For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २१(Now closed with 557 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

मौक़ा है कि इस माह के मिसरा-ए-तरह की घोषणा कर दी जाय | बड़े हर्ष के साथ कहना चाहूँगा कि इस माह का तरही मिसरा हिंद्स्तान के जाने माने युवा शायर जनाब जिया ज़मीर साहब की एक ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है | विरासत में मिली शायरी आपने 2001 से शुरू की, वर्ष 2010 में ग़ज़लों का पहला संकलन "ख़्वाब-ख़्वाब लम्हे" के नाम से उर्दू में प्रकाशित हुआ। आपकी रचनाएँ देश-विदेश की विभिन्न उर्दू-हिन्दी की पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। टेलीविज़न से भी आपकी रचनाएँ प्रसारित होती रहती हैं।

"अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों के चलन में आए "

बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज असलम मुदायफ

अ(१)/ना(२)/कि(१)/चा(२)/दर(२) उ(१)/ता(२)/र(१)/फें(२)/के(२) मु(१)/हब(२)/ब(१)/तों(२) के(२)/च(१)/लन(२)/में(१)/आ(२)/ये(२)

मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन मुफाइलातुन

१२१२२                  १२१२२                 १२१२२                १२१२२

रदीफ: में आये

काफिया: अन ( कफ़न, बाकपन, दहन, चमन, अंजुमन आदि )


इसी बह्र पर एक विडियो नीचे दे रहा हूँ जिससे बह्र को समझने में आसानी हो सकेगी | वैसे अमीर खुसरो की मशहूर उर्दू/अवधी गज़ल "जिहाले मिस्कीं " भी इसी बह्र पर है|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३१ मार्च दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २९ मार्च दिन गुरूवार/वीरवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह

(सदस्य प्रबंधन)

ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 12604

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत खूब. उत्तम भाव लिये अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई.

होसला बड़ाने के लिए शुक्रिया संजीव जी

आदरणीय तपन जी... आपने उत्तम कहन के साथ ग़ज़ल कही है.. उस्तादों की सीखों को अपना और आजमा लीजिये अगली  ग़ज़ल में और भी मज़ा आ जायेगा.. बहरहाल बधाई स्वीकारें... जय ओ बी ओ

dhanywad dushayant ji

बहुत सुन्दर रचना तपन दुबे जी...बहुत बहुत बधाई.

तपन जी 

आपको पिछले कई मुशायरों से पढ़ता हुआ आ रहा हूँ| आपमें एक बहुत ही अच्छा शायर मौजूद है ...आप सही रास्ते पर भी है ..बस भटकियेगा नहीं.......मोबाइल और एस एम् एस ने आज हर तीसरे आदमी को शायर बना दिया है जिन्हें शायरी की ABCD भी नहीं पता वो बहस में शामिल हैं...

शेर कहिये ..तकतीई कीजिये ..फिर बदलिए ..फिर तकतीई कीजिये ......यह क्रम टूटने ना पाए जब तक की आप संतुष्ट ना हो जाएँ.... जिस रचना से आप संतुष्ट ना हो उसे पोस्ट करने से बेहतर है कि उसे ना ही पोस्ट करे...अगर आपका कोई उस्ताद हो तो उससे इस्लाह ले लीजिए...नहीं लेना चाहते मत लीजिए ..कोई दोस्त हो जो आपकी कमिया बता सके उसे दिखा लीजिए| फिर देखिये ..गुरुदेव योगराज प्रभाकर जी ने लिखा ही  है दिल्ली दूर नहीं है|

भाई तपन जी ! बहुत सुन्दर प्रयास किया है आपने ! बहुत-बहुत बधाई मित्र ! कृपया गुरुजनों की बात पर ध्यान दें !

.

अकड़ में नरमी, अदा में गरमी, कभी हमारे सजन में आये,
वफ़ा के सच्चे, जबाँ के जलवे, कभी किसी आचरन में आये.

.

समा बंधा है, सुकूँ बहुत है, मगर वो वादा जहन में आये,
चलो लगायें फिर एक नश्तर, कि दर्द पिछला सहन में आये.

.

उतार कोकुन, निकाल चश्मा, वो मेरे वातावरण में आये,
मली फिजा है, हमारे 'रु' में, हवा से सिहरन बदन में आये.

.

हया कि सारी, हदें भुला कर, वो अब मेरे अनुसरण में आये,

अना की चादर उतार फेके, मोहोब्बतों के चलन में आये,

.

ये नब्ज डूबी ही जा रही थी, कफ़न से ढकने, वो आये मुझको,
मेरे तबस्सुम का राज ये है, 'किसी तरह संवरण में आये'.

.

यहाँ मचलती जो भूख हर दिन, नहीं है चर्चा किसी अधर पर,
चहकते प्यादे, सवरते रस्ते, वो आज-कल आचमन में आये.

.

नहीं मयस्सर है साफ़ पोखर, हमें पिलाते हैं नारे-वादे,
मिला न पानी जो लान को तो, वो मुद्दतो में शिकन में आये,

.

फिजां में घोले, हवा सियासी, वो लूटने क्यों अमन को आया?
जिया में कुरसी हिलोर खाती, कि 'राम' तो बस कथन में आये.

.

नहीं कदर है, वो बात बेजा, लबों पे आये, जो वक्त पहले,
विचार जब निज चरित में आये, कथन तभी अनुकरण में आये.

भाई राकेशजी, बह्र, काफ़िया, रदीफ़ सब निभाते गये हैं आप, बहुत अच्छे !  हुस्न-ए-मतला तो मतले पर भारी है.

आप ओबीओ पर हुई हालिया कई बातचीत में तकाब्बुल-ए-रदीफ़ के दोष पर चर्चा सुन चुके हैं. फिर उसे इसी तरही में दुहराना अपेक्षित नहीं था.  मेहनत बहुत करनी होती है ऐसा कहने के लिये, पर मान्यता नहीं मिलती ऐसी मशक्कत को.

मिसरा  हया कि सारी, हदें भुला कर, तड़प के आलिंगन में आये  को देखें, मुझे लय-भंग लग रहा है.  इसे दुहरायेंगे तो आपको भी लगेगा.

फ़िज़ा में घुलती, हवा सियासी   वाले शे’र में ’कुर्सी’ को लेकर ऊँट और बिल्ली की लड़ाई हो गयी है. कृपया देख लेंगे.

आखिरी शे’र का उला कुछ और स्पष्ट होना चाहता है.

लेकिन जो मैंने कुल मिला कर बात समझी है, वो यही कि आप अव्वल दर्ज़े के शिक्षार्थी हैं. मेहनत भी खूब करते हैं. आने वाला समय आपका है.

हार्दिक शुभकामनाएँ.

आदरणीय श्री सौरभ जी, सादर वंदन, . सुप्रभात. सर्व प्रथम तो आपको धन्यवाद की कुछ एक शेर पसंद आये, एवं आशीर्वाद हेतु.
श्रद्धेय श्री योगराज जी की एक पंक्ति उदृत करना चाहूँगा:

//यहाँ रदीफ़ है "आए" लेकिन अगर कोई शायर मतले के इलावा शेअर के पहले मिसरे को "छाए", जाए", "जगमगाए"" या "गुनगुनाए" इत्यादि पर समाप्त करे तो वहां "ऐब -ए-तकाबुल-ए-रदीफ़" माना जाएगा. //

अब चूँकि इस लिस्ट में उनहोने "आये" नहीं रखा था जो कि रदीफ़ भी है, तो कनफ़्यूजन के कारण और "ओवर स्मार्टनेस" दिखाते हुए मैंने ये समझा की ’आये’ लेने पर यह दोष नहीं आएगा.
अच चूँकि अब ये पंक्तियाँ फिट हो चुकी है, और कुछ भी बदलने से पूरे अर्थ का अनर्थ हो जायेगा, तो इसको ग़ज़ल की श्रेणी से हटा कर कविता के डालना ही उचित होगा.    

मेरा Admin महोदय से सविनय निवेदन है की, हया कि सारी, हदें भुला कर, तड़प के आलिंगन में आये " की जगह हया की सारी, हदें भुला कर, तड़प के वो आलिंगन में आये" कर दें, इस टंकण त्रुटी को माफ़ करे. 

"’कुर्सी’ को लेकर ऊँट और बिल्ली की लड़ाई " की बात नहीं समझ में आई, कृपया मार्गदर्शन करें.
और अंतिम पंक्तियों में मै ये कहना चाह रहा था कि सलाहें सर्प्रथम अपने चरित में डालना चाहिए, फिर उसे कविता या पद्य में लिख कर लोगो को सलाह देनी चाहिए. शायद असफल रहा हूँ. अगली बार और ध्यान दूंगा कथन पे.
आपनी अनमोल सलाहों के लिए हार्दिक आभार.  

आपका प्रत्युत्तर अभी देख पा रहा हूँ भाई राकेश जी. आपने जिस साफ़गोई से बातें की हैं कि मन मुग्ध हो गया है.

हार्दिक शुभेच्छाएँ.. .

आदरणीय श्री सौरभ जी, सादर नमस्कार. अब गुरु और डाक्टर से क्या छिपा पाएंगे, मुह खोलते ही पकडे जायंगे, उससे अच्छा
जो दिल में है वही बोल दो :)

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service