‘रिमझिम के तराने लेके आई बरसात.. याद आये किसी की वो पहली मुलाक़ात’ ---गाना बज रहा था बिजनेसमैन आनंद सक्सेना साथ साथ गुनगुनाता जा रहा था रोमांटिक होते हुए बगल में बैठी हुई पत्नी सुरभि के हाथ को धीरे से दबाकर बोला- “सच में बरसात में लॉन्ग ड्राइव का अपना ही मजा होता है”.
“मिस्टर रोमांटिक, गाड़ी रोको रेड लाईट आ गई” कहते हुए सुरभि ने मुस्कुराकर हाथ छुड़ा लिया|
अचानक सड़क के बांयी और से बारिश से तरबतर दो बच्चे फटे पुराने कपड़ों में कीचड़ सने हुए नंगे पाँव से गाड़ी के पास आकर बोले –“आंटी हमें अगले चौराहे तक छोड़ देंगी क्या? वहाँ हमारा घर है” |
“बिठा लें क्या?” सुरभि ने पूछा
“अरे नहीं पूरी गाड़ी खराब कर देंगे देख नहीं रही हो पूरे भीगे हैं और पैरों में कितनी कीचड़ लगी हुई है”
जब तक सुरभि कुछ बोलती ग्रीन सिग्नल हो गया आनंद ने गाड़ी आगे बढ़ा दी |
बारिश और तेज हो चली थी आनंद को जैसे अचानक कुछ याद आया उसने सुरभि से पूछा– “टॉमी का घर बाहर कर दिया था या नहीं?”
“ हाँ-हाँ कर दिया था”
“चलो शुक्र है नहीं तो कल उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता”|
घर पँहुचते ही दोनों सबसे पहले बाहर बालकनी में गये जहाँ टॉमी बाहर बारिश में इत्मीनान से सो रहा था उसे ऐसे देख कर दोनों को हैरानी हुई पास जाकर उसके घर में झाँका तो हतप्रभ रह गए तीन पिल्ले कीचड़ में सने हुए उसके गद्दे पर बेखबर सो रहे थे उनको झांकते देख टॉमी उन पर भौंकने लगा|
सुरभि हँसते हुए बोली “देखो तो सड़क के पिल्लों को अपने घर में सुला कर खुद बाहर सो रहा है ये संत महात्मा और हमे ही भौंक रहा है न जाने क्या कह रहा है”
“बस बस तू क्या कह रहा है बेटा मैं समझ गया” आनंद मुस्कुराते हुए बोला –
“क्या समझ गए?” सुरभि ने पूछा
“यही की हम इंसान कितने कमीने होते हैं”|
------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० बैज नाथ शर्मा जी .आपको लघु कथा पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
बहुत सुन्दर ...मार्मिक लघु कथा ...बहुत बहुत बधाई
आद० गिरिराज जी ,लघु कथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना से मुग्ध हूँ दिल से बहुत बहुत आभार आपका .
आदरनीया राजेश जी , अच्छी संदेश प्रद लघुकतहा रची है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आद० डॉ० आशुतोष जी,लघु कथा पर आपकी उपस्थिति और अपने विचार साझा करना एक सुखद अनुभव करा रहे हैं सच में लघु कथाएँ या कहानियाँ हमारे आस पास होने वाली घटनाओं या वातावरण से ही जन्म लेती हैं इस कहानी के पीछे भी एक सच्चाई है जिसको शब्दों का जामा पहनाया है हाँ एक सार्थक सन्देश जो मैं जानवर के माध्यम से इंसान को देना चाहती थी उसी के मद्देनजर इस कहानी को आगे बढाया गया लघु कथा में एक रोचक अंत के साथ कोई नसीहत य सकारात्मक पक्ष भी डालना मेरी कलम का स्वभाव समझिये .आपका दिल से बहुत बहुत आभार तथा आपके विचारों का हृदय से स्वागत है .
आदरणीया राजेश जी आपकी लघुकथाए सीधे दिल से संवाद करती हैं ..मुझे अब ठीक से याद नहीं ..तोते को संदर्भित करती आपकी पहली लघु कथा को पढ़कर इस बिधा के प्रति मेरी रूचि बढ़ी थी तब से सतत प्रकाशित रचनाओं में आपकी ,आदरणीय प्रभाकर जी बागी जी और शेख जी की लघु कथाओं को मेरी निगाह ढूंढती रहती है .लघु कथा लेकिन लिखना तो दिवास्वप्न जैसा है //आपको पढता हूँ तो लगता है ये मंजर तो मेरे जीवन में कई बार घटित हुआ लेकिन बस वो मंजर सूक्ष्म सोच में तब्दील न हो सका / आदरनीय मिथिलेश जी के साथ प्रतिक्रियाओं के माध्यम से स्थापित संवाद से इस बिधा को समझने की दृष्टि पैनी हुयी है / आदरणीया निवेदन के साथ एक बात जरूर है .“चलो शुक्र है नहीं तो कल उसे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता”|इस मोड़ पर भी कथा एक सार्थक सन्देश दे रही है ..मैं इस बिधा में बिलकुल भी जानकार नहीं हूँ ..हाँ आज मिथिलेश जी के बिचारों को पढ़कर उनसे और फिर आपके बिचारों के पढ़कर आपसे सहमत हो रहा हूँ /दो ही तर्क मुझे भा रहे हैं / इस शानदार रचना पर ढेर सारी बधाई देते हुए सादर प्रणाम के साथ
आद० नीलम उपाध्याय जी ,आपको लघु कथा का कथानक रुचिकर लगा आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० नीलम उपाध्याय जी ,आपको लघु कथा का कथानक रुचिकर लगा आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० मिथिलेश भैया.आपकी विस्तृत समीक्षा /प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभारी हूँ आपने इस लघु कथा को अपने द्रष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है जो पाठक का एक हक भी किन्तु इसी संशय का जबाब मैं नीचे भी दे चुकी हूँ इसको भैया फ्लेशबैक के तरीके से भी लिखने का प्रयास किया किन्तु वो बात नहीं आई लघु कथा को वहीँ लाकर भी छोड़ सकती थी जहाँ आपने ब्रेक करके देखा किन्तु जो मैं एक जानवर के माध्यम से इंसान को नसीहत देना चाहती थी जो इस लघु कथा की रीढ़ समझिये वो बात कहाँ आ पाती वैसे भी इस कथा में कालखंड दोष मैं नहीं मानती कहानी एक ही वक़्त में आगे बढ़ रही है |बाकी तो हर किसी का अपना अपना नजरिया है इस पर चर्चा होना भी लघु कथा की सार्थकता है .बहुत बहुत आभार भैया .
आदरणीय राजेश कुमारी जी, बहुत ही शानदार कथानक. धन्यवाद स्वीकार करें.
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