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Naveen Mani Tripathi's Blog – April 2017 Archive (9)

ग़ज़ल।--हो गई बात कुछ इशारों से ।

2122 1212 22

फूल ढूढे गए किताबों से ।

हो गयी बात कुछ इशारों से ।।



कुछ गलत फहमियां हुई होंगी ।।

उस से मिलता कहाँ मै वर्षों से ।।



फेसबुक से उसे भी नफरत है ।

डर उसे है अनाम रिश्तों से ।।



कुछ तो है वो खफा ख़फ़ा शायद ।

लग गया बेलगाम बातों से ।।



आशिकी का नशा हुआ महंगा ।

रिन्द घटने लगे हैं खर्चों से ।।



बाद मुद्दत के जब मिले उस से ।

दर्द छलका तमाम आंखों से ।।



हो यकीनन जफ़ा के काबिल तुम ।।

शर्म तुमको… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 30, 2017 at 8:03am — 3 Comments

ग़ज़ल

2212-1212-2212-12

थोड़ी तसल्लियों में मेरा इंतजार हो ।

माना कि आज तुम जियादा बेकरार हो ।



वह मैकदों के पास से गुजरा नहीं कभी ।

गर चाहते हो रिन्द को तो इश्तिहार हो ।।



निकला है आज चाँद शायद मुद्दतों के बाद ।

अब वस्ल पर वो फैसला भी आरपार हो ।।



आया शिकार पर न् वो खुद ही शिकार हो ।

इतना खुदा करे उसे बेगम से प्यार हो ।।



लिख्खा दरख़्त पर किसी पगली ने कोई नाम ।

शायद गरीब दिल की कोई यादगार हो।।



हालात हैं खराब क्यों…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 30, 2017 at 7:30am — 4 Comments

ग़ज़ल -- मौत से वह बहुत लड़ा होगा ।।

2122 1212 22



उसके चेहरे पे कुछ लिखा होगा ।

पढ़ने वालों ने पढ़ लिया होगा ।।



यूँ…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 21, 2017 at 10:00am — 8 Comments

उसके आँचल उड़ा नही करते

2122 1212 22



बेसबब वह वफ़ा नहीं करते । खत मुझे यूँ लिखा नहीं करते ।।



है मुहब्बत से वास्ता कोई । उस के आँचल उड़ा नहीँ करते ।।



लूट जाते हैं जो मेरे घर को। गैर वह भी हुआ नहीं करते ।।



बात कुछ तो जरूर है वर्ना । तुम हक़ीक़त कहा नही करते ।।



न्याय बिकता है इस ज़माने में । बिन लिए फैसला नही करते ।।



वह गवाही भी बिक गई कब की ।

अब भरोसा किया नही करते ।।



जश्न लिखता हयात को बन्दा ।

जिंदगी से डरा नहीँ करते ।।



है… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 15, 2017 at 11:56pm — 5 Comments

हो सके मुस्कुरा दीजिये

212 212 212

चाहतों का सिला दीजिये ।

हो सके मुस्कुरा दीजिये ।।



टूट जाए न् ये जिंदगी।

हौसला कुछ बढा दीजिये।।



गफलतें हो चुकी हैं बहुत ।

रुख़ से पर्दा हटा दीजिये ।।



देखिए हाल बेहाल क्यूँ ।

आप ही कुछ दवा दीजिये ।।



बेवफा कह दिया क्यो उसे ।

राज है क्या बता दीजिये ।।



लूट कर ले गई सब नजर ।

यह रपट भी लिखा दीजिये ।।



टूटकर वह बिखर ही गई ।

जाइये घर बसा दीजिये ।।



है जरूरी मुलाकात भी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 15, 2017 at 1:00pm — 8 Comments

कहीं ये नीयत फिसल न् जाए

121 22 121 2 2 121 22 121 22



नई जवानी नई अदाएं

कहीं ये नीयत फिसल न् जाए ।।

जरा सँभालो अदब में पल्लू

कोई इरादा बदल न् जाए ।।



कबूल कर ले सलाम मेरा

ऐ हुस्न वाले तुझे है सज़दा ।

मेरी मुहब्बत का दौर यूं ही

तेरी ख़ता से निकल न् जाए ।।



बड़ी तमन्ना थी महफ़िलो की

ग़ज़ल में उसके पयाम होगा ।

उधर है दरिया में बेरुखी तो

इधर समंदर मचल न् जाए ।।



है क़त्ल का गर तेरा इरादा

तो दर्द देकर गुनाह मत कर ।

हराम होगा ये इश्क़… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 13, 2017 at 10:13pm — 11 Comments

गज़ल --आशिको के पास जाकर देखिये

2122 2122 212



मैकदों के पास आकर देखिये ।

तिश्नगी थोड़ी बढ़ाकर देखिये ।।



वह नई उल्फ़त या नागन है कोई ।

गौर से चिलमन हटाकर देखिये ।।



सर फरोसी की तमन्ना है अगर ।

बेवफा से दिल लगाकर देखिये ।।



आपकी जुल्फें सवंर जायेगी खुद ।

आशिकों के पास जाकर देखिये ।।



आस्तीनों में सपोले हैं छुपे ।

हाथ दुश्मन से मिलाकर देखिये ।।



जल न् जाऊँ मैं कहीं फिर इश्क़ में ।

इस तरह मत मुस्कुराकर देखिये ।।



होश खोने का…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 10, 2017 at 5:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

अब दुवाओं के लिए हाथ उठाया जाए ।

तेरे सर से न् कभी इश्क़ का साया जाए ।।



हुस्न मगरूर हुआ है ये सही है यारों ।

आइनॉ को न् उसे और दिखाया जाए ।।



होश खोना भी जरूरी है मुहब्बत के लिए ।

सुर्ख होठों पे कोई जाम सजाया जाए ।।



पूछ मत दर्द से रिश्तों की कहानी मेरी ।

ज़ह्र देना है तो बेख़ौफ़ पिलाया जाए ।।



एक हसरत के लिए जिद भी कहाँ है वाजिब ।

गैर चेहरों को चलो दिल में बसाया जाए ।।



बिक गई आज निशानी भी जो तुमने… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 6, 2017 at 11:14pm — 5 Comments

ग़ज़ल रोज़ मुकरते किरदारों से क्या लेना

22 22 22 22 22 2



रंग बदलते रुख़सारों से क्या लेना ।

रोज मुकरते किरदारों से क्या लेना ।।



गंगा को मैली करती हैं सरकारें ।

उनको जग के उद्धारोँ से क्या लेना ।।



खूब कफ़स का जीवन जिसको भाया है ।

उस पंछी को अधिकारों से क्या लेना ।।



जंतर मंतर पर बैठा वह अनसन में ।

राजा को अब लाचारों से क्या लेना ।।



टूट चुका है उसका अंतर मन जब से ।

जग में दिखते मनुहारों से क्या लेना ।।



फुटपाथों पर जिस्म बिक रहा खबरों में…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 1, 2017 at 10:30pm — 5 Comments

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