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" अरे ,रे , ये क्या कर दिया तूने | काट दिया उस पौधे को भी घाँस के साथ "| शर्माजी एकदम से चिल्ला पड़े उस छोटी लड़की पर जिसने उनसे उनकी लॉन में से घाँस काटने के लिए पूछा था |

पेपर को किनारे रखते हुए वो उठे और लगभग धक्का देते हुए उसे लॉन से बाहर निकाल दिया | " पता नहीं फिर ये अंकुरित होगा या नहीं , कितने प्यार से लगाया था "|

छोटी लड़की उदास बाहर निकल गयी | पेपर उड़ कर घाँस पर आ गिरा , उसमे हेडलाइंस चमक रही थीं " इस साल फिर एक लड़की ने टॉप किया सिविल सर्विसेज में "| 

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 16, 2015 at 11:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय आमोद बिंदौरी जी ।

Comment by विनय कुमार on July 16, 2015 at 11:46pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेयजी । आपका अनुमोदन मिल जाने पर बहुत संतुष्टि मिलती है ..

Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 11:38pm
सर कम शब्दों में सुन्दर बात कही है बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 11:31pm

आपने प्रस्तुत लघुकथा की लघुता में जैसी व्यापकता समाविष्ट किया है उसके लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी,..
शुभ-शुभ

Comment by विनय कुमार on July 8, 2015 at 10:23am

बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी ..

Comment by Omprakash Kshatriya on July 8, 2015 at 7:13am

प्रतीकात्मक व जानदार लघुकथा कही है आप ने आ विनय कुमार सिंह जी 

Comment by विनय कुमार on July 7, 2015 at 6:02pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी , सादर धन्यवाद..

Comment by विनय कुमार on July 7, 2015 at 6:01pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आपकी टिप्पणियाँ हमेशा उत्साह बढाती हैं | इसी तरह समीक्षा और मार्गदर्शन करते रहें हमारा , सादर धन्यवाद..

Comment by विनय कुमार on July 7, 2015 at 6:00pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी , आप ने तो सच में इसे गद्य से पद्य बना दिया | सादर धन्यवाद.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 7, 2015 at 5:10pm

आदरणीय विनय कुमार जी आपकी इस प्रभावी लघुकथा का सारांश PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी ने बहुत सुन्दरता से कह दिया ...बहुत बधाई ....सादर 

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