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वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से ...

ग़ज़ल -

 

२१२  २१२  २१२  २१२ 

 

वक़्त बदला, हैं बदले ख़यालात से 

रौंदता ही रहा हमको लम्हात से  . 

 

क्यों मयस्सर नहीं जिंदगी में सुकूँ 

जूझता ही रहा मैं तो हालात से   . 

 

माँगता था दुआ में तिरी रहमतें

उलझनें सौंप दी तूने इफरात से .

 

जुर्रतें वक़्त की कम हुईं हैं कहाँ 

खेलती ही रहीं मेरे जज़्बात से.

तू बरस कर कहीं भूल जाये न फिर 

भीगता ही रहा पहली बरसात से. 

 

बात शायद कभी ख़त्म होगी नहीं 

बात निकली वही बात ही बात से.

 "मौलिक व अप्रकाशित"

-ललित मोहन पन्त 

01 . 56  रात 

16. 10 . 2013    

Views: 731

Comment

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Comment by dr lalit mohan pant on October 19, 2013 at 2:30am

शुक्रिया वीनस केसरीजी Saurabh Pandeyजी  और आपकी नसीहतों और जर्रा नवाजी का ,coontee mukerji  जी शुक्रिया आपकी दाद का 

 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:20pm

बात शायद कभी ख़त्म होगी नहीं 

बात निकली वही बात ही बात से.......वाह!

Comment by dr lalit mohan pant on October 18, 2013 at 1:21am

अब्र जब  आस्माँ पे बिफरने लगा 

भीगता ही रहा पहली बरसात से.  

तकाबुले रदीफ़  का दोष दूर करने की कोशिश की है   ….  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 11:49pm

आदरणी ललितमोहन जी,  आपकी पहली ग़ज़ल में डूब गया था. यह प्रयास भी अच्छा हुआ है लेकिन कुछ है जो पूरा भर नहीं रहा.
दूसरे,
माँगता था दुआ में तिरी रहमतें  .. इस मिसरे में ऐबे तनाफ़ुर बन रहा प्रतीत हो रहा है. कृपया संतुष्ट हो लें.
सादर

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 9:44pm

आदरणीय ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें
ग़ज़ल के चंद अशआर मुतासिर कर गए

लिखने के लिए कैसे के साथ क्यों पर भी विचार करें ... मैं समझ नहीं सका कि कुछ अशआर क्यों कहे... उनसे क्या आशय स्पष्ट हो रहा है ... और उस आशय की क्या आवश्यकता है ?

कहते रहने के लिए कहना कितना उचित है !!!! 

Comment by dr lalit mohan pant on October 17, 2013 at 8:32pm

शुक्रिया  Baidya Nath 'सारथी'  जी। 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 17, 2013 at 5:39pm

पठनीय ग़ज़ल .... बढ़िया अशआर ! बधाई जनाब :)

Comment by dr lalit mohan pant on October 17, 2013 at 11:22am

shukriya  बृजेश नीरज  ji 

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:52am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by dr lalit mohan pant on October 17, 2013 at 2:29am

 arun kumar nigamji Sushil.Joshi ji  गिरिराज भंडारी जी अरुन शर्मा 'अनन्त'  जी Nilesh Shevgaonkar जी आप सभी का शुक्रिया  … आपने मेरी कोशिश को तवज्जो दी और नवाजा  . तदाबुले रदीफ़ का दोष मैंने जानने की कोशिश की पर मुझे नहीं मिला। क्या आप मुझे समझने में मदद कर सकेंगे ?एहसान होगा। 

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