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Krish mishra 'jaan' gorakhpuri's Blog – October 2015 Archive (2)

''फ़लक पे सितारे चमक करके रोये'' (गज़ल)

१२२  /१२२  /१२२  /१२२

उजाले बहाये धधक करके रोये

फ़लक पे सितारे चमक करके रोये।

 

कोई चाँदनी बेवफ़ा तो थी वर्ना

क्यूँ सीना जलाये दहक करके रोये।

 

नमक इश्क का पी बहुत थीं ये आँखें

अदा अब ये सारे नमक करके रोये।

 

जो गम हम मिटाने चले जाम उठाने  

तो पैमाँ भराये छलक करके रोये।

तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया

शजर फूल सारे महक करके रोये।

 

सलामत रहे तू दुआ है  हमारी

ये सुन गम…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 7, 2015 at 9:24am — 11 Comments

''कोई कैनवास नया दे''

११२१२ / ११२१२ / ११२१२ / ११२१२

आ के फ़िर से खूने जिगर तू कर, दिलो-जान तुझपे फ़िदा करूँ

कोई कैनवास नया दे, रंगे-वफ़ा मैं फ़िर से भरा करूँ

.

तेरी आँख को कभी झील तो कभी आसमां कहूँ और शाम

उसी खिडकी पर मै पलक बिछा, अपलक क़ुरान पढ़ा करूँ

.

नहीं चाँदनी है नसीब मेरा तो ख़्वाब रख के सिराहने

तेरी स्याह गेसुओं में छुपे हुए, जुगनुओं को गिना करूँ

.

तेरी बज्म के हैं जो क़ायदे, न कभी कुबूल रहे मुझे

मुझे तिश्नगी…

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Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 10:31am — 12 Comments

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