आदरणीय साथिओ,
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आयोजन मे इतनी बढ़िया प्रथम प्रस्तुति देने हेतु आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय !
आयोजन की शुरूआत सधी हुई लघुकथा से हुई । सादर शुभकामनाएं ।
"खारा पानी / दूषित मानसिकता"----
" तुम्हें पता हैं, यहाँ के छोले भटूरे बेहद लज़ीज़ हैं ! कभी ट्राइ किए ?" मनोहर डेरी रेस्टोरेंट में कोने की एक टेबल की ओर जाते हुए उसने कहा
" हूँउउउ! " धीरे से मुस्कुराते हुए वह भी सामने की कुर्सी खींचकर बैठ गई.
" वेटर! आर्डर प्लीज" उसने बहुत ऊँची आवाज़ लगाई.
" जी सर! क्या लेंगे आप" वेटर उसकी तेज आवाज़ सुन दौडकर आते हुए पूछा
" दो प्लेट छोले भटूरे, कितना समय लगेगा जरा जल्दी करना. उसने उत्तेजित होकर कहा
" सर! कुछ तो वक्त लगेगा ही गरम-गरम बनने में .तब तक आप कहे तो कुछ सॉफ्ट ड्रिंक लगा दूँ.
" तुम क्या लोगी "- उसकी ओर देखे बिना ही उसने व्यग्रता से पूछा
" कुछ भी " - उसका जवाब आया
" मैं तो माकटेल ले रहा हूँ. दो अलग-अलग स्वाद एक साथ. क्या मस्त लगते हैं - तुम भी ट्राय करो"
" नहीं - नहीं .. ऐसा करो मेरे लिए तो सिंपल आरेंज ही मंगवा दो. मुझे बहुत पसंद है"
" तुम भी थोड़ी अजीब हो ! अरे, हमेशा कुछ नया करते रहना चाहिए. चलो कोई बात नही, अगली बार जब आओगी ... मेरा कहा मानना" इंतजार करते हुए वेटर को अपना आर्डर देते उसने कहा ----
" कितने सुंदर लग रहे है ना ये पीले और सुर्ख़ लाल गुलाब इस फूल दान में. मुझे पीला रंग बहुत पसंद है और तुम्हें ?" सृष्टि ने अपने आप को संयत करते हुए पूछा
"ओह! तुम्हारी च्वाईस भी बडी ही सिंपल है. वैसे तुम खुद भी बडी सिंपल हो. उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसके नज़दीक कुर्सी खिसकाते उसने कहा
" हां जी! मुझे ज्यादा दिखावा पसंद नहीं है" जल्दी - जल्दी हाथ छुड़ाने का प्रयत्न करते हुए उसने कहा
एक हाथ में गिलास थामें धीरे-धीरे जूस सिप करते उसकी नजर जैसे ही सामने गई तो उसके देखते ही वो गिलास को एक साँस मे खाली कर चुका था . यह देख वो थोड़ा असहज हो गई थी. अभी कुछ ही दिनों पहले तो वे दोनो सगाई की रस्म में बंधे थे और इतनी आतुरता...
" यू नो कॉलेज के समय से ही मुझे तो यह शोख लाल रंग वाले गुलाब पसंद है. मैनें बहुतों को...." उसने पेपर नेपकिन से मुँह साफ़ करते हुए कहा
"ओह! "वह बस इतना ही कह पाई.
"अच्छा , एक बात बताओ वास से एक फ्लॉवर स्टिक निकालते हुए उसने पूछा ..तुमने कभी किसी को लाल गुलाब देकर प्रपोज किया था." वो अब कुछ अघिक ही खुलना चाह रहा था.
"शिट्ट्ट---" सृष्टि ने अपना हाथ छुडाते हुए अपने दाहिनी हाथ की अँगुली से रिंग निकालकर उसके सामने रख दी ..
निलेश कभी टेबल पर पड़ी उसकी दी हुई अँगूठी तो कभी तेज कदमों से जाती हुई उसकी पीठ को देखता रहा.
स्टिक का काँटा उसकी अँगूली में चुभ गया, गुलाब छिटक कर दूर जा गिरा
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