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जब है मंदिर और मस्जिद में वही - लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२
सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए
दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।
*
देशहित में क्या भला है आप भी
कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।
*
जब है मंदिर और मस्जिद में वही
आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।
*
सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया
क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।
*
धर्म  माटी  को  समझकर  देश  की
आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।
*
चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का
आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।
*
फिर उठाना दूसरे की आप सौं
पहले पूरा इक वचन तो कीजिए।७।
*
नाग  देवा  कह  के  पूजेंगे  सभी
आप थोड़ा विष-वमन तो कीजिए।८।
*
हम कहेंगे आपको भी शिव यहाँ
भेद-भावो का शमन तो कीजिए।९।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 2, 2022 at 7:12pm

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।

Comment by Dayaram Methani on June 2, 2022 at 2:46pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर सृजन। बहुत बहुत बधाई।

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