For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-151

विषय : "पहला प्यार"

आयोजन अवधि- 13 मई 2023, दिन शनिवार से 14 मई 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 मई 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 2665

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय सर रचना पर समय देने के लिए धन्यवाद|   अपने अमूल्य मार्गदर्शन से रचना में सुधार करने के लिए हार्दिक धन्यवाद | आपकी प्रशंसा से मेरा हौसला बढ़ा और दायित्व भी| सादर धन्यवाद|

आदरणीय सीमा मिश्रा जी, प्रदत्त विषय सुंदर रचना हेतु बधाई।

आदरणीय सर आपका हार्दिक धन्यवाद| सादर

//कितना गहरा था नशा, गहरा रहा खुमार।
जीवन भर घुलता रहा, पहला-पहला प्यार।।//

प्रेम नशे में डूबता, अद्भुत हुआ विचार।
प्रथम प्रेम को कर गया, यह दोहा साकार।।

//बिन मौसम के हो गई, अनायास बौछार।
खुशी कभी आश्चर्य है, पहला-पहला प्यार।//

जितनी बारिश प्रेम की, उतना ही आनंद।
प्रथम प्रेम गुणधर्म को, बतलाता है छंद।।

//नज़रों ने मिलकर दिया, चोरी को अंजाम।
लुटा प्रेम की नोक पर, सब्र औ चैन तमाम।।//

सब्र चैन सब लूटकर, करे नयन से वार।
समझा पहले प्यार का, ऐसा ही व्यवहार।।

//जो छीने ले जा रहा, उसका ही आभार।
इहलौकिक सी शय रहा, पहला-पहला प्यार।।//

सच ही हैं परलोक में, क्या होगा उपहार।
पाया जो इस लोक में, पहला पहला प्यार।।

//नहीं ज़रूरी हो सके, सोलह में हर बार।
कभी-कभी बत्तीस में, होता पहला प्यार।।//

प्रथम प्रेम में यह समझ, जीवन का उनवान।
कोई बंधन उम्र का, होता नहीं विधान।।

//धोखा और फरेब भी, छल करते कुछ बार।
बनकर आ जाते कभी, पहला-पहला प्यार।।//

नई उम्र को दे रहा, यह दोहा सन्देश।
प्रथम प्रेम के पूर्व भी, देखो तुम परिवेश।।

// नैनों ने जो भी कहा, समझे हृदय सुजान।
कहने-सुनने से बरी, प्रथम प्रेम की तान।।//

नयनों से जुड़कर हृदय, करता है जो खेल।
सक्षम दोहा आपका, बतलाता वह मेल।।

//कैसे अपने आप में, खूब रहा है झूल।
तरुण वृक्ष पर जब खिले, प्रथम प्रेम के फूल।।//

तरुणाई में प्रेम का, गज्जब पकड़ा मर्म।
समझाया क्या खूब है, प्रथम प्रेम गुणधर्म।।

//खिलकर हँसती झूलती, कभी लगाती मौन।
प्रथम प्रेम में है लता, हालत समझे कौन।।//

प्रथम प्रेम के हाल का, सुन्दर किया बखान।
नए पुष्प से सज गया, दोहों का उद्यान।।

//कली-कली की देह पर, देता फिरता जान।
पहले-पहले प्यार से, है भँवरा अनजान।।//

बतलाया क्या खूब है, भंवरे का अज्ञान।
प्रेम पंथ में हो गया, कारण का संधान।।

//फूल बैठकर लिख रहा, प्रथम प्रेम के छंद।
तितली फिरे बटोरती, बागों में मकरंद।।//

फूलों से मकरंद तक, सिरजा सुन्दर छंद।
देख देख हम झूमते, तितली का आनंद।।

//पर्वत राह निहारता, कर जाए बौछार।
बदली पहले प्रेम की, टकराए इस बार।।//

बाँट जोहते दिख रहे, हमको भी गिरिराज।
सोच रहे इस बार क्यों, मेघा है नाराज।।

// ढाई आखर की सही, जब इहलौकिक पीर।
जानी राँझे की तड़प, जाना क्या थी हीर।।//

समझी राँझा हीर की, हमने सारी पीर।
सचमुच लिखती आप हैं, हर दोहा गंभीर।।

मिले विषय के साथ में, दोहे करते न्याय।
तनिक सधे तो ये बने, मानक के पर्याय।।

दोहे का जवाब दोहा | कर दिया आपने कमाल आदरणीय मिथिलेश जी | आनंद आ गया | 

हार्दिक आभार आपका

क्या कहने भाई मिथिलेश जी...

हार्दिक आभार आपका

वाह आदरणीय

दोहे की तारीफ में, इक दोहा नायाब|

दे सकते हैं आप ही, इतना गज़ब जवाब||

आपका हार्दिक धन्यवाद, आभार | सादर

मेरे शब्दों का रखा, इतना ज्यादा मान

श्रेष्ठ लेखनी की यही होती है पहचान

आदरणीय मिथिलेश जी,

छंदों पर बहुत अद्भुत पकड़ का बेहतरीन उदाहरण !

मुबारकबाद कुबूल फ़रमाएं!

सादर!

छंदों पर प्रतिछंद से, होता है विन्यास 

बहुत दिनों के बाद फिर, संभव हुआ प्रयास 

बहुत खूब, आ० मिथिलेश भाई

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service