आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया, कुछ अलग लिखा आपने विषय पर, बधाई आपको
मिथ से हकीकत (लघुकथा)
उम्र भर मैनें वैसी ही जिंदगी बिताई जैसी मेरे घर की दुनिया और समाज ने चाही थी । मगर आज मैं बेड पर लेटे हुए ये सोच रहा था कि मुझे क्या ऐसे ही जीना चाहिए था । बचपन में जिस तरह की कहानियाँ मैनें सुन रखी थी उन्हें मैं अपनी जिंदगी का हिस्सा बना कर ही जिंदगी जी रहा था ।
और साथ ही जैसा घर का माहौल था जिंदगी के बारे यही सुना था कि जिंदगी चलाने वाला कोई और है, मगर मैं कभी मिला नहीं, शायद कोई भी नहीं मिला उसे ।
मगर आज जिस हालत में मुझे हस्पताल में दखल कराया गया था । मेरी हालत के बारे सभी घर वाले भी चिंतत थे और उनके चेहरे भी मुरझाए हुए थे । मेरी हालत मुझे खुद भी बहुत सिरियस लग रही थी साँस लेने मैं बहुत तकलीफ हो रही थी ।
मेरे घर वालों को डाक्टर के कहे पर भी यकीन नहीं हो रहा था, और मुझको भी खुद पे यकीन नहीं आ रहा था ।
मैं सोच रहा था "बस अब ......!" ।
मगर आज सुबह जब मेरी जाग खुली तो मेरे इर्द गिर्द का माहौल बदला हुआ था । मुझको अभी भी खुद पर यकीन नहीं आ रहा था, मगर नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी थी ।
जब डाक्टर ने मुझे कहा, “अब तुम खुद शौचालय जा सकते हो, तब मेरे मुँह से अचानक ही निकला, "सच"
तब मुझे लगा कि जैसे किसी मिथ ने हकीकत की जिंदगी की तरफ सफर कर लिया हो ।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, इस प्रस्तुति एवं आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई. सादर
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है आ० मोहन बेगोवाल जी, अभिनन्दन स्वीकार करेंI
प्रदत्त विषय पर अच्छी लघु कथा लिखी है आद० मोहन बेगोवाल जी हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।बढ़िया लघुकथा।
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