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रक्षिता सिंह
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रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
Jun 29
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की है। मुँह माँगा दहेज़ दिया है..और फ़िर उनका लड़का तो कुछ कमाता वमाता है नहीं, निठल्ला है एक नंबर का। कहता था सादी के बाद तुझे बम्बई ले जाएगा। अब खुद ही…"
Jun 29
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है  विश्वास  ही, हर संकट में ओट।"  वास्तव में संकट के घड़ी में एक विश्वास ही तो है जो धैर्य बनाए रखता है और इसके साथ ही आपने विश्वासघात को भी अनेक…"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के समय में जिन छोटी-छोटी बातों पर संबध टूट रहे हैं और जो गतिविधियाँ समाचार के माध्यम से सामने आती हैं बहुत ही आश्चर्य होता है ।"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सादर प्रणाम,  आदरणीय"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  हृदयस्पर्शी रचना ! हाल ही वह घटना मुझे याद आ गयी, सटीक शब्दों में मन को झकझोर देने वाली प्रस्तुति !"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"क्या वो लौटा सकता था ? बड़े ही तैश में आकरउसने मेरे खत लौटा दिये...वो अँगूठी !वो अँगूठी भी उतार फेंकी-जिसे आजीवन,पास रखने का वादा किया था उसने!कभी ईश्वर को साक्षी मानकर-एक काला धागा,पहनाया था उसने मुझे-"अब तुम मेरी हो चुकी हो "फिर ये…"
Jun 14
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"बहुत खूब, आदरणीय ... सादर प्रणाम ! बेहद खूबसूरत मक़्ते के साथ एक बेहतरीन प्रस्तुति ! हार्दिक बधाई स्वीकार करें । " ख़्वाब में छू के चले जाना भी कोई मिलना है "अमित",दीदार-ए-इश्क़ को कमबख़्त, एक लम्हा भी न मिला। "  बेहद…"
Apr 25
रक्षिता सिंह updated their profile
Apr 8, 2023
Sheikh Shahzad Usmani left a comment for रक्षिता सिंह
"आदाब। धन्यवाद । लेकिन कृपया अपना मूल वास्तविक नाम भी तो बताइएगा... यहाँ या सोशल मीडिया पर।"
Dec 30, 2022
pratibha pande and रक्षिता सिंह are now friends
Dec 12, 2022
आचार्य शीलक राम left a comment for रक्षिता सिंह
"धन्यवाद आदरणीय"
Dec 2, 2022
रक्षिता सिंह left a comment for आचार्य शीलक राम
"Welcome sir ! "
Nov 30, 2022
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-92 (विषय: रोटी)
"सादर प्रणाम आदरणीया, क्या संस्मरण लघुकथा के अंतर्गत नहीं आ सकता , कृपया मार्गदर्शन करें। क्या कोई ऐसी लघुकथा लिखी जा सकती है जिसमें एक  व्यक्ति दूसरे को अपना संस्मरण सुनाए ?"
Nov 30, 2022
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-92 (विषय: रोटी)
"आदरणीय शेख़ जी, सादर प्रणाम ।  मैं पूंछना चाहती हूं कि क्या संस्मरण लघुकथा के अंतर्गत आ सकते हैं ? "
Nov 30, 2022

Profile Information

Gender
Female
City State
Noida
Native Place
Ujhani
Profession
Fashion desinger
About me
NA

Comment Wall (3 comments)

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At 7:07pm on December 30, 2022, Sheikh Shahzad Usmani said…

आदाब। धन्यवाद । लेकिन कृपया अपना मूल वास्तविक नाम भी तो बताइएगा... यहाँ या सोशल मीडिया पर।

At 7:29pm on December 2, 2022, आचार्य शीलक राम said…

धन्यवाद आदरणीय

At 10:25pm on June 20, 2018, SudhenduOjha said…

आदरणीया सुश्री रक्षिता सिंह जी, नमस्कार। रचना आपको पसंद आई, धन्यवाद....

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उन्हें मालूम नहीं ...

बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू

मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ

वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का

गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के

वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह

मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…

Continue

Posted on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments

अल्फाज़

अल्फाज़ रूठें हैं -
छोटे बच्चों की तरह,  

मेरी शायरी पर -
अपने पैर पटक रहे हैं,

बहुत अरसे के बाद -
आया हूँ मिलने इनसे,

यकीनन इसलिए-
रूठे हैं मुझसे कट रहे हैं !!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Posted on February 8, 2019 at 10:25am — 4 Comments

प्रिय

तेरी मीठी बातों से ही

भरता मेरा पेट प्रिय,

जिस दिन तू गुमसुम रहती है-

भूखा मैं सो जाता हूँ !!

मैखाना, ये आँखें तेरी

पीने दे मत रोक प्रिय,

जब जब ये छलका करती हैं-

और बहक मैं जाता हूँ !!

रहता हूँ तेरे दिल में मैं

बनकर तेरा दास प्रिय,

जब भी टूटा है दिल तेरा-

तब मैं बेघर हो जाता हूँ !!

मदहोश सा कुछ हो जाता हूँ

जब होती हो तुम साथ प्रिय,

छू कर निकलूँ जो लव तेरे तो-

ज़ुल्फ़ों में खो जाता हूँ…

Continue

Posted on January 3, 2019 at 6:41pm — 4 Comments

विरह गीत

अश्रु भरे नैन,
नाहीं आवे मोहे चैन
कैसे कटें दिन रैन,
इस विरहा की मारी के...

मन में समायो है,
ये जसुदा को जायो
कोई ले चलो री गाम मोहे,
कृष्ण मुरारी के...

कर गयो टोना,
नंनबाबा को ये छोना
देख सांवरो सलौना,
गाऊँ गीत मल्हारी के...

व्याकुल सो मन
अकुलाये से नयन
बिन धीरज धरें ना
चितवन को निहारि के...

(मौलिक व अप्रकाशित)

Posted on August 19, 2018 at 8:58pm — 11 Comments

 
 
 

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
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