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Hemant kumar
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Gender
Male
City State
Bhatapara. Cg
Native Place
Raipur
Profession
Teacher at education

Hemant kumar's Blog

अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,--ग़ज़ल

2212/2212/2212



अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,



काँटो से मैं खुद को सजाया करता हूँ।







इन मन्दिरों में मस्जिदों में जाना क्या,



कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।







रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,



गम को मियाँ हँस कर छुपाया करता हूँ।







मुझसे भी मिलने गाँव तुम आया करो,



मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।







मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,



मै प्यार मे… Continue

Posted on May 10, 2017 at 11:47am — 8 Comments

उस से मुझको सच में कोई शिकायत भी नही (ग़ज़ल)

2122, 212, 2122, 212



उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,

हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।



इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,

गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।



अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,

ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।



आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,

इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।



जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,

अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।



मौलिक व…

Continue

Posted on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments

ग़ज़ल

२१२२/१२१२/२२

हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।

जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।

दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।

वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।

जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।

मौलिक व अप्रकाशित

Posted on April 6, 2017 at 9:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल

२२१२/२२१२/२२१२

बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।

दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।

माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।

दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।

बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।

मौलिक व अप्रकाशित

Posted on March 28, 2017 at 9:00pm — 7 Comments

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At 4:38pm on February 8, 2017,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

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