For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"मन"

सुबह सुबह
चिड़ियों का कलरव
झरने का कलकल
ठंडी हवाओं के झोंके लयबद्ध तान
कोयल की कूक
मुर्गे की बांग
ये सब संगीत है या शोर
प्रकृति का

ये सब मन की दशा पे निर्भर है
कभी ये सब संगीत लगता है
पटरी पे दौड़ती
सरपट लोहपथगामिनी का
चीखता निनाद भी
और कभी इक सुई का गिरना भी
कर्कश स्वर सा
शोर सा

मन स्वाभविक वृत्तियों में जकड़ा हुआ है
किन्तु है स्वतंत्र
जब इसे संगीत सुनना है तो सुनना है
जब नहीं तो नहीं
कभी कभी तो संगीत भी कोलाहल बन जाता है
मन को संगीत भाता है
कोलाहल नहीं

जब कोलाहल संगीत बन जाए
अर्थात मन संगीतमय है
मन संगीतमय है अर्थात प्रसन्न है
और प्रसन्न मन में कोलाहल संभव ही नहीं
चाहो तो कौए को ग़ज़ल पढने कह दो
उसको भी वाह वाही मिल ही जाएगी
क्यूंकि मन चाह रहा है सुनना
फिर ऐसे मैं चाहो तो गालियाँ दे कर देखो
अन्यथा वही मन जब न चाहे तब
लता जी के गाने में अंतर्मन चीख उठे
बंद करो ये शोर

खैर मन तो मन है
इसकी अपनी दुनिया है
जो कभी कभी नहीं हमेशा स्वक्षंद होती है
बस भविष्य और भूत में कहीं कहीं
स्वयं पराभूत हो जाता है मन
और छटपटाने लगता है
स्वतंत्रता के लिए जिसमे वो खुद फंसा है
ये मन भी न
बुद्धिमान बेबकूफ है

संदीप पटेल "दीप"

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 10:54pm

वाह ! बहुत खूब.. . 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2012 at 4:16pm

सादर,

        सही कहा है आपने मन कब शोर में भी संगीत ढूंढ ले कोइ नहीं जानता. बहुत सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 11:33am

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
आपको रचना पसनद आई और आपकी सराहना मिली
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 11:32am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय योगी जी
स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार

Comment by Yogi Saraswat on September 25, 2012 at 10:56am

ये सब मन की दशा पे निर्भर है
कभी ये सब संगीत लगता है
पटरी पे दौड़ती

sundar shabd
सरपट लोहपथगामिनी का
चीखता निनाद भी
और कभी इक सुई का गिरना भी
कर्कश स्वर सा
शोर सा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2012 at 9:10am

प्रिय विशाल बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है मनोदशा के विभिन्न आयामों का सच कहा है मन की स्थिति के ऊपर ही सब निर्भर करता है मन खुश है तो पतझड़ में वसंत और खुश नहीं तो वसंत में पतझड़ दिखाई देता है |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 9:09am

आदरणीय भावेश जी , आदरणीया डॉ. प्राची जी और सरिता  जी आप सभी का ह्रदय से कोटि कोटि धन्यवाद और सादर आभार
ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर
समय दे कैसे दूं
नित सृजन करने में लगे रहना ही मेरा कर्तव्य है
हाँ इक दिन लिखते लिखते सोचते सोचते हो सकता है कुछ परिपक्वता आ जाये आप सभी मित्रों और अग्रजों के आशीर्वाद से
बाकी कविता मैं एडिटिंग मुझे नहीं भाती
कविता तो इक हृदय सागर  से निकलती है और दूसरे ह्रदय सागर में ही विलीन हो जाती है

Comment by Gul Sarika Thakur on September 24, 2012 at 10:56pm

sabhee bhav prashnasneeya hai...parantu mukt chhnd ki kavita aur gadya me ek bareek si maheen se vibhajan rekha hoti hai...yah rekha mit ti huee si prateet hoti hai... sadar.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2012 at 7:05pm

मन अपनी अवस्था को ही जीता है....पूरा एक्स-रे है इस रचना में मन को कब सुन्दर स्वर भी शोर लगने लगें, और कब कोलाहल भी सुरीला.... इस गहन अभिव्यक्ति हेतु बधाई. पर संदीप जी, अक्सर आपके कथ्य भाव्सम्प्रेषण में काव्यात्मकता को पीछे छोड़ जाते हैं. यदि इस रचना को थोड़ा और वक़्त मिलता तो आप इसे बहुत प्रभावी काव्यरूप दे पाते. सादर.

Comment by Bhawesh Rajpal on September 24, 2012 at 4:26pm

 

बहुत अच्छा वर्णन ! बधाई ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service