For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-76 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है,
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-76
"विषय: 'क़लम के सिपाही'  
अवधि : 30-07-2021  से 31-07-2021 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2137

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।सुन्दर  रचना।

कलम का कहर
मोहल्ले के महिला प्रशिक्षण केन्द्र पर आने वाली महिलाओं को स्वावलंबी बनने के साथ उन्हें  अपनी जिन्दगी में अधिकारों की ताजी हवा में जीने की उम्मीद की रोशनी भी दिखाई जाती हैं। महिलाओं का बेड़ियां तोड़कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व को रेखांकित करना मर्दों के शान के खिलाफ चोट पहुंचा रहा था। रोजमर्रा की तरह सभी अपने कार्यों से व्यस्त थी कि तभी धड़ल्ले से अंदर आते गाली-गलोच करते हेतराम ने अपनी पत्नी सुखवन्ती का हाथ पकड़ घसीटते हुये बाहर सड़क पटक दिया।उसके साथ आए और आठ-दस लोगों ने पथराव के साथ उसके इस अभद्रता का समर्थन करते हुये संचालिका अवन्ति के खिलाफ नारे लगाने लगे।
अवन्ति ने धैर्यता के साथ विनम्रता से हेतराम को समझाने की कोशिश की लेकिन वो साथ वालों के साथ उस पर उल्टा अशिष्ट शब्दों की बौछार करने के साथ सुखवन्ती को पीटने लगा।
अवन्ति का अपमान और सुखवंती पर अत्याचार होते देख आपस में महिलाओं की ऑखों के रेशे लाल हो गये।आगे बढ़कर महिला ने रोती-बिलखती सुखवन्ती को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि हेतराम ने उसे भद्दी गाली देकर मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि साथ खड़ी महिलाओं ने जमीन पर पड़े पत्थर उठाकर पलटवार दुत्कारते हुये कहा, 'हमारी लज्जा को मत ललकारों! हाडमांस की कठपुतली में हक के लिए संघर्ष के तेल में  चिन्गारी लग चुकी हैं।'
'अपने अहंकार से बुझाने की कोशिश भी मत करना...वरना सृष्टि रचयिता, वक्त पड़ने पर संहार भी कर सकती हैं।'
महिला चेतना का करारा प्रहार देख हेतराम के साथ लोगों के बढ़ते कदम जमीन पर जैसे धंस-से गये।
सिसकती सुखवंती के चारो ओर से सुरक्षा घेरा बनाकर दुत्कारते हुये हिकारत भरी दृष्टि से कठोरात्मक लहजे में कहा, 'शब्दों को गढ़ना ही नहीं ,उनकी ताकत दिखाना भी आता हैं।'

स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता


आ. बबीता बहन सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर कथा लिखने के लिए बधाई , लेकिन यह कथा आपके स्तर के अनुरूप बिलकुल नहीं है । इसे पढ़कर लग रहा है कि यह किसी नवसिखिये ने लिखी है । कथा में तमाम त्रुटियों के साथ साथ तारतम्य का अभाव है । इसमें बहुत कार्य करने की आवश्यकता है । सादर...

नमन,  आदरणीया  बबिता जी, आपकी लघुकथा का फोकस  महिला सशक्तिकरण है, न कि लेखक  / लेखिका और उनकी रचनात्मक सोच! जबकि विषय  बिल्कुल  स्पष्ट है ! यह सही है शिक्षा के बिना महिला सशक्तिकरण  संभव नहीं किन्तु वह विमर्श है !  सो, आपकी लघुकथा विषय, "कलम के सिपाही" होने के परिदृश्य पर कुछ  नहीं  कहती । सादर 

 आदाब,  बबीता जी ,धैर्य,  स्वयं संज्ञा  है, धैर्यता  मैंने  आज  तक  नहीं  देखा! सादर 

गोष्ठी में सहभागिता के लिए बधाई।शेष कहा जा चुका है।गौर करें।

हार्दिक बधाई आदरणीय बबीता जी। अच्छा प्रयास।

चोर की दाढ़ी में तिनका

सच्चा कलम का सिपाही था, राम भरोसे लाल! आकर अपने दुखों का रोना रोते लोग उसके पास आकर! कोई विधवा आती, कई वर्ष पूर्व सैनिक पति मर गया था! 

लेकिन पत्नि को पारिवारिक पेंशन नहीं मिली, राम भरोसे लाल आर टी आई लगा देता! और विधवा को पैंशन दिलवाकर ही अफसरों का पीछा छोड़ता! ठेकेदार को सड़क निर्माण का भुगतान रातो - रात अफसरों ने पमाइश भी कर ली और गुण वत्ता भी जांच ली, हफ्ते भर में टोटल भुगतान हो गया! 

बेचारे मजदूर अभी तक अपनी दिहाड़ी कम गिनी जाने की शिकायत कर रहे थे! राम भरोसे लाल ने पूरे प्रकरण आर टी आई की माँग कर डाली! मजदूरों का भी भाग्य था! राम भरोसे लाल की पैरवी पर मैजिस्ट्रेट ने जांच बैठ दी थी! भ्रष्ट बाबुओं

की जान पर बन आयी थी! अभी सुबह लोकल अखबार बाला चिल्ला-चिल्ला कर अपने अखबार बेच रहा थे  ! राष्ट्र वंदना चौक भीड़ पर भीड़ उसके अखबार दनादन खरीद रही थी! खबर थी, राम भरोसे लाल को रात दस बजे दो नकाबपोश आये,  उसके दरवाजे पर आवाज लगाई और दरवाजा खुलते ही राम भरोसे लाल को सर से सटा कर दो और दो गोली सीने में उतार दी! 

मौलिक व अप्रकाशित

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर कथा का प्रयास अच्छा है , पर कथा कुछ और समय माग रही है। कई जगह त्रुटियाँ भी हैं । देखिएगा। फिलहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

  • टंकण  की एकाध त्रुटि अवश्य  रह गई  है, भाई  लक्ष्मण सिंह ''मुसाफिर', , मगर  बंधुवर,  विश्वास  करें , कारण परिस्थितिजन्य हैं । संपादन का समय ही नहीं मिला।  विश्वविद्यालय की परीक्षाएं  चल रहीं हैं । कथा, बंधुवर , 'लघुकथा  नहीं  है, कदाचित आपको, क्षमा करें, इसका  ज्ञान  नहीं   है । सादर 

आ. चेतन जी , मुझे किस चीज का ज्ञान नहीं है ? 

आदाब,  मुसाफिर भाई जो मैंने लिखा  आप स्पष्ट रूप से पढ़ सकते हैं, उद्धृत कर सकते हैं, इसमें कोई  विवाद नहीं है ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
56 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service