For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठूँठ  

था हराभरा मेरा संसार

खुशियाँ लगती थी मेरे द्वार

हरी हरी मेरी शाखायें

फूल पत्ते भरकर इठलाये||

 

मेरा जीवन उनसे था और

उन सब से ही में जीता था

छांव पथिक सुस्ता लेता था

थकन अपनी बिसरा देता था||

 

समय ने ऐसा खेल दिखाया

दूर हो गयी मेरी ही छाया

छोड़ गये सब मुझको मेरे

एक एक कर देर सबेरे||

 

कद मेरा यूँ हुआ बढ़ा

रह गया आज अकेला खड़ा

रूप रंग सब माटी मिल गया

यौवन आंधी ले गयी उड़ा||

 

रह गया बनकर बस एक ठूँठ

नित जहर के पीता हूँ घूंट

काम किसी के अब ना आया

साथ किसी का मैंने ना पाया||

 

खुद की भी अब रक्षा करना

मेरे बस की बात नही

रीता हो गया जीवन मेरा

कुछ भी तो अब साथ नही|| 

सरिता पन्थी  "मौलिक व अप्रकाशित "

Views: 396

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2014 at 11:29am

सरिता जी

कालचक्र तो अपना काम करता हे है पर ठूंठ की अपनी उपयोगिता होती है i जब तक पिता का साया रहता है हम कितना अपने आप को सुरक्षित पाते हैं भले ही वे कितने बूढ़े हो गए हों i काया से साया का महत्त्व अधिक है i सादर i

Comment by pooja yadav on November 13, 2014 at 9:04am
Sundar kavita. .
Comment by somesh kumar on November 12, 2014 at 9:04pm

जीवन कभी भी व्यर्थ नहीं होता हमेशा एक प्रयोजन होता है ,ठूंठ पेड़ कई जीवों का आश्रयदाता बनता है और बुजुर्गों के सान्निध्य में परिवार आगे पल्लवित होता है ,सुंदर रचना हेतु आपको बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 12, 2014 at 11:57am

सुंदर भाव प्रस्तुति के लिए बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 12, 2014 at 11:37am

अच्छी अभिव्यक्ति है मा० सरिता पंथी जी ।

Comment by Neeraj Neer on November 12, 2014 at 11:35am

सुंदर भाव निदर्शन। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2014 at 10:51am

वृक्ष का बिम्ब लेकर वृद्धावस्था के एकाकीपन का अद्दभुत चित्र खींचा है रचना में बहुत बहुत बधाई आपको सरिता जी 

Comment by Shyam Narain Verma on November 12, 2014 at 10:23am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई

Comment by khursheed khairadi on November 12, 2014 at 9:37am

आदरणीय सरिता पंथी जी ,

रह गया बनकर बस एक ठूँठ

नित जहर के पीता हूँ घूंट

काम किसी के अब ना आया

साथ किसी का मैंने ना पाया||

अच्छा बिम्ब है ,सुन्दर रचना हुई है सादर अभिनन्दन 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 9:19am

इस अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सरिता पन्थी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service