For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब कोई अपने तज्रिबात और एहसासात की जमीं पर ग़ज़ल गोई ,जज्बात निगारी और कुदरती मनाजिर की अक्कासी करता है तो वो जमाने भर से एक रब्त कायम कर लेता है |

और इस हक़ीकत से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि जिस शख्स़ में शाइरी का ख़मीर होता है वही शाइर अपनी जादू बयानी से हुनर मंदी से लोगों के दिलों में फ़तह हासिल करता है |

ऐसे शाइरों में मोहतरम ज़नाब समर कबीर साहब जी का नाम शुमार है |वो एक ऐसे हस्ताक्षर हैं जो सिर्फ अच्छी शाइरी के ही  महारथी  नहीं हैं बल्कि अरुज के भी अच्छे जानकार  हैं |

उम्दा  शाइर होने के अलावा वो बहुत अच्छे नेकदिल इंसान भी हैं |

समर साहब से मेरी पहचान ओपन बुक्स ओन लाइन के माध्यम से हुई |

आभासी दुनिया के बाहर उनसे रूबरू मिलने का सौभाग्य भोपाल ओबीओ साहित्योत्सव में प्राप्त हुआ |

ओबीओ पर वो हमेशा नव रचनाकारों का मार्ग दर्शन  और होस्लाफ्जाई करते हैं | मुझे भी हमेशा  एक बड़े भाई की तरह उनका आशिर्वाद और मार्गदर्शन मिलता रहता है |

मुझे समर साहब का ये मजमूआ-ए-कलाम ‘कौकब’ डाक द्वारा प्राप्त हुआ

तथा इस पर अपने विचार रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ|

‘कौकब’ एक खूबसूरत उन्वान है जिसे पढ़ते ही अर्थ जानने की जिज्ञासा हुई

‘एक बड़ा तारा’ | सच ही तो है इस  मजमूआ को कौकब-ए-शाइरी कहूँ तो कुछ गलत नहीं होगा |जितना खूबसूरत उनवान उतनी ही खूबसूरत इसकी शाइरी/गज़लें हैं|

जैसे जैसे उनकी गज़लें पढ़ती गई ऐसा लगता रहा जैसे मेरे जज्बात और एहसासात और जिन्दगी की शीरीनी व् तल्खियों का पूरा हिसाब ही उन्होंने अपने अशआरों में रख दिया हो|

उनके अंदाज़-ए-बयाँ और जुबान में कोई पेचीदगी नहीं| शेर पढ़ते ही बा जहन

समझ जाता है और बात सीधी दिल में उतर जाती है |

एक बानगी देखिये

“जब मेरे ज़ख्म भरने लगते हैं

सबके चेह्रे उतरने लगते हैं”

कितनी आसानी से अपनी बात रख दी उन तीमारदारों के लिए जो ऊपरी दिखावा करते हैं सामने आपकी सेहत की  दुआ करते हैं और दिल में तल्खियाँ पाले हुए हैं और अंदर ही अंदर  बुरा चाहते हैं       

सच्ची और अच्छी शाइरी वही है जो कारी और सामे को अपने साथ जोड़ ले

ये खूबी समर साहब के हर शेर में देखने को मिलती है |

ये चंद अशआर मुलाहिज़ा फरमाएँ....

“मुझे भी बाज़ू दिए हैं रब ने

मैं कैसे खाऊँ शिकार तेरा”

“मैं थक गया तो यही मुझपे टूट जाएगा

जो आसमान मेरे सर पे इंतजार का है “

 

 

ऐसे अशआर एक नेक दिल इंसान की कलम से ही निकलते हैं |

“मैं दुश्मनों से भी मिलता हूँ दोस्तों की  तरह

मेरे ख़ुलूस का पैकर अभी नहीं बदला “

झूटे वादे और कसम खाने वालों पर कितना अच्छा तंज किया है इन अशआरों में

“खा के एतिबार की  कसम

तोड़ दी है यार की कसम

तेरी असलियत बता गई

तेरी बार बार की कसम”

आज बिना पैसे के जिन्दगी नहीं चलती पैसे ना हों तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं पैसे की  ज़रूरत और अहमियत को इन चंद अशआरों में कितनी ख़ूबसूरती से ढाला है एक एक शब्द मानो दिल पर आघात  कर रहे हों ...

“शाम सर पे खड़ी है पैसे ला

आजमाइश कड़ी है पैसे ला

अपनी बीमार माँ का चेह्रा देख

मुँह छुपाए पड़ी है पैसे ला’

नाब समर कबीर साहब की  कलम वर्तमान समय के मसाइल से आँखें चार करने कि जुर्रत रखते हैं उन्होंने जिन्दगी की तल्ख़ और ठोस हकीकतों का मुतालआ समाजी सियासी और अख़लाकी पसमंज़र में बड़ी बारीकी से किया ..

निम्नलिखित अशआर इस बात के सच्चे गवाह हैं .

 

“असलाफ़ का दस्तूर-ए-कुहन छोड़ रहा है

इंसान महब्बत का चलन छोड़ रहा है”

“ये आप बता दीजिये इल्ज़ाम है किस पर

फ़नकार अगर बज़्म-ए-सुख़न छोड़ रहा है”

“रात बस्ती जली गरीबों की  

सुब्ह अख़बार हो गये रोशन”

समर साहब के कलाम में जहाँ रूमानियत व रूहानियत है वहीँ आज के माहौल की  बेहिसी, आपसी रंजिश,नफ़रत सियासत दारों की  शातिर चालें ,आज की  युवा पीढ़ी में पश्चिमी सभ्यता का चलन. तथा नये नये उपकरणों का दुरूपयोग

संवेदन हीनता अर्थात आज की  ज़िन्दगी की  सच्चाई को  आईना दिखाया है |

वो लिखते हैं ..

“सियासी लोगों के हथियार हैं ये मोबाइल

शिकार करते हैं इनसे ये घर में बैठ कर”

 शाइर अपनी ज़िन्दगी से ही खफ़ा  होकर शिकायत करता है और शेर के माध्यम से  आज के हालात पर जबरदस्त तंज  करता दिखाई देता है ..

“जिन्दगी तू मुझे लेकर कहाँ आई हुई है

लाश हर एक ने काँधे पे उठाई हुई है”

 

‘ख़्वाब में भी तुझे पत्थर ही दिखाई देंगे

तूने शीशे कि हवेली जो बनाई हुई है’      

 शाइर अपने वतन के लिए फिक्रमंद है पलायनवाद को आइना दिखाता हुआ शेर है ये ..

‘हमें तो सर ज़मीन-ए-हिन्द अपनी जाँ से प्यारी है

ज़लील-ओ-ख्वारहोता है जो इसको छोड़ कर जाए’

एक लाचार पिता के दिल से निकले हुए ये अलफ़ाज़ आज कल की भागदौड़ की जिन्दगी में कि तरफ इशारा करते हैं --

“खुश न कर पाया अपने बच्चों को

बोझ सर पे रखा था ऑफिस का”

 कितनी सीधी सच्ची बात को  बड़ी सादगी से कहता शेर---

“हाथ में आईना थमा देना

जब भी हो जाए बेअदब कोई”

मुफ़्लिसी के  दर्द को पीता हुआ शेर इससे बेहतर क्या होगा...

“रखा था बोझ मेरे सर पे इक जमाने का

मैं कैसे सोचता जन्नत में घर बनाने का”

गम्भीर अशआरों को पढ़ते पढ़ते फागुन का कलाम सामने आया तो सच में मन भी फागुन की  मस्ती  में झूम उठा ...

“बड़ा चंचल हुआ जाता है मन फागुन की  मस्ती में

नजर आता है जब भीगा बदन फागुन की मस्ती में “  

दूसरों को नसीहत देने से पहले अपने गिरेबाँ में झांकना ज़रूरी है

इस बात को शाइर कितनी ख़ूबसूरती से शेर में ढालकर कहता है ..

 

“पहले अपनी रूह का ये मकबरा रोशन करें

और उसके बाद हम सोचें कि क्या रोशन करें”

“नफरतों के इन अंधेरों को मिटाने के लिए

हम चराग़ उल्फ़त के यारो जा ब जा रोशन करें”

किसी अपने के भविष्य की चिंता में भी शाइर कलम मुखरित हो उठती है

हर कसौटी के लिए कुंदन बनाना है तुझे

मेरे ख़्वाबों का सुनहरा कल तेरी बांहों में है

शाइर ने उपर्युक्त शेर जिसके लिए भी कहा है किन्तु इसके निहाँ जो भाव हैं लगता है मेरे दिल के ही हैं जब मैं अपने बच्चों के भविष्य के लिए फिक्रमंद होती थी तो ऐसे ही भाव जेहन में आते थे| मेरे ही क्या ये शेर हर उस माँ बाप के लिए है जो अपनी औलाद को इस खुदगर्ज कठोर ज़माने में अपनी जगह बनाने के लिए अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए मार्ग दर्शन करते हैं तथा उनके लिए फिक्रमंद होते हैं |  

आज दोस्ती प्यार वफ़ा के माने बदल गए हैं इंसानों ने न जाने कितने मुखौटे लगा रखे हैं किसी  दोस्ती,वफ़ा का एतबार भी करें तो किस तरह ..

समर साहब के ये शेर भी यही कहते जान  पड़ते हैं

“टपक रहा था लहू जिनकी आस्तीनों से

बढ़े वो हाथ मेरी सिम्त दोस्ती के लिए “

“वक़्त पे कौन काम आता है

हैं तो कहने को मेरे यार बहुत”

 फूल खिलते हुए और बच्चे मुस्कुराते हुए अच्छे लगते हैं एक सुकून मिलता है उनकी मुस्कराहट  को देख कर कितना प्यारा शेर कह डाला शाइर ने इसी भाव में ..

“मेरे काँधों से कोई बोझ सरक जाता है

जब भी स्कूल से हँसता हुआ बच्चा निकले’

 

इस तरह १०० ग़ज़लों का ये  मजमूआ जिन्दगी के हर रंग से सराबौर है

मैं भाई जी , मोहतरम जनाब समर कबीर साहब को उनके इस बेहतरीन मजमुए

‘कौकब’ पर मुबारकबाद पेश करती हूँ |

 ‘मुझको छुपने नहीं देती है ग़ज़ल की  खुशबू

ढूँढ ही लेते हैं सब चाहने वाले मुझको”

और आख़िर में उनके इस शेर पर अपनी बात रखना चाहूँगी-------

 

“रौशनी हो न सके मंद कभी भी इसकी

जगमगाता रहे दुनिया को मुनव्वर कौकब “

खुदा से दुआ करती हूँ कि समर भाई जी इसी तरह उर्दू अदब की ख़िदमत करते रहें ख़ुदा उनको सलामत रखे सेहतमंद रखे और वह इसी तरह उर्दू शाइरी को मुनव्वर करते रहें ..आमीन |

कौकब के लिए तह-ए- दिल से हार्दिक बधाई ...शुभकामनाएँ... मुबारकबाद.. |  

----राजेश कुमारी 'राज' 

 

 

  

Views: 1148

Replies to This Discussion

बहना राजेश कुमारी जी आदाब, मुग्ध हूँ आपकी समीक्षा पढ़कर,आपने किताब का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है जो आपकी समीक्षा में साफ़ झलक रहा है,बहुत ख़ुशी हुई कि आपने अपना क़ीमती समय दिया और इतनी उम्दा समीक्षा लिखी,इसके लिए आपका बहुत आभारी हूँ, और तहे दिल से शुक्रगुज़ार भी,सलामत रहो बहना ।

आपको ये समीक्षा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आद० समर भाई जी |

ऐसा लगता है दीदी कि आपने मेरी भावनाओं को शब्द दे दिए हैं... इस खूबसूरत समीक्षा के लिए बधाई 

नीलेश भैया आपकी प्रतिक्रिया से समीक्षा का मान बढ़ गया आपका बहुत बहुत आभार 

अनुपम समीक्षा की है आदरणीया राजेश दीदी। हार्दिक बधाई स्वीकारें। अदबो कलम के सिपाही आदरणीय समर कबीर साहब को भी बहुत-बहुत दिली मुबारकबाद!

आद० सतविन्द्र भैया ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया कौकब  है ही इतना उम्दा संग्रह कि उसपर जितना लिखो कम ही होगा |

बहुत गहन और खूबसूरत समीक्षा जो आप जैसी ग़ज़ल कहने वाली ही कर सकती हैं    हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी  जी 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, आपकी इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा। "
25 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
53 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service