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चल आज मिल के दोनों.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221 2121 1221 212


चल आज मिल के दोनोंं क़सम ये उठाएँ हम
तुम हमको भूल जाओ तुम्हें भूल जाएँ हम (1)

इह तरह तो हमारा गला बैठ जाएगा
कब तक असम को अपनी कहानी सुनाएँ हम (2)

पीछा न अपना छोड़ेंगी यादों की बिल्लियाँ
चल यार इनको दूर कहीं छोड़ आएँ हम (3)

तेरे ख़िलाफ़ फिर से न आवाज़ उठ सके
लोगों के साथ अपना गला भी दबाएँ हम (4)

मुद्दत से आरज़ू है हमारी ऐ जान-ए-मन
इक शाम तेरे साथ कभी तो बिताएँ हम (5)

दुनिया में नाम होगा हमारा भी इस तरह
अंदर लगी हो आग तो बाहर बुझाएँ हम (6)

© सालिक गणवीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 9, 2021 at 10:57am

आ. सालिक जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है ,,बधाई..
मतले में चल के कारण शुतुरगुर्बा हो रहा है..देखिएगा 
सादर 

Comment by Chetan Prakash on May 25, 2021 at 6:56pm

 आखिरी शे'र के ऊला में "होगा"  के बजाय  " होए"  बेहतर होता, थी जी !

Comment by Chetan Prakash on May 25, 2021 at 6:49pm

बिल्लियाँ ! और  वो भी यादों की ,  भाव-साम्य मधुर है ही नहीं, "झपकियाँ "कर लीजिए, जनाब  !

Comment by Chetan Prakash on May 25, 2021 at 6:39pm

कब तक तुम्हे वो अपनी कहानी  सुनाएं हम', दूसरा  मिसरा कर लीजिए, रब्त  भी  रह जाएगी,  साइकिल गणगौर साहब  !

Comment by Chetan Prakash on May 25, 2021 at 6:28pm

ऐ आदाब,   ऐसे खड़े रहे तो  गला  बैठ  जाएगा " अजीब  मिसरा  है, गले  से नहीं उतरता  ! तुम बोलते रहे तो गला बैठ  जाएगा ' कर लीजिएगा  !

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