For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो सके मुस्कुरा दीजिये

212 212 212
चाहतों का सिला दीजिये ।
हो सके मुस्कुरा दीजिये ।।

टूट जाए न् ये जिंदगी।
हौसला कुछ बढा दीजिये।।

गफलतें हो चुकी हैं बहुत ।
रुख़ से पर्दा हटा दीजिये ।।

देखिए हाल बेहाल क्यूँ ।
आप ही कुछ दवा दीजिये ।।

बेवफा कह दिया क्यो उसे ।
राज है क्या बता दीजिये ।।

लूट कर ले गई सब नजर ।
यह रपट भी लिखा दीजिये ।।

टूटकर वह बिखर ही गई ।
जाइये घर बसा दीजिये ।।

है जरूरी मुलाकात भी ।
रास्ता इक बना दीजिये ।।

दीजिये जाम उसको मगर ।
थोड़ा पानी मिला दीजिये ।।

जो हुई थी ग़ज़ल याद में ।
आज फिर वह सुना दीजिये ।।

वह बहुत कह चुका है बुरा ।
आइना अब दिखा दीजिये ।।

उम्र कातिल हुई आपकी ।
तीर सारे चला दीजिये ।।

नींद आती नहीं रात भर ।
ख़त पुराने जला दीजिये ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 18, 2017 at 6:37pm
आ0 रवि शुक्ला साहब
आ0 सुरेंद्र नाथ साहब
आ0 आरिफ साहब
आ0 कबीर सर
सबको नमन के साथ आभार ।
Comment by Ravi Shukla on April 18, 2017 at 2:56pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई

Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:10am
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:10am
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:10am
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on April 15, 2017 at 5:47pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत बढ़िया छोटी बह्र की ग़ज़ल । शे'र दर शे'र मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी आली जनाब समर कबीर साहब की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 15, 2017 at 4:02pm
आ0 सर सादर नमन । ठीक करता हूँ सर ।
Comment by Samar kabeer on April 15, 2017 at 3:08pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला मिसरे में :-
'रहमतों का सिला दीजिये'
बेतुका पन है,'रहमत'तो ख़ुद ही सिला हैं,इस मिसरे को यूँ कीजिये:-
'चाहतों का सिला दीजिये'
5वें शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ देखें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service