आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीया अर्चना जी
मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी
आस्था की नुमाइश ...बहुत बढ़िया .. सटीक तंज ..।
हार्दिक आभार आदरणीया
सच है वर्तमान में आस्था की परिभाषा यही है। बंधन मुक्त होकर काम करना जब चाहो जनेऊ धारण कर लो जब चाहो टोपी लगा लो। जनेऊ की क्या मर्यादा है या टोपी लगाने के बाद आपको कैसा आचरण प्रस्तुत करना है उस से कोई लेना देना नहीं। हार्दिक बधाई।
कथा को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आपका आदरणीय
सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय जी
हार्दिक आभार आदरणीय
आस्था के नाम पर दिखावेबाज़ी और आडंबर रचने वाली मानसिकता पर अच्छा प्रहार किया है, जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।
हार्दिक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी, जनेऊ पहनना अपनी संस्कति की पहचान है और संस्कृति का प्रति आस्था का परिचायक है। आज के बदलते समय के साथ आस्था का रूप भी बदल रहा है। लेकिन बुजुर्ग इस बदलते समय के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते और उनका आहत होना स्वाभाविक ही है। विषय पर अच्छी लघुकथा । बधाई।
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