For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब तो इंसाफ भी करें साहिब.......ग़ज़ल सालिक गणवीर

2122-1212-22/112
अब तो इंसाफ भी करें साहिब
हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)

ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश
लोग सब धूप में रहें साहिब (2)

आप सब क्यों उड़े हवाओं में
हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)

काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं
पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)

न ज़मीं है न आसमाँ अपना
ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)

इतना अफ़सोस है अगर फिर तो
शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)

आप सुनते नहीं किसी की तब
आपसे हम भी क्या कहें साहिब(7)

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 2:40pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। शे'र नं. 4 पर गुणीजनों से सहमत हूँ, मिसरा -

'इतना अफ़सोस है अगर 'फिर तो' में 'तुम को' कह कर देखें। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2021 at 12:32pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई।

Comment by सालिक गणवीर on November 18, 2021 at 12:22pm

आदरणीया  Rachna दी 
सादर नमस्कार
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार. इस्लाह के लिए बहुत शुक्रिया

Comment by सालिक गणवीर on November 18, 2021 at 12:21pm

आदरणीय  बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
सादर नमस्कार
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार. 

Comment by सालिक गणवीर on November 18, 2021 at 12:21pm

आदरणीय Sushil Sarna   जी
सादर नमस्कार
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार. 

Comment by Rachna Bhatia on November 17, 2021 at 10:07am

आदरणीय सालिक गणवीर जी बेहतरीन रदीफ़ के साथ आपने अच्छी ग़ज़ल कही। हार्दिक बधाई।

4 समझने में मुश्किल आ रही है।

5 में "अगर फिर तो" को आपको है तो में बदल सकते हैं।

सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2021 at 6:27pm

बढ़िया कहा आदरणीय सालिक जी...बधाई

Comment by Sushil Sarna on November 14, 2021 at 12:45pm
वाह बहुत सुंदर गजल बनी है सर । हार्दिक बधाई
Comment by सालिक गणवीर on November 14, 2021 at 12:35pm

आदरणीय भाई  Nilesh Shevgaonkar  जी
सादर नमस्कार
बड़ी मेहरबानी जो आप मेरी ग़ज़ल तक आये और हौसला अफ़ज़ाई की,आपका तह-ए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपके सुझाव पर अमल ज़रूर होगा जनाब ,.सलामत रहें.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 14, 2021 at 11:21am

आ. सालिक जी 
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
दे भी दें  ज़बान सिखाने वाला जुमला है कि कहाँ ए आएगा और कहाँ अनुस्वार के साथ ए आएगा.
 
शिल्पगत रूप से ग़ज़ल परिपक्व है.. भाव के लिहाज से शेर थोड़े कमज़ोर हैं.. जैसे 
पीठ पर भी कभी लिखें साहिब.. इस मिसरे का कोई औचित्य नहीं प्रतीत होता .. आप से भविष्य में सुदृढ़ भावों की अपेक्षा है..
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service