For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल रोज़ मुकरते किरदारों से क्या लेना

22 22 22 22 22 2

रंग बदलते रुख़सारों से क्या लेना ।
रोज मुकरते किरदारों से क्या लेना ।।

गंगा को मैली करती हैं सरकारें ।
उनको जग के उद्धारोँ से क्या लेना ।।

खूब कफ़स का जीवन जिसको भाया है ।
उस पंछी को अधिकारों से क्या लेना ।।

जंतर मंतर पर बैठा वह अनसन में ।

राजा को अब लाचारों से क्या लेना ।।

टूट चुका है उसका अंतर मन जब से ।

जग में दिखते मनुहारों से क्या लेना ।।

फुटपाथों पर जिस्म बिक रहा खबरों में ।
उसको छपते अखबारों से क्या लेना ।।

काम न् आए नेता जो भी मौके पर ।
हमको उसके आभारों से क्या लेना ।।

दफ़्न हुए भौरे पंखुड़ियों में फँस कर ।

फूलों को इन बेचारों से क्या लेना ।।

परिणामों पर खूब हुई चर्चा देखो ।
इस चर्चा पर गद्दारों से क्या लेना ।।

सच को ही मै सच कहता हूं महफ़िल में ।
कान लगे इन दीवारों से क्या लेना ।।

हो न् सका जो बाप का वो जनता का कब ।
राजनीति के खुद्दारों से क्या लेना ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2017 at 6:39pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आद० नवीन जी बधाई स्वीकारें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2017 at 6:08pm

आदरणीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है ... बधाइयाँ स्वीक्कार करें ।

Comment by Mahendra Kumar on April 4, 2017 at 9:48pm
बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय नवीन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं, देख लीजिएगा। सादर।
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2017 at 6:34pm
आ0 कबीर सर सादर आभार के साथ नमन ।
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 6:14pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service