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ग़ज़ल - - ' ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी ' ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122        2

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी

 

अश्क़ों की  नदियाँ  थमीं तो  हैं

सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी

 

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी

 

आसमाँ रोया  बहुत  था  कल

आज  सूरत  है  निखारी  सी

 

हर तरफ़  घायल हुआ हूँ   मै

बात  शायद   थी  दुधारी  सी

 

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 10:21am

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सलाह , आपके विचार , आपकी भावनायें सदा से मेरे लिये अनुकरणीय रही हैं और रहेंगीं ॥ आपकी प्रतिक्रिया सदा मेरा मार्ग दर्शन करते रही है ॥ ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से शुक्रिया ॥

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2014 at 10:18am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करते आयी है , सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 2:45am

आपकी ग़ज़ल पर अब वाह-वाह नहीं कहूँगा, आदरणीय गिरिराजभाईजी. अब शेर दर शेर हाँ-ना होगी. :-)))
क्योंकि किस शेर पर क्या कहा जाये, आदरणीय.. पूरी ग़ज़ल ही मुग्धकारी है !
अब ऐसे में अंतिम शेर अपनी उपस्थिति के लिहाज से सक्षम होने के बावज़ूद भर्ती का लगने लगे तो ग़ज़ल की ऊँचाई समझ में आती है.
शुभ-शुभ

Comment by vijay nikore on July 9, 2014 at 3:27pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल बनी है। बधाई, आदरणीय गिरिेराज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:09am

आदरणीय गुमनाम भाई , हौसला अफज़ाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 9, 2014 at 10:08am

आदरणीय शिज्जु भाई , ग़ज़ल की तारीफ़ के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 9, 2014 at 7:16am

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

वाह वाह  ...बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:50pm

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी 

वाह क्या कहने दिली दाद कुबूल करें इस ग़ज़ल के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2014 at 11:26am

आदरनीय अरुण निगम भाई , सरलता से बात कहना आपको अच्छा लगा जान कर बहुत खुशी हुई , उत्साह वर्धन और सराहना के लिये आपका दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 8, 2014 at 9:53am

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत सहज और सरल शब्दों में बहुत ही गंभीर गज़ल कह गए भाई, बधाइयाँ...........

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी..................वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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