मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ
ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ
हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं
वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें
महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे
क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के
चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ
यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता
सबक देती क़ुरान कहती है गीता
हो पैदा ये अहसास हर इक दिल में
जो गिरता हो उसको गले से लगाएँ
तुम्हें भी पता है , हमें भी खबर है
हो मंदिर या मस्ज़िद ये उसका ही घर है
महज़ सोच का फ़र्क़ है , राह इक है
जो भटकें हुएँ हैं , उन्हे ये बताएँ
अजय कुमार शर्मा
मौलिक & अप्रकाशित
Comment
तुम्हें भी पता है , हमें भी खबर है
हो मंदिर या मस्ज़िद ये उसका ही घर है
महज़ सोच का फ़र्क़ है , राह इक है
जो भटकें हुएँ हैं , उन्हे ये बताएँ ----- सत्य वचन , आदरणीय बधाइयाँ ।
आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ! बाकी सभी आदरणीय अग्रजों और अनुजों ने कह ही दिया है ! सादर
आदरणीय सुंदर रचना और सुंदर भाव .... टंकण दोष के लिए गुणीजनों के कथन से सहमत , इससे प्रवाह में बाधा होती है। कृपया अन्यथा न लेवें।
आदरणीय अजय शर्मा जी सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई. यहाँ मैं आ. विजय शंकर सर और आ. बागी सर की टिप्पणी के हवाले से कहना चाहता हूँ. पहला टंकण त्रुटी रचना के सौदर्य को खराब कर रही है -
मोहब्बत क आयो दिया हम जलाएँ.............. मोहब्बत के आओ दिए हम जलाएँ
ये नफ़रत के सारे अंधेरे मिटाएँ
हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं
वो खवाबों की पारियाँ वो चाँद और सितारें ....... ख्वाबों की परियाँ
महज़ हैं कहानी के क़िरदार सारे
क़िताबों के पन्नों से बाहर निकल के
चलो हम हक़ीकत की ग़ज़ल गुनगुनाएँ
यही धर्म कहता है मज़हब सिखाता
सबक देती क़ुरान कहती है गीता .... कुरआन से गेयता निखर रही है
हो पैदा ये अहसास हर इक दिल में
जो गिरता हो उसको गले से लगाएँ
आदरणीय बागी सर की टिप्पणी की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा. निवेदन है कि साथियों की रचनाओं को अपने कीमती मंतव्य से सिंचित करना चाहेंगे
आदरणीय अजय शर्मा जी एक भावयुक्त रचना प्रस्तुत हुई है, इसके लिए बधाई, जैसा कि आदरणीय डॉ विजय शंकर जी का भी इशारा है, टंकण त्रुटियों पर ध्यान आकृष्ट है, साथ ही निवेदन है कि साथियों की रचनाओं को अपने कीमती मंतव्य से सिंचित करना चाहेंगे.
हो मंदिर कोई एक ऐसा भी आला
हो इंसानियत का जहाँ पे उजाला
दुआ मिलके माँगें सभी सब की खातिर
इबादत जहाँ की मोहब्बत सिखाएं
आदरणीय अजय शर्मा जी ,सुन्दर रचना हुई है |सादर अभिनन्दन |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online