ज़िंदगी की राह के किनारे लगी
ऊंचे दरख्तों की झुकी डालें नंगी हैं.
एक बेचैन सन्नाटे को पछाडकर,
मैं, एक खामोश कोलाहल में,
परेशान भटक रहा हूँ.
शायद अकारण ही!
शायद आगे उस मोड़ पर
कोई तूफ़ान मिल जाए;
शायद उन कँटीली झाड़ियों के पीछे
कोई झुरमुट मिल जाए -
पर आह,
मेरे सपनों के गुलमोहर
इन राहों में बिखरे पड़े हैं.
उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -
आँसुओं की नमी में पलकर
वे अभी मुरझाए नहीं हैं.
मेरी झोली भरी है,
आँखों का विश्रामालय भी ठसाठस भरा है,
डर है,
कहीं दिल का सूनापन भी
इन सपनो से न भर जाए.
Comment
वातावरण का निर्माण कर बिम्बों को, आदरणीय शरदिन्दु जी, आपने अच्छा सजाया है.
मानवीय व्यक्तित्व के असहजपन को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है.
सादर
आदरणीय शरदिंदु जी: बहुत.बहुत बधाई---! मन की अधीरता का सुखद चित्रण
मेरे सपनों के गुलमोहर
इन राहों में बिखरे पड़े हैं.
उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -
बहुत सुन्दर! बधाई स्वीकार करें!
सादर!
कहीं दिल का सूनापन भी
इन सपनो से न भर जाए.- अकारण ऐसे सोच से दिल के घाव गहरे हो जाते है | तब मार्मिकी अभिव्यक्ति का जन्म होता है
और कवी ह्रदय उसे कलम बढ कर पोस्ट करदेता है | सुन्दर रचना अभ्व्यक्ति के लिए बधाई श्री शरदिंदु मुखर्जी जी
आदरणीय शरदिंदु जी:
मेरे सपनों के गुलमोहर
इन राहों में बिखरे पड़े हैं.
उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -
आँसुओं की नमी में पलकर
वे अभी मुरझाए नहीं हैं.
वाह, वाह, वाह!
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है।
बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
सुंदर सुकोमल भावों से भरी अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार कजिए आदरणीय
आदरणीय शरदिंदु जी ,
मन की विचित्र कशमकश को अभिव्यक्त करती कोमल मर्मस्पर्शी रचना ...
मेरे सपनों के गुलमोहर
इन राहों में बिखरे पड़े हैं.
उन्हें कुचल नहीं सकता, बटोर रहा हूँ -
आँसुओं की नमी में पलकर
वे अभी मुरझाए नहीं हैं.
मेरी झोली भरी है,
आँखों का विश्रामालय भी ठसाठस भरा है,
डर है,
कहीं दिल का सूनापन भी
इन सपनो से न भर जाए.......................बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
सच ही तो है, ज़िन्दगी के सूने रास्तों पर अपने ही सबसे अजीज सपनों को बटोरते कभी नहीं मुरझाने देते हम, और वही हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को अपने आवरण में समेट लेते हैं
शुभकामनाएं
शंशय मन की अधीरता का सुखद चित्रण..! बहुत.बहुत बधाई---!
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