For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सालिक गणवीर's Blog – July 2020 Archive (6)

उनके ख़्वाबों पे ख़यालात पे रोना आया.(ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

(2122 1122 1122 22/112)

उनके ख़्वाबों पे ख़यालात पे रोना आया

अब तो मत पूछिये किस बात पे रोना आया

देखता कौन भरी आँखों को बरसातों में

फिर से आई हुई बरसात पे रोना आया

आप चाहें तो जो दो दिन में सुधर सकते हैं

उन बिगड़ते  हुए हालात पे रोना आया

मुद्दतों जिनके जवाबात को तरसा हूँ मैं

आज कुछ ऐसे सवालात पे रोना आया

मुझको मालूम था अंजाम यही होना है

जीत रोने से हुई मात पे रोना आया

दिन…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 29, 2020 at 12:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल (यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है....)

1222 1222 122

यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है

चलो भी गाँव में मेला लगा है

तुझे मैं आज पढ़ना चाहता हूँ

मिरी तक़दीर में अब क्या लिखा है

किनारे पर भी आकर डूब जाओ

नदी है,नाख़ुदा तो बह चुका है

निकलना चाहता है मुझसे आगे

मिरा साया मिरे पीछे पड़ा है

ज़रा आगे चलूँ या लौट जाऊँ

गली के मोड़ पर फिर मैक़दा है

उसी पर मर रहे हैं लोग सारे

जो अपने आप पर कब से फ़िदा है

सितारों चैन से…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 27, 2020 at 8:00am — 13 Comments

ग़ज़ल ( गली से जाते हुए पैरों के निशान मिले....)

1212 1122 1212 22/112

गली से जाते हुए पैरों के निशान मिले

कहीं पे उजड़े हुए-से कई मकान मिले

ये अपने-अपने मुक़द्दर की बात है भाई

मुझे ज़मीं न मिली तुमको आसमान मिले

किसी ज़माने में उनके बहुत क़रीब थे हम

अभी तो फ़ासले ही सिर्फ़ दरमियान मिले

इसे भी बेचने आए थे लोग मंडी में

कहीं पे दीन मिला और कुछ ईमान मिले

मैं चढ़ के आ तो गया हूँ ऊँचाई पर लेकिन

मुझे भी ज़ीस्त में छोटी-सी इक ढलान…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 23, 2020 at 8:01am — 4 Comments

ग़ज़ल ( सोचता हूँ आज तक ग़ज़लों से क्या हासिल हुआ..)

(2122 2122 2122 212)

सोचता हूँ आज तक ग़ज़लों से क्या हासिल हुआ

पहले से बीमार था दिल दर्द भी शामिल हुआ

जब तलक घुटनों के बल चलता रहा था ख़ुश बहुत

आ पड़ा ग़म सर पे जब से दौड़ के क़ाबिल हुआ

ज़िंदगी में तुम नहीं थे इक अधूरापन-सा था

जब से आए हो ये लगता है कि मैं कामिल हुआ

चलते-चलते लोग कहते हैं सफ़र आसान है

ज़िंदगानी में सरकना भी बहुत मुश्किल हुआ

वो शरीक-ए-ग़म है अब मैं क्या कहूँ तारीफ़ में

चोट लगती है मुझे वो…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments

ग़ज़ल ( हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें.....)

(221 2121 1221 212)

हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें

कई बार जीने के लिए मरना पड़ा हमें

शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए

दौर-ए-रवाँ में चूहों से  डरना पड़ा हमें

आकर समेटता है हमें वो ही बारहा

हर बार टूटते ही बिखरना पड़ा हमें

आए नहीं वो कल भी तो हर बार की तरह

वादे से अपने आज मुकरना पड़ा हमें

मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो

उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें

होते कहीं पे हम भी…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 18, 2020 at 7:00am — 6 Comments

ग़ज़ल ( उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो....)

(221 2121 1221 212)

उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो

ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो

आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा

आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो

वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने

हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो

जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा

मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो

अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ

किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो

बाज़ार में तो…

Continue

Added by सालिक गणवीर on July 11, 2020 at 7:30am — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service