For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |
उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|
लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और पैसे लेकर पर्स में रखती हुई बोली " लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ | हाँ , अगर आप जैसे लोग हों दुनियाँ में तो हमें ऐसे खड़े होने की जरुरत नहीं पड़े "|
फिर गाड़ी रुकवाकर वो चली गयी , अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 11, 2015 at 1:43pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आप सदा हौसला बढ़ाते रहते हैं । 

Comment by विनय कुमार on July 11, 2015 at 1:42pm

आदरणीय प्रदीप जी , आभार आपका कि आपने टिप्पणी की । हम सब एक दूसरे से सीखते ही हैं और ये प्रक्रिया निरंतर जारी रहने चाहिए नहीं तो विकास अवरुद्ध हो जाता है । // लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ // का तात्पर्य उसके बच्चे से है जिसके भरण पोषण की जिम्मेदारी सिर्फ उसकी है । इसके अलावा भी कई वजहें हो सकती हैं जिसके चलते कोई भी नारी इस पेशे में उतरती है ।
// अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए // पंक्तियाँ मैंने दो वज़ह से लिखी हैं , पहला , उस पात्र को एक नेक काम करने की जो सुखद अनुभूति हुई थी उसकी वज़ह से और दूसरा उस नारी के वाक्य को सुनकर । शायद अपनी बात पूरी तरह रखने में सफल नहीं हो पाया मैं । लेकिन इस तरह ही टिप्पणियों से ही हमें पता चलेगा कि हम सम्प्रेषण कर पा रहे हैं या नहीं , सादर..

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 11, 2015 at 11:25am

अब उसे भी लग रहा था कि ब्लोअर बंद कर देना चाहिए | --बहुत बढ़िया 

" लगती तो है लेकिन जब घर में सो रहे बच्चे के बारे में सोचती हूँ तो बर्दास्त कर लेती हूँ --क्या सो रहे बच्चे--ऐसे कार्य हेतु ..मजबूरी का पर्याप्त आधार . होगा , सादर 

ये प्रश्न  मैने सिखने के लिए किया है , समीक्षा के लिए नही , क्योंकि आप जानते हैं कि आप मेरा मार्ग प्रशश्त करते हैं . बधाई, सुगठित कथा हेतु. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 11, 2015 at 3:02am

आदरणीय विनय जी बढ़िया लघुकथा. प्रभावकारी अंत. बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 6:32pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मदनलाल श्रीमालीजी , सबका नजरिया अलग अलग होता है किसी भी चीज़ को देखने का | आपको लघुकथा पसंद आई , आभार..

Comment by Madanlal Shrimali on July 10, 2015 at 6:22pm
हर कोई किसी घटनाक्रम को अपने नजरिए से देखता है। हो सकता है कभी वो गलत भी हो और कभी सही।ठंडी में फुटपाथ पर सोये भिखारीयो को बहुत से लोग नई कम्बल ओढाते है मगर कुछ भिखारी वही कम्बल सुबह दूकान में बेचकर रुपया ले लेते है फिर भी कई लोग उन्हें कम्बल देना जारी रखते है यह सोचकर कि कोई जरूरतमंद ठण्ड में न मर जाय।सुन्दर लघुकथा बनी है विनयजी।
Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 6:17pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय तेज वीर जी , सभी जिम्मेदार हैं इन स्थितियों के लिए लेकिन शायद ये पुरुष समाज ज्यादा जिम्मेदार है | बहुत बहुत आभार आपके टिप्पणी का , सादर ..

Comment by TEJ VEER SINGH on July 10, 2015 at 5:42pm

आदरणीय विनय जी ,देह व्यापार जैसे बहुत ही गंभीर विषय पर सुंदर कथा लिखी है!समाज में यह एक व्यापक रूप से फ़ैली बीमारी है!कुछ पुरुष इसके लिये जिम्मेवार हैं वहीं दूसरी ओर कुछ औरतें भी इसका नायज़ाज़ लाभ उठाती हैं!अब उनके बताये कारणों की ज़ांच करना तो संभव नहीं होता!बहुत ही मार्मिक रचना !हार्दिक बधाई!

Comment by विनय कुमार on July 10, 2015 at 3:22pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय पंकज जोशीजी , कथा पर आपके विचार रखने के लिए | पता नहीं कौन सी मज़बूरियाँ होती हैं जो ऐसे पेशे में उतार देती हैं स्त्रियों को , लेकिन आपका कहना भी दुरुस्त है | बहरहाल मैंने प्रेटी वुमन तो नहीं देखी लेकिन ये दृश्य मैं अक्सर यहाँ देखता हूँ जब ऑफिस से घर जाता हूँ और अपने मन में तर्क करता हूँ कि क्या वज़ह होगी जो ये लोग ऐसी कड़ाके की ठण्ड में भी ऐसे खड़ी रहती हैं | मुझे अपनी कल्पना से यही कारण प्रतीत हुआ इसके पीछे और मैंने उसे शब्द दे दिए | सादर..

Comment by Pankaj Joshi on July 10, 2015 at 3:07pm

इस मौका परस्त ज़िन्दगी में उसका लड़की को पैसे से मदद करना तो सराहनीय थ । पर वह लड़की अगर उसमे जरा सा भी जमीर होता तो वह इस पेशे को तिलांजलि देकर किसी होटल में वट्रेस का कार्य भी कर सकती थी । बच्चों का वास्ता देकर गलत पेशे में पड़ना और कमाना दोनों ही गलत हैं । pretty women पिक्चर की  स्टोरी याद आ गई आदरणीय सर । सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
34 seconds ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
35 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
59 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
1 hour ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service