For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जरा जी कर देखें ...

चलो
जिन्दगी को
ज़रा करीब से देखें
दर्द को ज़रा
महसूस करके देखें
क्या खबर
कोई लम्हा
अपना सा मिल जाए कहीं
चलो
उस लम्हे को
जरा जी कर देखें//

जिन चेहरों पे हंसी
बाद मुद्दत के आई है
जिन आँखों में
अब सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है
जिस आंगन में
धूप अब भी
सहमी सहमी आती है
उस आंगन के
प्यासे रिश्तों से
जरा रूबरू होकर देखें
चलो!
जिन्दगी को
जरा जी कर देखें//

हमारे अहसास
किसी रिश्ते के
मुहताज तो न थे
दिल के जज़्बात
धड़कनों से
अनजान तो न थे
फिर क्यूँ
सफ़र
नज़र से नज़र का
अधूरा सा लगता है
आज भी
क्यूँ
तेरे चेहरे पे
मेरा नाम
खुदा सा लगता है
चलो
वक्त के पन्ने
फिर कभी पलट के देखेंगे
आँखों के दर्पण में
अपना अपना
समर्पण देखेंगे
मुड़ के देखें
या न देखें
पर
तू जैसी भी है
चल तुझे
ऐ ज़िंदगी !
जरा जी कर देखें//

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 613

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 13, 2017 at 3:51pm

आदरणीय   Mahendra Kumar जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 7:20pm

बढ़िया अतुकांत कविता है आ. सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:18pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। .. सृजन को अपनी शीरीं अल्फ़ाज़ों से मान देने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित त्रुटियों को संशोधित कर मैं रचना को पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। आपके अमूल्य सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:18pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब प्रस्तुति को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से प्रशंसित करने का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:17pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन को अपने स्नेहिल शब्दों से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 10, 2017 at 5:17pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 3:16pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, बहुत उम्दा,हमेशा की तरह एक बहतरीन कविता से नवाज़ा है आपने मंच को,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
17वीं पंक्ति में 'धूप भी अब भी'को "धूप अब भी" कर लें ।
27वीं पंक्ति में 'मोहताज' को "मुहताज" कर लें ।
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 7:58am
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, भावों की बगिया फिर से महक उठी । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2017 at 5:45am
आ. भाई सुशील जी अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 5:23am
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर् बार की तरह पुनः एक बेहद उम्दा और विचारणीय रचना, बधाई आपको। आपकी लेखनी को नमन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service