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बहुत गुमसुम सी लगती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  1222   1222

बहुत गुमसुम सी लगती है

 

ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं

यहाँ के हादसों का सच, तुम्हें खुद जानना होगा

तुम्हें मालूम तो होगा, कि राहें कुछ नहीं कहतीं

बहुत नोची गयी है ये, बहुत तोड़ी गयी है पर

वो अब तक जी रही है क्यों, ये चाहें कुछ नहीं कहतीं

ये ख़ंज़र पीठ में है क्यों, रफ़ाक़त ये कहाँ की है

बहुत गुमसुम सी लगती है, कराहें कुछ नही कहतीं

ख़ुदा का नूर है सब में, करमफ़र्मा वही है पर

करम चुप चाप बहता है, पनाहें कुछ नहीं कहतीं

उधर कुछ भी असर होता दिखाई क्यों नहीं देता

इधर कितनी रसाई है, ये आहें कुछ नहीं कहतीं 

 

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 5:58pm

आदरणीया प्राची जी , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 10:08am

यहाँ के हादसों का सचतुम्हें खुद जानना होगा

तुम्हें मालूम तो होगाकि राहें कुछ नहीं कहतीं............सही है , कुछ पहेलियाँ खुद ही सुलझानी होती हैं 

ख़ुदा का नूर है सब मेंकरमफ़र्मा वही है पर

करम चुप चाप बहता हैपनाहें कुछ नहीं कहतीं..............बहुत सुन्दर 

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज भंडारी जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:03pm

आदरणीय वीनस भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार । सब आपका लोगों  सिखाया है , मुझे खुशी हुई कि मै कुछ खुशी आपको दे सका ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 2:56am

आपकी इस ग़ज़ल तक पहुँच कर जो लुत्फ़ मयस्सर हुआ है उसे अल्फाज़ में बयान कर पाना मुमकिन नहीं है ...
हैरान हूँ और खुश भी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2014 at 8:33pm

आदरणीय सन्दीप भाई , ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया , आपको पूरी ग़ज़ल पसन्द आयी , मेरे लिये बहुत खुशी की बात है , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 18, 2014 at 8:24pm

आदरणीय गिरिराज जी,

अत्यंत ही ख़ूबसूरत अश'आर से सजी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद पेश है। सर ता पा एक साँस में ही पढ़ गया। लाजवाब ग़ज़ल! सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 9:49pm

आदरणीय रमेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 17, 2014 at 8:34pm

इस खुबसूरत गजल पर हार्दिक बधाई भैय्याजी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 6:55pm

आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on January 17, 2014 at 6:40pm
जय हो आदरणीय। हार्दिक बधाई

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