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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-१२( Now Closed )

परम आत्मीय स्वजन,

बिना किसी भूमिका के पेश है इस माह का तरही मिसरा, अदब की दुनिया में जनाब शाहिद माहुली किसी तआर्रुफ के मोहताज़ नहीं हैं, यह मिसरा भी उन्ही की एक ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है|

आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए 
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
२१२२   ११२२ ११२२ २२
बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन

कफिया: आई (बनाई, सजाई, मिटाई, उठाई...आदि आदि)
रदीफ: जाए

 
विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें| यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझाने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी कि कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २५ जून दिन शनिवार के लगते ही हो जाएगी और दिनांक २७ जून दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-12 के दौरान अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी ग़ज़ल एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर २५ जून से पहले भी भेज सकते है, योग्य ग़ज़ल को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा,ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

शुक्रिया सतीश जी।
बहुत शुक्रिया वंदना जी, मगर आप इतनी देर से क्यों आई?
इमरान भाई ये पंक्तियाँ दिल को छु गयीं //न हो सग़ीर अमल न फसाद-ए-रद्द-ए-अमल,
आओ, इल्ज़ामात की तहरीर मिटाई जाए.// ..बहुत ही उम्दा. बधाई स्वीकार करें.

//हर शो'बे पे ये माना के हमें हार मिली,
जीत की, झूटी ही सही, आस जगाई जाये.//

इस उम्मीद और आस को हज़ार सलाम.... 


//इन्तेखाबात की ताक़त तो अभी हाथ में है,
आओ सच्चाई पे ही चाप लगाई जाये.//

बहुत खूब..  इस अशआर ने गहरे झकझोरा है.


//लाल परचम न लहू लाल बहाने के लिये,
आओ भूलो को यही बात बताई जाये.//

विश्वास है, पैग़ाम जिनके नाम है, संदेश मिल गया होगा.. अमल हो.. आमीन.

(भूलो में अनुस्वार लगा कर भूलों कर लें, भूलवश छूट गया है)

 

इस खूबसूरत आग़ाज़ के लिये बधाई. 

‌‌‌सौरभ जी!
आपको मेरे अश‘आर पसंद आई बड़ी खुशी हुई,
बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ मैं आपका,
यही गुज़ा​रिश है आपसे, बस इसी तरह मेरी भूलों को याद ​दिलाते र​हियेगा।
आपनी पारखी प्लस पैनी दृष्टि को शत शत नमन है आदरणीय सौरभ भाई जी !
जवाब नहीं आदरणीय सौरभ जी की समीक्षा का .......:))

 

ओ बी ओ सदस्य जनाब   मुईन शमसी जी की ग़ज़ल ...

 

आओ मिलजुल के कोई बात बनाई जाए 
आपसी प्रेम की इक रस्म चलाई जाए । 

नफ़रतों का ये शजर अब है बहुत फैल चुका 
अब तो उल्फ़त की कोई बेल लगाई जाए । 

दोनों जानिब से ही इस आग ने घी पाया है 
दोनों जानिब से ही ये आग बुझाई जाए । 

तलख़ियां भूल के माज़ी की, गले लग जाएं 
दूरी बरसों से बनी है जो, मिटाई जाए । 

जाहिलिय्यत के अंधेरों को मिटाने के लिये 
हर तरफ़ इल्म की इक शम्मा जलाई जाए । 

जो मदरसे में हैं तलबा, वो पढ़ें संसकिरित 
और उर्दू ’शिशु-मंदिर’ में पढ़ाई जाए । 

छोड़ के मंदिर-ओ-मस्जिद के ये झगड़े ’शमसी’ 
एक हो रहने की सौगंध उठाई जाए ।

//नफ़रतों का ये शजर अब है बहुत फैल चुका 
अब तो उल्फ़त की कोई बेल लगाई जाए । //
//जाहिलिय्यत के अंधेरों को मिटाने के लिये 
हर तरफ़ इल्म की इक शम्मा जलाई जाए । //
//छोड़ के मंदिर-ओ-मस्जिद के ये झगड़े ’शमसी’ 
एक हो रहने की सौगंध उठाई जाए ।//
‌‌‌लाजवाब ग़ज़ल एक-एक लफ्‍़ज़ अमल करने के ​लिए..बहुत बेहतरीन
जो मदरसे में हैं तलबा, वो पढ़ें संसकिरित 
और उर्दू ’शिशु-मंदिर’ में पढ़ाई जाए । 
bahut hi nek khayaalat..bahut bahut badhai..
नफ़रतों का ये शजर अब है बहुत फैल चुका 
अब तो उल्फ़त की कोई बेल लगाई जाए ।
वाह  वाह , बहुत खूब मोईन भाई , सभी शे'र बेहतरीन कहा है आपने | मकता का शे'र बहुत ही संदेशपरक है | दाद कुबूल करे | 

कमाल की ग़ज़ल कही है मोईन जी ने।

दोनों जानिब से ही इस आग ने घी पाया है 
दोनों जानिब से ही ये आग बुझाई जाए ।
कमाल का शे’र है। मोईन जी को बहुत बहुत बधाई।

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