For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-56 (विषय: समय)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-56 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-56
विषय: समय
अवधि : 29-11-2019  से 30-11-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2419

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

साथ
***
- तुमने मेरा साथ नहीं दिया।
- कैसे?' साथ चलती आकृति ने सवाल किया।
' मैंने तुम पर बहुत भरोसा किया।
' फिर क्या?'
- मुझे कोई फायदा नहीं हुआ।'
' कैसा फायदा मेरे भाई?'
'अरे तुमने साथ देने की बात की थी।
' कि साथ चलने की?'
' वही हुआ न?'
' वही कैसे?'
' क्यों नहीं?'
' साथ चलना,साथ देना होता है क्या?'
' तो क्या नहीं होता?'
' बिलकुल नहीं। हां,कभी कभार की बात दीगर है।'
' तो समझ लो,कभी कभार।'
' पर तुम चाहते क्या हो?'
' सफलता,शुहरात ... और क्या?'
' तो फिर समस्या क्या है?'
' सफल होते होते रह जाता हूं।ओहदा मिलता है, पर छिन जाता है।शुहरत धूमिल हो जाती है।'
' क्षणिक प्राप्ति को तुम सफलता और फिर शुहरत का पर्याय समझ लेते हो।'
' हां,यह तो सही है।'
' इतना ही नहीं,तुम कुछ पाने के लिए कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हो,कर गुजरते हो।यह तुम्हें भ्रम जाल में फंसा देता है।'
' फिर क्या करूं?'
' ध्येय के साथ साथ प्रेय का भी ध्यान रखो। क्या करना है और क्या नहीं करना है,इसका ख्याल हमेशा रखना चाहिए।क्या आदमी वह सेब करता है,जो जानवर करते हैं? बता ओ तो।'
' नहीं।'
' तो फिर अपनी करनी का दोष मुझे क्यों देते हो कि मैंने साथ नहीं दिया?'
' लगा कि मेरे कर्म - कुकर्म सबमें तुम मेरे साथ हो।'
' मैं कभी किसीके साथ नहीं होता।लोग मेरे साथ होना चाहते हैं।मुझे अपने साथ समझ लेते हैं,अपने कुकर्म का कुफल मेरे मत्थे मढ़ने के लिए। हां, यह भी सुना जाता है कि फलां का समय आजकल अच्छा चल रहा है।'
' मैं साथ नहीं होता मतलब? तुम तो .....परछाईं हो....स्त्री हो....फिर पुरुषत्व का प्रदर्शन क्यों...?'
' हां, वह परछाईं है मेरी।' तीसरी आवाज से मित्र चौंक गया।
' कौन हो तुम?'
'समय, मैं समय हूं।अनवरत चलता हूं।लोग मेरी परछाईं को पकड़ने का यत्न करते रहते हैं।'
मौ लिक व अप्रकाशित"

बेहद उम्दा तरीके से रची गई अत्यंत प्रभावशाली रचना भाई मनन कुमार सिंहजी सिंह जी

  • शुक्रिया अजय जी।

आ. भाई मनन जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई।

आदाब। महत्वपूर्ण विषयांतर्गत गोष्ठी का आग़ाज़ गूढ़ कथ्य वाली रचना से करने के लिए हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। छवि (आकृति/परछाई) साथचलती है, साथ नहीं देती; सकारात्मक साथ। लेकिन यदि यह समय/वक़्त हो तो?

रचना का आरंभ और समापन बहुत बढ़िया लगा। लेकिन सुस्पष्टता हेतु वाक्य विन्यास संबंधित सम्पादन या परिमार्जन की गुंजाइश लग रही है। शीर्षक भी कुछ नया साहित्यिक सा मांग रही है यह बढ़िया रचना।   //..    ध्येय के साथ साथ प्रेय का भी ध्यान रखो। क्या करना है और क्या नहीं करना है,इसका ख्याल हमेशा रखना चाहिए।क्या आदमी वह सेब करता है,जो जानवर करते हैं? बता ओ तो।' // यह संवाद रचना में ज़बरदस्त है। इसी से एक शीर्षक निकाला जा सकता है। सादर। 

लघुकथा पर अपनी बेबाक और सार्थक टिप्पणी करने हेतु आपका आभार आदरणीय उस्मानी जी।यह मेरे लिए उत्साहवर्धन है,सादर।

//मैं समय हूं।अनवरत चलता हूं।लोग मेरी परछाईं को पकड़ने का यत्न करते रहते हैं।'//

क्या क्षणे हैं आ० मनन कुमार सिंह जी, बहुत ही ज़बरदस्त पंच-पंक्ति है. संवाद शैली में लिखी आपकी यह लघुकथा बहुत ही अर्थगर्भित है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज जी।

बहुत बढ़िया लघु कथा भाई शेख शहजाद उस्मानी जी प्रकृति विरासत संस्कृति संस्कार व क्या शानदार सामंजस्य बिठाया अपने शब्दों का

आदाब। मेरी प्रविष्टि पर प्रथम राय और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब अजय गुप्ता साहिब। यह रचना अब अगले क्रम पर पोस्टिड है।

हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service