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याद आऊं तो निशानी देखना

2122 2122 212
छेड़ कर उसकी कहानी देखना ।
फिर तबाही आंसुओं की देखना ।।

यूँ ग़ज़ल लिक्खी बहुत उनके लिए ।
लिख रहा हूँ अब रुबाई देखना ।।

अब नुमाइश बन्द कर दो हुस्न की ।
हैं कई शातिर शिकारी देखना ।।

हिज्र ने हंसकर कहा मुझसे यही ।
वस्ल की तुम बेकरारी देखना ।।

वह बहक जाएगा इतना मान लो ।
एक दिन फिर जग हँसाई देखना ।।

तिश्नगी झुक कर बुझा देती है वो ।
बा अदब होती सुराही देखना ।।

मांगता हूँ इश्क़ की पहली नज़र ।
तुम भी अपनी मिह्रबानी देखना ।।

छोड़ आया दिल तुम्हारी बज़्म में ।
याद आऊं तो निशानी देखना ।।

हुस्न पर ठहरी अना कहने लगी ।
अब मेरी जर्रा नवाज़ी देखना ।।

इक इशारा प्यार का तो हो कभी ।
बाद में फिर इश्क़ बाज़ी देखना ।।

मत करो उम्मीद कुछ तारीफ़ की ।
चाल उसकी अब सियासी देखना ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 7:07pm

सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय  नवीन मणि त्रिपाठी जी| हार्दिक बधाई|

Comment by narendrasinh chauhan on May 20, 2018 at 11:31am
सुन्दर रचना
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 7:23am

प्यारी सी बह्र पर बहुत प्यारी सी ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।

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