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ग़ज़ल :- कहीं कोई कमीं है

ग़ज़ल :- कहीं कोई कमीं है

 

कहीं कोई कमी है ,

निगाहों में नमी है |

 

इरादे चल रहे हैं ,

कहाँ पटरी थमी है |

 

कमल का तय था खिलना,

जहां काई जमी है |

 

दरख़्त पीले पड़े हैं ,

घरौंदे में गमी है |

 

जुबां पर गालियाँ है ,

वो सचमुच आदमी है |

 

मिटाता शामतों को ,

कोई पौधा शमी है |

 

है सच बेटे की हर एक ,

शिकायत लाजमी है |

 

कभी काशी ना छोडूँ ,

यहाँ तबीयत रमी है |

 

@(अभिनव अरुण # ०९-०९-०९)

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Comment by Abhinav Arun on April 3, 2011 at 1:53pm
तपन जी हार्दिक आभार !!
Comment by Tapan Dubey on March 28, 2011 at 5:55pm
जुबां पर गालियाँ है ,

वो सचमुच आदमी है |

वैसे तो पूरी रचना बहुत अच्छी है पर ये शेर बहुत पसंद आया मुझे,
Comment by Abhinav Arun on March 14, 2011 at 8:32am
शुक्रिया आशीष जी |
Comment by आशीष यादव on March 13, 2011 at 8:10pm
chhoti- chhoti panktiyon me bada asar.
Comment by Abhinav Arun on March 13, 2011 at 3:22pm
शुक्रिया बागी भाई | आपका स्नेह यूं ही बना रहे |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2011 at 2:53pm
अरुण भाई , छोटी बहर पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , बहुत बढ़िया |

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