुकांत (गिरिराज भंडारी)

बाप के जूते

***********

जब से

बाप के जूते

बच्चों के पैरों  में

आने लगे हैं ,

वो सही ग़लत

बाप को ही

समझाने लगे हैं  ।…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:00am — 42 Comments

मेरी शायरी का असर है तू ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

॥ नये साल की पहली ग़ज़ल मेरे भगवान को समर्पित ॥

 ॐ श्री साई नाथाय नमः

   11212        11212

मेरी शायरी का  असर  है  तू

मेरी ज़िन्दगी का  हुनर है  तू

मै हूँ एक बुझती सी आग बस

मुझे फिर जला दे ,…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 8:30am — 35 Comments

आकर्षण के नियम (अतुकांत) -गिरिराज भंडारी

आकर्षण – विकर्षण 

चुम्बक मे ही नहीं होता  

भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं

भावों को ।

बस , नियम उलटा है

चुम्बक से ।

एक ही भावों होता है खिचाव …

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Added by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 7:30pm — 22 Comments

कुंडलिया ( गिरिराज़ भंडारी )

कुंडलिया -

सबके अन्दर जी रहा , मेरा , मै का भाव

वही डिगाता है सदा , आपस  का सदभाव

आपस  का  सदभाव , मिटाये ऐसी  दूरी

रिश्ते का सम्मान , हटा दे  हर  मजबूरी

टूटे  रिश्ते जुड़ें , सामने  कहता  रब  के   …

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Added by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 9:00pm — 19 Comments

"दाग" अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

“दाग“ 

********

मूर्खता है ,

होली में रंगे कपड़ों से

दाग छुड़ाने की कोशिश ।

कोई कहता भी नहीं उसे

दाग दार ।

वो अलग हैं , दागियों…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:30pm — 33 Comments

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