आदरणीय साथिओ,
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आ० अखिलेश जी . इस बेहतरीन कथा हेतु आपको बधाई , सादर .
आदरणीय गोपाल भाईजी, आपके उत्साहवर्धन से मेरा प्रयास सार्थक हो गया। हृदय से धन्यवाद आभार
बहुत बहुत बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी।एक मौलिक विषय चुन कर बेहतरीन लघुकथा प्रस्तुत की है आपने।
आदरणीय तेजवीर भाईजी, मेरा प्रयास सार्थक हो गया। हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय मुजफ्फर भाई, हृदय से धन्यवाद आभार
आदरणीय महेन्द्र भाईजी, मेरा प्रयास सार्थक हो गया। हृदय से धन्यवाद आभार
हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी कथा बहुत अच्छी हुई है | पंच लाइन शानदार है |
आदरणीया कल्पनाजी, मेरा प्रयास सार्थक हो गया। हृदय से धन्यवाद आभार
तलाक़ - लघुकथा –
आज बड़ी अदालत में तलाक़ के एक अनोखे मुक़द्दमे की ज़िरह थी। अदालत खचाखच भरी हुई थी| इस मुक़द्दमे की खासियत यह थी कि लड़का मुसलमान था और लड़की हिन्दू थी। मोहल्ले वालों के अनुसार यह प्रेम विवाह का मामला था| लड़का मुस्लिम धर्म के मुताबिक उसे तलाक़ दे रहा था। लेकिन लड़की का परिवार मामले को अदालत में ले पहुंचा।
माननीय ज़ज़ साहब ने लड़के से चंद सवालात किये,
"क्यों ज़नाब, आप तलाक़ क्यूं देना चाहते हो"?
"हुज़ूर, यह लड़्की मेरी ख्वाहिशों पर खरी नहीं उतरती है"।
"मगर इससे तो आपने अपनी पसंद से शादी की थी"।
"जी हुज़ूर, इसका भाई मेरा दोस्त था। मेरा इसके घर आना जाना था। यह बहुत खूबसूरत थी और घरेलू काम काज में भी अब्बल थी। खाना भी बेहद लज़ीज़ बनाती थी”।
"इसलिये आपको इससे मोहब्बत हो गयी"।
"जी नहीं हुज़ूर, मैंने तो कभी इससे बात तक नहीं की थी| हक़ीक़त यह थी कि इसके परिवार के लोग, इसका दो बार रिश्ता, होते होते टूट जाने से दुखी थे। इसलिये मैंने हिम्मत करके मेरे दोस्त से, आगे होकर इससे शादी की इच्छा ज़ाहिर कर दी"।
"और इसके परिवार वाले तुरंत मान गये"।
"तुरंत तो नहीं, मगर थोड़ी ना नुकर के बाद राज़ी हो गये"।
"तो अब क्या यह बच्चा पैदा करने के क़ाबिल नहीं है"।
"नहीं हुज़ूर, ऐसी कोई बात नहीं है, हमारा एक बच्चा भी है"।
"तो ज़नाब अब ऐसी क्या परेशानी पैदा हो गयी कि बात तलाक़ तक आ पहुंची"।
"हुज़ूर यह लड़की गूंगी बहरी है"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
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