For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1122 1122 22

दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।

काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।

क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।

मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।

सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं ।।

वो बदल जाएंगे इकदिन किसी मौसम की तरह।
इश्क से पहले कभी हमने ये सोचा भी नहीं ।।

रूठ कर जाने की फ़ितरत है पुरानी उसकी ।
मैंने रोका भी नहीं और वो रुकता भी नहीं ।।

कोशिशें कुछ तो ज़रा कीजिए अपनी साहब ।
मंज़िलें ख़ुद ही चली आएंगी ऐसा भी नहीं ।।

हिज्र के बाद भी दिल में रही इतनी सी ख़लिश ।
हाले दिल आपने मेरा कभी पूछा भी नहीं ।।

मौलिक अ प्रकाशित

--नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 3:29pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , एक सवाल था जैसा की आपने इस बहर के विषय में बताया तीसरी छूट के अनुसार एक लघु अलग से ले सकते हैं तो मेरा सवाल है कि क्या ये हर मिसरे पर कर सकते हैं या पूरी ग़ज़ल के एक ही मिसरे पर ये छूट है ? कृप्या मार्गदर्शन करें।

Comment by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 3:25pm

आदरणीय नवीन जी नमस्ते ,इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 9, 2020 at 3:59pm

आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on June 9, 2020 at 11:29am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, 'फ़िराक़' साहिब की ज़मीन में ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

बाक़ी जनाब रवि भसीन जी बता ही चुके हैं ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 4:23pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, आदाब ।

बहूर के विषय में दी गई अद्भुत जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 4:20pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आदाब।

बहूर के विषय में दी गई अद्भुत जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार। 

Comment by सालिक गणवीर on June 8, 2020 at 12:41pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'साहिब

सादर अभिवादन

शंका समाधान के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 8, 2020 at 12:19pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार। जी, रदीफ़ "भी नहीं" दरअस्ल 112 के वज़न पर है। ये बह्रे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ (मक़तू'अ) है, ये मीर साहिब द्वारा इस्तेमाल की गई कुल 28 बुहूर में भी है, और दीवान-ए-ग़ालिब की कुल 19 बुहूर में भी शामिल है। इसमें तीन छूटें ली जा सकती हैं। एक तो पहले रुक्न को 2122 के स्थान पर 1122 ले सकते हैं:
न बँधे तिशनगी-ए शौक़ के मज़्मूँ 'ग़ालिब'
1122 / 1122 / 1122 / 22
गरचे दिल खोल के दरया को भी साहिल बाँधा
2122 / 1122 / 1122 / 22

दूसरी छूट ये है कि आख़िरी रुक्न को 22 के स्थान पर 112 ले सकते हैं:
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
2122 / 1122 / 1122 / 22
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था
2122 / 1122 / 1122 / 112

तीसरी छूट, जो और भी कई बुहूर में ली जाती है, ये है कि आख़िरी रुक्न में एक लघु अतिरिक्त ले सकते हैं:
मिह्रबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
2122 / 1122 / 1122 / 22(1)
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
2122 / 1122 / 1122 / 112

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़-मर्ग इलाज
1122 / 1122 / 1122 / 112(1)
शम्अ' हर रंग में जलती है सहर होते तक
2122 / 1122 / 1122 / 22

Comment by सालिक गणवीर on June 8, 2020 at 7:27am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहिब

सादर अभिवादन

शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें. आदरणीय 'एक स्पष्टीकरण की उम्मीद है आपसे. ग़ज़ल की बह्र का आखिरी अरकान 22 है मगर रदीफ़ 'भी नहीं'याने 212,क्या इस बह्र में ऐसी छूट मिलती है?

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 7, 2020 at 11:22am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहिब, इस शानदार ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। जनाब, पाँचवें शे'र के ऊला का आख़िरी लफ़्ज़ "होगा" होना चाहिए, क्योंकि "इज़हार" पुल्लिंग है:
सोचते रह गए इज़हार-ए-मुहब्बत होगा

आख़िरी शे'र के ऊला के लिए एक सुझाव देना चाहूँगा:
2122 1122 1122 22
वस्ल के बाद भी दिल में रही इतनी सी ख़लिश

आदरणीय, कुछ टंकण त्रुटियाँ दुरुस्त कर लीजिये:
1 ज़ख़्म
2 काश, शख़्स
4 साक़ी
5 आसाँ
6 जाएँगे, इक दिन, इश्क़
8 मंज़िलें, आएँगी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service