For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दहकता सूरज भी /अंतिम छोर नहीं है.... ब्रह्माण्ड का ....

एक आसमान को छूता
पहाड़ सा / दरक जाता है
मेरे भीतर कहीं ..
घाटियों में भारी भरकम चट्टानें
पलक झपकते
मेरे संपूर्ण अस्तित्व को
कुचल कर
गोफन से छूटे / पत्थर की तरह
गूँज जाती हैं.
संज्ञाहीन / संवेदनाहीन
मेरे कंठ को चीर कर
निकलती मेरी चीखें
मेरे खुद के कान / सुन नहीं पाते
मैं देखता हूँ
मेरे भीतर खौलता हुआ लावा
मेरे खून को / जमा देता है
जब तुम न्याय के सिंहासन पर बैठ कर
सच की गर्दन मरोड़कर
देखते देखते निगल जाते हो
और फिर / दुर्गन्ध युक्त झूठ का / वमन करते हो
न्याय को शिखंडी बना कर
वध करते हो विश्वास का
जब मेरे शब्द
तुम्हारे लिए अर्थहीन हो जाते हैं
तब उनके हिंसक होने को
कब तक रोकेगा मेरा विवेक ?
मत थमाओ
बारूद / निरपराध के हाथों
जिस धरती पर
शीश नवाने से
मंदिर के पत्थर भी
न्याय करते हों
वहाँ तुम्हारी / जड़ व विकृत
संवेदनाओं के लिए
कितनी और बलि देनी होंगी ?
जानते हो ?
दहकता सूरज भी /
अंतिम छोर नहीं है ... ब्रह्माण्ड का ....

.

....ललित मोहन पन्त

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 674

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 2:50pm

डॉ. ललित मोहन पंतजी, आपकी पंक्तियों पर विलम्ब से आ पा रहा हूँ इसकी ग्लानि तो है. लेकिन ग्लानि के भाव और सान्द्र हो गए जब आपकी प्रस्तुत रचना से गुजर चुका हूँ.
यह रचना आपके रचनाकर्म की गहनता को तो साझा करती ही है, आपकी वैचारिक कहन और उसके संप्रेषण के प्रति आश्वस्त भी करती है.
जिस बात ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वह है इस रचना की गहन संप्रेषणीयता, रचना का सार्थक विन्यास और प्रयुक्त शब्दों का सटीक प्रयोग.

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से आपके कवि ने आमजनों की पारिस्थिक विवशता और फिर झुंझलाहट को कितने तीव्रता से साझा किया है ! --  
जिस धरती पर
शीश नवाने से
मंदिर के पत्थर भी
न्याय करते हों
वहाँ तुम्हारी / जड़ व विकृत
संवेदनाओं के लिए
कितनी और बलि देनी होंगी ?

यदि यह सुझाव है तो सुझाव सही अन्यथा मैं तो इसे उद्विग्न चेतावनी ही कहूँगा -
जानते हो ?
दहकता सूरज भी /
अंतिम छोर नहीं है ... ब्रह्माण्ड का ...

प्रस्तुत कविता ने आपकी रचनधर्मिता के सबल पक्ष को समक्ष किया है. मन मुग्ध तो है ही, संतुष्ट भी है.
मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय.
शुभ-शुभ

Comment by dr lalit mohan pant on October 15, 2013 at 9:19am

उत्साहवर्धन के लिए आभार Sushil.Joshi जी। … 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 3:35am

बहुत बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय डॉ. ललित मोहन जी.....बधाई स्वीकारें....

Comment by dr lalit mohan pant on October 14, 2013 at 2:43pm

आदरणीया  Dr.Prachi Singh  जी  एवं आदरणीय बृजेश नीरज  जी आप की विद्वत प्रतिक्रियाओं  का आभार  … मेरी बात आप तक पहुँची यह अनुभूति कविता को  सार्थक कर गई  …. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 14, 2013 at 10:45am

आदरणीय डॉ० ललित मोहन पन्त जी 

बहुत गूढ़ चिंतन विवेचन (self dialogue) के बाद अंतर की जिस पीढ़ा को सुगढ़ बिम्ब प्रयुक्त करते हुए व्यक्त किया है... मैं वाकई दंग हूँ इस प्रस्तुति पर..

और अंत में अहंकार को चेतावनी देती प्रखर आवाज ...

दहकता सूरज भी /
अंतिम छोर नहीं है ... ब्रह्माण्ड का ....

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति 

हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:27pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by dr lalit mohan pant on October 11, 2013 at 9:30pm

आदरणीय Kewal Prasad  जी  ,धन्यवाद आपके सराहना के लिये  …. 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 11, 2013 at 8:37pm

......क्या कहने? वाह....गजब, बहुत खूबं।    इस रचना के लिए हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। आदरणीय ललित मोहन भार्इजी,  सादर,

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 5:17pm

आदरणीय पन्त जी ..भावमय इस रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by vandana on October 11, 2013 at 7:21am

न्याय को शिखंडी बना कर
वध करते हो विश्वास का

गज़ब की रचना आदरणीय पन्त साहब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service