For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुण्‍य (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

शहर के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाॅक्टर के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा ‘मुफ्त मैडीकल कैंप’ आयोजित किया गया। जहाँ मुफ्त चैकअप करवाने वालों का हजूम उमड़ आया था। डाॅक्टर साहिब व उनकी टीम को निस्वार्थ भाव से सैकड़ों मरीजों का चैकअप करते देख सभी उनकी मुक्त कंठ से सराहना कर रहे थे।

उसी शाम शहर के सबसे बड़े केमिस्ट स्टोर का मालिक उस डाॅक्टर साहिब के आवास पर हाथ में बड़ा सा लिफाफा पकड़े मुस्कुराता हुआ डाॅक्टर साहिब के केबिन और बढ़ रहा था। 
 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 1, 2014 at 9:18pm

काम से काम शब्दों में गहन और चिंतनीय सत्य उजागर करती लघुकथा!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 3:59pm

आदरणीय रवि भाई , आज कल बिना सेटिंग के कहाँ कुछ संभव है , पर आपकी पारखी नज़र बच पाना भी असंभव है | बहुर सही सटीक बात लघुकथा के माध्यम से बाहर आई है , आपको दिली बधाइयाँ |

Comment by विनय कुमार on August 29, 2014 at 1:21pm

बहुत बढ़िया लघुकथा रवि प्रभाकर जी | बस आखिरी पंक्ति में " डॉक्टर साहिब के केबिन की ओर बढ़ रहा था"  होना चाहिए शायद |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2014 at 1:33pm

दृश्य सा घूम गया आँखों के सामने !  यह विशिष्टता है इस लघुकथा की.

निःशुल्क कार्य का अर्थ अब निस्स्वार्थ कार्य रहा कहाँ, भाई रविजी ? ’फेस-वैल्यू’ चाहे बदल कर शून्य हो जाये, ’ऐक्चुअल वैल्यू’ कई गुना बढ़ न जाय, तबतक अब ’समाजिक कार्य’ होते ही नहीं. 

आजकल के निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों की कलई खोलती अतिसघन कथा के लिए हार्दिक बधाई तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ स्वीकार करें. 

 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 28, 2014 at 12:59pm

आदरणीय रवि जी.

परोपकार और दान के व्यावसायीकरण होने से ही आज ये शब्द अपनी महत्ता खो चुके हैं. सुन्दर कथा. आज कल तो ब्लड-डोनेशन कैम्प भी इसी रोग से ग्रसित हो गये हैं.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 27, 2014 at 8:33am

मैं पिछले 14 वर्षों से दवा विक्रय एवं विपणन में एक प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहा हूँ उसका मेरा जो अनुभव कहता है वही आपकी इस लघुकथा के माध्यम से सामने आया है, चिकित्सा भी अब व्यवसाय हो गया है और नित दिन कमाई के नये नये तरीके सामने आ ऱहे हैं सेवाभाव तो जैसे विलुप्त हो गया है। आपको बहुत बहुत बधाई इस कामयाब लघुकथा पर।

Comment by Pawan Kumar on August 26, 2014 at 6:17pm

आजकल ऐसे पुण्य का जैसे प्रचलन सा हो गया हो
हम बेचारे इसको पुण्य ही समझते हैं ..............
सुन्दर प्रस्तुति .... सादर बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 26, 2014 at 5:19pm

ये एक ऐसा मकड़ जाल है जिसे आपने काटने का नेक प्रयास किया है बहुत बढ़िया लघु कथा ...हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 26, 2014 at 1:26pm

बहुत ही बढ़िया विषय पर आपने लघुकथा साझा की, आदरणीय रवि जी. आजकल बस यही सब कुछ हो रहा है परामर्श -शुल्क से ज्यादा कमीशन. मेडिकल स्टोर, पैथोलाजी हर जगह से कमीशन. इंसान के दर्द और दुःख से कहीं कोई लेना देना नही. यह रिपोर्ट नही चलेगी उस पेथोलोजी पर जाओ. एक और सच को सामने लाकर रखती लघुकथा पर आपको बहुत-२ बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 26, 2014 at 12:40pm
ऐसे सभी कार्यक्रम योजननाबद्ध तरीके से प्रायोजित होते हैं , लोगों को हम स्वस्थ जीवन नहीं देते हैं , बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर दवाओं पर आश्रित होने की आदत देते हैं . कारण भी है , दवा में रोटी से ज्यादा मुनाफ़ा है , जन कल्याणकारी व्यवस्था में व्यापार वही बढ़ता है जिसमें मुनाफ़ा ज्यादा हो . एक बात और दुनियाँ में खाने पीने की दुकाने बहुत होती हैं , न की दवाओं की .
बहुत अच्छी लघु कथा , आदरणीय रवि प्रभाकर जी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service