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March 2011 Blog Posts (134)

बेटी गरीब की

बेटी गरीब की



बेटी थी वो गरीब की मजबूर थी लाचार--

थी खूबसूरत यौवना लेकिन ईमानदार --

सड़कों पे सर झुकाए वो गाँव में निकलती ---

कुछ मनचले दबंगों की नीयतें मचलती --

फिकरे कोई कसे तो वो चुपचाप ही रहती --

मक्कार दबंगों की कई हरकतें सहती --

ना बाप था ना भाई ना उसकी कोई बहिन थी --

तकदीर की मारी हुई वो नेकचलन थी --

कपडे वो नदी पर ही धोती थी नहाती थी -

शाम के ढलते ही घर लौट के आती थी --

एक शाम वो दबंगों के हाथ लग गई --

अब तक बचा रखी थी वो… Continue

Added by jagdishtapish on March 13, 2011 at 8:13pm — 1 Comment

मैं जब भी ठोकरें खाता हूँ नया मुकाम मिलता है....................

मैं जब भी ठोकरें खाता  हूँ नया मुकाम मिलता है
तजुर्बे का चहेरा बनाकर भगवान मिलता है





तसल्ली देती हैं पुरानी…
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Added by अमि तेष on March 13, 2011 at 7:30pm — 3 Comments

Gazal

                  गजल

ईमानदार मैदाॅं में, बाजी मार जाते हैं।     

बेईमानों के घोडे, आखिरी हार जाते हैं।।

परस्तिश करती है, उनकी सल्तनत दोस्तों।

वतन की राह में,जो जांॅ निसार जाते हैं।।

हथियारों पे कायम है, कायनात जिनकी।…

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Added by nemichandpuniyachandan on March 13, 2011 at 7:26pm — 1 Comment

रंग अपना अपना ..

रंग अपना अपना ..



हर आदमी में होता है, रंग अपना अपना ।

उड़ान भर रहे हैं, लेकर के अपनी कल्पना।।

पूरी हुई न अबतक, इस जिंदगी में राहें।

यदि थक गया है कोई, तो भर रहा है आहें।

कुछ और आगे चलने का, रह गया है सपना।।

हर आदमी में…

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Added by R N Tiwari on March 13, 2011 at 6:00pm — 1 Comment

ग़ज़ल :- ऐ खुदा क्योंकर तेरे सागर में सुनामी हुई

ग़ज़ल :- ऐ खुदा क्योंकर तेरे सागर में सुनामी हुई

आपदा की हद हज़ारों ज़िंदगी पानी हुई ,

ऐ खुदा क्योंकर तेरे सागर में सुनामी हुई |

 

है नहीं कूवत लखन सी दौर के इंसान में…

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:30pm — 3 Comments

............त्याग बलिदान सॆ.........

............त्याग बलिदान सॆ.........

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कभी त्याग बलिदान सॆ कभी जीवन-मरण सॆ निकलती है !

कविता कलम सॆ नहीं कवि कॆ अंतःकरण सॆ निकलती है !!

कभी बिंदु मॆं समॆट लॆती चराचर संसार यह,

नयन बिन दॆख लॆती है क्षितिज कॆ पार यह,

हवाऒं का रूप धर लिपट जाती वृक्ष कॆ गलॆ,

कभी बूँद बन नीर की पुकारती रसातल तलॆ,

कभी शबनम का रूप धर, यॆ पर्यावरण सॆ निकलती है !!१!!

कविता कलम सॆ… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 13, 2011 at 3:09pm — 3 Comments

जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और...........................

जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा....

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कब मैना मन मुस्कानी है, कब बॊलॆ वह कॊयल कागा !!

जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और सृजन का अंकुर जागा !!

शब्द-सुमन चुननॆं मॆं मॆरा,आधा जीवन बीता,

अखिल विश्व का चिंतन,था लगता रीता-रीता,

कभी ढूंढ़ता मॆघदूत मैं,तॊ कभी खॊजता गीता,

मीरा राधा और अहिल्या, कभी द्रॊपदी सीता,

कॆवट और भागीरथ बन कर, क्या-क्या वर मैं मांगा !!१!!

जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा,… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 13, 2011 at 3:05pm — No Comments

ग़ज़ल :- खार में भी कली खिला देगा

ग़ज़ल :- खार में भी कली खिला देगा

खार में भी कली खिला देगा ,

आदमी जब भी मुस्कुरा देगा |

 

यह तो दस्तूर है ज़माने का ,

नाम लिख कर कोई मिटा देगा…

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल:- अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं

ग़ज़ल:- अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं

 

अपने शहर में झूठ के चर्चे आम बहुत हैं ,

सच कहने वालों के सर इलज़ाम बहुत हैं…

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 2:55pm — No Comments

भज गोविन्दम् (मूल संस्कृत, हिन्दी काव्यानुवाद, अर्थ व अंग्रेजी अनुवाद सहित) - संजीव 'सलिल'







भज गोविन्दम् 

(मूल संस्कृत, हिन्दी काव्यानुवाद, अर्थ व अंग्रेजी अनुवाद सहित)


                                                                             

भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।

संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे ॥१॥…




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Added by sanjiv verma 'salil' on March 13, 2011 at 2:34pm — 2 Comments

ग़ज़ल :- कहीं कोई कमीं है

ग़ज़ल :- कहीं कोई कमीं…

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 1:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : - अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं

ग़ज़ल : - अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं

वक्त वीरान है निशानियां फ़ना कर लूं ,

अपना घर आप जलाने का हौसला कर लूं |

 

आपकी बज़्म में अशआर कई लाया हूँ…

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 1:00pm — 6 Comments

व्यंग्य - कैसे-कैसे इनकम !

अभी कुछ दिनों से टैक्स चोरी का मामला छाया हुआ है और देश को खोखला करने वाले सफदेपोश चेहरे पर कालिख भी लगी, मगर यह बात मैं सोच रहा हूं कि देश में कैसे-कैसे इनकम के तरीके हो सकते हैं ? जब कोई टैक्स पर ही इनकम निकाल लेने की क्षमता रखता हो, वैसी स्थिति में इनकम की कोई सीमा निर्धारित करना, मुझ जैसे अदने से व्यक्ति के लिए मुश्किल लग रहा है। फिर भी एक बात तो है कि बदलते समय के साथ इनकम के दायरे बढ़ गए हैं और इनकम हथियाने वाले भी। कुछ नहीं बदला तो आम जनता की बदहाल जिंदगी और उनके हिस्से में आने वाली… Continue

Added by rajkumar sahu on March 13, 2011 at 1:20am — 1 Comment

GHAZAL - 28

                        ग़ज़ल



पूछिए मत किस तरह ?  घड़ियाँ  मुक़म्मिल कर रहा हूँ |

लोग  कहते  हैं  कि -  ज़िंदा  हूँ   मगर   मैं  मर  रहा  हूँ ||



तख्त    मेरा    बन    गया    ताबूत    अब    मेरे   लिए,

कब्र  तक जाने  का  ही  अब  फ़र्ज़  मैं  ये  कर  रहा   हूँ ||



रौशनी   भी  अब  तो   धुँधलापन   लिए   दिखने   लगी,

फिर भी, कल शायद सुबह हो,   इसलिए मैं लड़ रहा…
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Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on March 13, 2011 at 12:30am — No Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - सरकार ने सांसदों की नीधि बढ़ा दी है।



पहारू - देखते हैं, कहां खर्च होगा।





2. समारू - नित्यानंद नपुंसक नहीं था, जांच में सीआईडी को कबूरा।



पहारू - तभी तो नित्य आनंद लेता था।





3. समारू - जापान में सुनामी से तबाही मच गई है, सैकड़ों की मौत हो गई है।



पहारू - भारत में सैकड़ों मौत तो गरीबी व भुखमरी से हो जाती है।





4. समारू - झारखंड में दूसरों से फैसले लिखवाने वाले जज को बर्खास्त कर दिया गया है।



पहारू -… Continue

Added by rajkumar sahu on March 13, 2011 at 12:00am — No Comments

तेरा एहसास ..

एक एहसास तुझे पाने का..

मुझमें उत्साह जगा देता है...
एक एहसास तुझे खोने का ..…
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Added by Lata R.Ojha on March 12, 2011 at 10:30pm — 3 Comments

कुछ मेरे शेर

(1)

मै तेरे खयालो मै खोया हु अकसर

तू रातो को मुझको सताने लगी है

तू   छोड़   ना   देना   साथ   मेरा

तू खुद से ज्यादा याद आने लगी है

 

(2)

उसको देखू तो लगे चाँद को देखा

मेने आज फिर मेरे भगवान को…

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Added by Tapan Dubey on March 12, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

रिश्ते सूखे फूल गुलाबों के

रिश्ते सूखे फूल गुलाबों के 
भूले जैसे हर्फ़ किताबों के
 
ये मिलना भी कोई मिलना है 
इस से अच्छे दौर हिजाबों के
 
सीधी सच्ची बातें कौन सुने 
शैदाई है लोग अजाबों के
 
दौर फकीरी का भी हो जाये 
कब तक देखें तौर रुआबों के 
 
 ना छिपता,ना पूरा दिखता है
पीछे जाने कौन नकाबों के
 
कई सवारों ने ठोकर खाई 
जाने…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 12, 2011 at 2:30am — 7 Comments

सांसद निधि बढ़ाना, कितना जायज ?

सांसदों की निधि बढ़ाने की मांग पर आखिरकार सरकार ने मुहर लगा ही दी। बरसों से देश के सैकड़ों सांसद यह मांग करते आ रहे थे कि उनकी निधि 2 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये कर दी जाए। सांसदों की इन बहुप्रतीक्षित मांग के लिए एक समिति भी बनाई गई थी, जिसके माध्यम से सांसद निधि बढ़ाने की सिफारिश सरकार से की गई थी और जिसमें अंतिम छोर के गांव-गरीब के विकास की दुहाई दी गई थी। पहले तो इस मुद्दे पर सरकार की दिलचस्पी नजर नहीं आई थी, लेकिन सरकार के अंदर व बाहर तो वही सांसद हैं, जिन्हें संसद में प्रस्ताव पारित करने का… Continue

Added by rajkumar sahu on March 12, 2011 at 1:00am — No Comments

क्या जिंदगी ????

मै खुद की बेबसी से मजबूर हैरान हूँ

खबर क्या तुम्हें कैसे चल रही है जिंदगी

 

हर सुबह हर शाम अधूरी एक आश में,

दिल के विरह की आग में जल रही है जिंदगी

 

किससे करे शिकवा,और क्युओं करूँ

अटूट प्रेम में छली गयी मेरी जिंदगी

 

क्या खबर कब थमेगा जिंदगी का कारवाँ

बेमतलब की ईन राहो पर खल रही है जिंदगी

 

तेरी दगाबाजी से दिल यूँ चूर-चूर हो गया क्यूँ ये

 बेवफा तेरे दर्द का सितम सह रही है जिंदगी तू

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 11, 2011 at 10:08pm — 3 Comments

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