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मातृ दिवस पर गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी
मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।
*
चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के
समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।
*
माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर
नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।
*
गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।
*
पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक
लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।
*
चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज पर
सँस्कार माँ के बनते हैं पहचान आदमी।६।
*
आशीष माँ का तोड़ दे अभिषाप देव का
पाता न उस को पीड़ा दे उत्थान आदमी।७।
*
दुख से जो माता रोती है देते हैं ईश दण्ड
लेता नहीं है फिर भी क्यों संज्ञान आदमी।८।
*
मानव के नाम धरती पे केवल कलंक वो
करता नहीं है माँ का जो गुणगान आदमी।९।
*
रंगत भरेगा कौन वो माँ की ठसक से जो
जिस के बिना यूँ सूना है दालान आदमी।१०।
*
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 26, 2022 at 6:34pm

आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । 

Comment by नाथ सोनांचली on May 25, 2022 at 12:48pm

आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर अभिवादन

बढ़िया माँ को समर्पित रचना है। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2022 at 10:06pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2022 at 10:05pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 15, 2022 at 9:31pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति है सर हार्दिक बधाई सर
Comment by Samar kabeer on May 11, 2022 at 3:43pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

'गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी'--इस शे`र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, क्योंकि "क़ुुुरआन" शब्द का वज़्न २२१ होता है,दूसरी बात दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं है, देखिएगा I 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2022 at 6:00am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 6, 2022 at 9:41pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं।

'गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ' इस मिसरे में सहीह शब्द 'क़ुरआन' है, अतः 'क़ुरआन गीता बाँचना तब ही सफल समझ' कर सकते हैं।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 9:20pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 8:26pm
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत सुंदर और सार्थक सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर

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