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विनय कुमार's Blog – July 2015 Archive (11)

पीड़ा ( लघुकथा )

" क्यों मारा उसको , अब तो कोई रिश्ता नहीं बचा था तुम्हारे बीच ?
" एक रिश्ता तो था ही , नफ़रत का | मेरी बहन को जिन्दा जलाने के बाद किसी और से शादी करने जा रहा था वो "|
" पर उसके लिए तो कोर्ट से मिली सजा उसने भुगत ली थी , फिर क्यों ?
" किसी और बहन का जलना .., वो वाक्य पूरा नहीं कर पाया !
.
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 21, 2015 at 4:30pm — 14 Comments

तहज़ीब ( लघुकथा )

गुस्से से उबल रहे थे चौहान जी , प्रदेश के कई भागों से दंगे की खबरे आ रहीं थी | उनको लग रहा था कि काश उनको मौका मिले तो वो उन सब को सबक सिखा दें | अचानक उनको याद आया और पूछा " रामलीला की सारी तैयारी हो गयी , रावण का पुतला बन गया कि नहीं ?

" हाँ , पुतला बन के आ गया है | वो पैसे लेने आया है , दे दीजिये "|

" ठीक है , भेज दो उसको अंदर "|

" कितना हुआ रहीम ?

" अरे जितना देना हो , दे दीजिये | इस काम के पैसे का भी मोल भाव करूँगा "|

रहीम की बात सुनकर उनको कुछ तो हुआ और यकबयक उनके…

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Added by विनय कुमार on July 20, 2015 at 7:21pm — 21 Comments

भीख ( लघुकथा )

" इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास , सोच समझ कर माँगा और खर्च किया करो ", पति की आवाज़ उसके मन को मथ रही थी | काश उसने भी नौकरी की होती तो आज पार्टी के लिए पैसे मांगने की नौबत तो नहीं आती | यही सब सोचती किचन की ओर बढ़ी थी कि अचानक उसके कदम ठिठक गए | दरवाजे से उसकी नज़र पड़ गयी थी कामवाली पर जो नीचे रखे प्लेट्स में से निकाल कर पूरी वगैरह अपने पल्लू में बांध रही थी |

फिर उसने एक प्लेट में ढेर सारा खाने का सामान रखा और थोड़ी दूर से आवाज़ लगायी " बाई , ये प्लेट भी धुलने में रख देना "|

उसे बाई को…

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Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 10:38pm — 12 Comments

जरुरी नहीं ( कविता )

जरुरी नहीं कि हम दोषी हों

मिल जाती है सजा

अक्सर निरपराध को भी

हो जाती हैं दुर्घटनाएं

बिना हमारी गलती के भी

जरुरी नहीं कि लोग

हमसे खुश ही हों

बिना वज़ह भी हो जाती हैं

गलतफहमियां

और बिगड़ जाते हैं रिश्ते

जरुरी नहीं कि जो हम सोचें

वो सही ही हो

क्यूंकि हर चीज़ का

होता है एक दूसरा भी पहलू

जो नहीं देख पाते हम

जरुरी नहीं कि हम जन्म लें

एक ऐसे वातावरण में

जो हो जीने के लिए आदर्श

पर ये बहुत जरुरी है कि

बनायें…

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Added by विनय कुमार on July 16, 2015 at 4:03pm — 6 Comments

एहसास ( लघुकथा )

अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |

उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|

लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और…

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Added by विनय कुमार on July 9, 2015 at 8:53pm — 10 Comments

वफ़ाओं का मेरी

वफ़ाओं का मेरी सिला दीजिये
हूँ बेहोश मुझको जिला दीजिये


हुआ हूँ मैं गुम इस ज़माने में लेकिन
मुझी को मुझी से मिला दीजिये


कुचलते रहे हैं सदा हर कली को
किसी फूल को अब खिला दीजिये


मिला इस ज़माने में हर कोई खारा
ज़रा अब अमिय भी पिला दीजिये


सज़ा तो बहुत मिल गयी है मुझे अब
वो ख़्वाबों की मंज़िल दिला दीजिये

वफ़ाओं का मेरी सिला दीजिये 
हूँ बेहोश मुझको जिला दीजिये !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 8, 2015 at 3:02am — 10 Comments

अंकुरण ( लघुकथा )

" अरे ,रे , ये क्या कर दिया तूने | काट दिया उस पौधे को भी घाँस के साथ "| शर्माजी एकदम से चिल्ला पड़े उस छोटी लड़की पर जिसने उनसे उनकी लॉन में से घाँस काटने के लिए पूछा था |

पेपर को किनारे रखते हुए वो उठे और लगभग धक्का देते हुए उसे लॉन से बाहर निकाल दिया | " पता नहीं फिर ये अंकुरित होगा या नहीं , कितने प्यार से लगाया था "|

छोटी लड़की उदास बाहर निकल गयी | पेपर उड़ कर घाँस पर आ गिरा , उसमे हेडलाइंस चमक रही थीं " इस साल फिर एक लड़की ने टॉप किया सिविल सर्विसेज में "| 

मौलिक एवम…

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Added by विनय कुमार on July 7, 2015 at 2:28am — 12 Comments

बेटियाँ ( कविता )

बेटियाँ कभी उदास नहीं होतीं !!



वो तो होती हैं-

सृष्टि की अद्भुत कल्पना 

आनंददायक भावना।

वो रहती हैं-

आँगन की हवाओं में

पिता की दुआओं में ।

तभी तो खिल जाती है 

एक स्नेहिल मुस्कान 

हर लेती जो कितनी थकान।

बांटती है हमेशा-

खुशियों की सत्त्व-दीप्ति

मधुर जीवन संस्कृति।

वैसी कोई दूजी सुवास नहीं होती ।

क्योकिं बेटियाँ कभी उदास नहीं होतीं !!



वो तो दूर करती हैं-

उदासी, दोनों ही घरों…

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Added by विनय कुमार on July 6, 2015 at 8:00pm — 16 Comments

अनाथ ( लघुकथा )

पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।

अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे…

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Added by विनय कुमार on July 4, 2015 at 2:03pm — 22 Comments

स्टोरी ( लघुकथा )

" सर , मैं हस्पताल पहुँच गया हूँ , कवर करता हूँ एक्सीडेंट की स्टोरी "|

" अच्छा तो आपने देखा उनको , सामने देखकर कैसा लगा ? रिपोर्टर की आवाज़ ने उसके दर्द में इज़ाफ़ा कर दिया |

" अरे इतने बड़े स्टार से मुलाक़ात तो हो गयी , लोग तो तरसते हैं दूर से भी एक झलक पाने के लिए , कुछ बताईये ", और भी कुछ कह रहा था वो लेकिन दर्द और क्रोध के उबाल में उसने रिपोर्टर का माइक छीन कर फेंक दिया |

" स्टार , स्टार लगा रखा है , मेरी टूटी हड्डियाँ तुम्हे नहीं दिखती , दफा हो यहाँ से "|

मौलिक एवम…

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Added by विनय कुमार on July 3, 2015 at 8:42pm — 10 Comments

अपने अपने दर्द ( लघुकथा )

" आजकल इंडस्ट्री लगाना और उसे चलाना आसान नहीं रहा " कहते हुए उनके चेहरे का दर्द टपक गया |

" क्यों , क्या हो गया ऐसा ", आश्चर्य से पूछा उसने |

" अरे ये मनरेगा जो आ गया , अब जिसको अपने गाँव , घर में ही काम मिल जा रहा है , वो क्यों आएगा दूर काम करने "|

" और रही सही कसर ये शॉपिंग माल वाले पूरी कर दे रहे हैं | बढ़िया ए सी में काम मिल जा रहा है उनको "|

उसे अपना गाँव याद आ गया जहाँ ग्राम प्रधान और अधिकारी मिल कर मनरेगा का आधा से ज्यादा पैसा फ़र्ज़ी नाम से हड़प जाते हैं |

मज़दूर को…

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Added by विनय कुमार on July 2, 2015 at 10:42pm — 12 Comments

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