For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-149

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 149 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | 

इस बार का मिसरा जनाब 'मुनीर नियाज़ी' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'इस रोज़-ओ-शब में ऐसा भी इक दिन कमाल हो'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --हो

क़ाफ़िया:-(आल की तुक) जमाल,हाल, चाल,मलाल,ज़वाल,विसाल,मिसाल आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 नवम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 नवम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 4681

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़ज़ल पेश की है आपने। गिरह भी ख़ूब लगी है।हार्दिक बधाई आपको। आदरणीय समर कबीर जी की बात से मैं भी सहमत हूं। मतले के संदर्भ में आप ऊला को कुछ यूं करें तो मेरे विचार से बात कुछ स्पष्ट रूप से प्रकट होगी - "हर वक्त उसको सिर्फ़ मेरा ही खयाल हो"

सादर।

जनाब जयनित कुमार मेहता जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

जनाब मैं भी समर कबीर साहिब से सहमत हूँ और, उनके सुझाव के अनुसार परिमार्जन भी कर दिया गया है। वैसे आप की तज्वीज़ भी अच्छी है, शुक्रिया। 


हर बात पहले जैसी ही साबित न जाल हो
वादों पे उन के  और  न  जनता निहाल हो।१।
*
सरकार  अपने  देश  में  ऐसी  बहाल हो
दुर्दिन किसी के नाम न जीना मुहाल हो।२।
*
हो जा सचेत आज  ही  शुरुआत है अभी
बर्बाद पूरा हो  के  न  तुझ  को मलाल हो।३।
*
जनता बँटे तो हाथ में आती हैं कुर्सियाँ
इसको ही नेता चाहते नित ही बवाल हो।४।
*
होता है राजनीति के  रुख  से विकास नित
कहने को कोई युग हो या कोई भी काल हो।५।
*
राजा हो ऐसा  माँ  का  सा देखे समान और
मुश्किल दिनों में तात सा बनता जो ढाल हो।६।
*
रहना सजग व  प्रेम  से  सब  ही  यूँ देश में
लोगो सफल न कैसे भी दुश्मन की चाल हो।७।
*
वो तो खजाना  कर्ज  ले  पीता न धी कभी
पहचान जिसकी आज भी लोगो कुदाल हो।८।
*
बाँटो  उजाला  दौड़  के  जुगनू  सदा कहे
सूरज थकन से चूर यूँ जबजब निढाल हो।९।
*
भरते हैं पेट  लोक  में  श्रम  से किसान के
हिस्से में उसके और न अब तो अकाल हो।१०।
*
कितने घरों में फाका है हर शाम आज भी
कीमत का अब न देश में बढ़चढ़ उछाल हो।११।
*
गिरह

सब  के  दिलों  में  प्रेम  हो  नफरत  न  हो  कहीं
इस रोज़-ओ-शब में ऐसा भी इक दिन कमाल हो'
*
मौलिक/अप्रकाशित

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले का ऊला थोड़ी और कसावट चाहता गए, देखें ।

'सरकार  अपने  देश  में  ऐसी  बहाल हो
दुर्दिन किसी के नाम न जीना मुहाल हो'

दोनों मिसरों में 'हाल' की बंदिश देखें ।

'हो जा सचेत आज  ही  शुरुआत है अभी'

ये मिसरा बह्र में नहीं 'शुरुआत' का वज़्न 1221 होता है,देखें ।

'जनता बँटे तो हाथ में आती हैं कुर्सियाँ
इसको ही नेता चाहते नित ही बवाल हो'

इस शे'र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,सानी बदलने का प्रयास करें ।

'राजा हो ऐसा  माँ  का  सा देखे समान और
मुश्किल दिनों में तात सा बनता जो ढाल हो'

ये शे'र भाव की दृष्टि से थोड़ी और कसावट चाहता है ,देखें ।

गिरह अच्छी है ।

बाक़ी शुभ-शुभ ।

आदरणीय समर कबीर सर् बेहतरीन इस्लाह दी।

आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। आद0 समर साहिब की बातों को संज्ञान में लीजियेगा। आभार आपका

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार।
इंगित मिसरों में बदलाव का प्रयास किया है देखिएगा।
//
दाना भी जिनके हाथ से गिरता है जाल हो
वादों पे उन के  और  न  जनता निहाल हो।१।

//दोनों मिसरों में 'हाल' की बंदिश देखें ।//
सरकार अपने देश में ऐसी रहे (बने) सदा
दुर्दिन किसी के नाम न जीना मुहाल हो'

//ये मिसरा बह्र में नहीं 'शुरुआत' का वज़्न 1221 होता है,देखें ।//
'हो जा सचेत आज  ही आरम्भ(आगाज) है अभी'
//इस शे'र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,सानी बदलने का प्रयास करें ।//
'जनता बँटे तो हाथ में आती हैं कुर्सियाँ
इससे उन्हें क्या देश में जो भी बवाल हो
//
ये शे'र भाव की दृष्टि से थोड़ी और कसावट चाहता है ,देखें ।
'राजा हो ऐसा  माँ  का  सा देखे समान और
मुश्किल दिनों में तात सा बनता जो ढाल हो'//
इसमें यदि आपकी दृष्टि में बेहतर सुझाव हो तो बताईए। मैं भी प्रयास कर रहा हूँ।
सादर

सभी सुधार अच्छे हुए हैं ।

'दाना भी जिनके हाथ से गिरता है जाल हो
वादों पे उन के  और  न  जनता निहाल हो'

इसका ऊला वाक्य विन्यास की दृष्टि से कमज़ोर है,उचित लगे तो यूँ कह सकते हैं:-

'मुमकिन है यार बातों में पोशीदा जाल हो'

'राजा हो ऐसा  माँ  का  सा देखे समान और'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-

"राजा हो ऐसा  माँ  का  सा सबसे करे सुलूक"

आ. भाई समर जी, पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" भाई, नमस्कार।सर् के द्वारा दी गई इस्लाह के अनुसार सुधार करने के बाद ग़ज़ल बहुत अच्छी हो जाएगी। बधाई।

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार

अच्छी हुई ग़ज़ल, बधाई आपको

सर जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है इस के बाद बहुत ख़ूब हो जाएगी ग़ज़ल

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service