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ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं

.
सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं 
जहाँ मक़ाम है मेरा वहाँ नहीं हूँ मैं.
.
ये और बात कि कल जैसी मुझ में बात नहीं    
अगरचे आज भी सौदा गराँ नहीं हूँ मैं.
.
ख़ला की गूँज में मैं डूबता उभरता हूँ   
ख़मोशियों से बना हूँ ज़बां नहीं हूँ मैं.
.
मु’आशरे के सिखाए हुए हैं सब आदाब  
किसी का अक्स हूँ ख़ुद का बयाँ नहीं हूँ मैं.
.
सवाली पूछ रहा था कहाँ कहाँ है तू
जवाब आया उधर से कहाँ नहीं हूँ मैं?
.
परे हूँ जिस्म से अपने मैं ‘नूर’ हूँ शायद
बदन के जलने से उठता धुआँ नहीं हूँ मैं.
.
निलेश नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar 10 minutes ago

धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई 

Comment by Aazi Tamaam 28 minutes ago

बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर

मतला बेहद पसंद आया

बधाई स्वीकारें

Comment by Nilesh Shevgaonkar 1 hour ago

धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar 1 hour ago

धन्यवाद आ. बृजेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar 1 hour ago

आभार आ. गिरिराज जी 

Comment by surender insan 5 hours ago

आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी उठा था उठते ही इतनी लाज़वाब ग़ज़ल पढ़ने को मिली दिन बन गया। बहुत बहुत बधाई हो इस ग़ज़ल के लिए।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' 23 hours ago

वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई....


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2025 at 9:11pm

आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार करें  

Comment by Chetan Prakash on June 24, 2025 at 10:15pm

आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 24, 2025 at 12:48pm

बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..
आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा रहती है.
धन्यवाद 

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"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
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